पतंजलि का आर्थिक प्रभाव 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में कितना अहम है, जानिए
भारत सरकार 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' की इस दिशा में कई कदम उठा रही है। वहीं, पतंजलि जैसी संस्थाएं अपने स्तर पर निर्माण, कृषि, रोजगार सृजन और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में योगदान दे रही हैं। पतंजलि एक ऐसा ब्रांड है जो शुरू से ही स्वदेशी सामान और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है।
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पतंजलि, शुरू से ही स्वदेशी सामान और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है।
नई दिल्ली। भारत का आत्मनिर्भर भारत का सपना सिर्फ एक आर्थिक योजना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मिशन है जो देश को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ा रहा है। इसका उद्देश्य ऐसा मज़बूत तंत्र (ecosystem) बनाना है जो स्थानीय टैलेंट को प्रोत्साहित करे, देश में बने उत्पादों को बढ़ावा दे और विदेशी सामानों पर निर्भरता कम करे। यह एक ऐसी कोशिश है जिससे आने वाले वर्षों में भारत एक विकसित राष्ट्र के रूप में सामने आए।
जहाँ भारत सरकार इस दिशा में कई कदम उठा रही है, वहीं पतंजलि जैसी संस्थाएँ अपने स्तर पर निर्माण, कृषि, रोजगार सृजन और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में योगदान दे रही हैं। आइये जानते हैं कैसे पतंजलि आत्मनिर्भर भारत की यात्रा को नए आयाम देने के लिए कदम उठा रही है।
स्वदेशी को आधुनिक अर्थव्यवस्था में फिर से जीवित करना
पतंजलि एक ऐसा ब्रांड है जो शुरू से ही स्वदेशी सामान और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। कंपनी का लक्ष्य सिर्फ अपने उत्पादों को बेचना नहीं है, बल्कि भारत के पारंपरिक ज्ञान और संसाधनों को दुनिया के सामने लाना है। बाबा रामदेव द्वारा शुरू किया गया स्वदेशी आंदोलन आज भारत के बाज़ार में “स्थानीय बनाओ, स्थानीय अपनाओ” की सोच को मज़बूत कर चुका है। पहले जहाँ लोग विदेशी ब्रांड्स पर भरोसा करते थे, अब वही पतंजलि जैसे भारतीय उत्पादों को प्राथमिकता दे रहे हैं। Sage Journals में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पतंजलि की “स्वदेशी आंदोलन” की पहल ने उपभोक्ताओं में यह गर्व जगाया कि वे अपने देश में बने प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें।
बालों के तेल से लेकर खाना बनाने वाले तेल, हर्बल सप्लिमेंट्स से लेकर कॉस्मेटिक्स तक, पतंजलि ने विदेशी उत्पादों की जगह बेहतर क्वालिटी वाले, देश में बने विकल्प प्रस्तुत किए हैं। इससे न सिर्फ भारत के विनिर्माण क्षेत्र को बल मिला है, बल्कि विदेशी आपूर्ति शृंखला (supply chain) पर निर्भरता भी कम हुई है, जो आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक अहम कदम है। इसके अलावा, पतंजलि के उत्पादों की किफायती कीमतें (affordable pricing) इस बात का सबूत हैं कि भारत में बने प्रोडक्ट गुणवत्ता और किफायत, दोनों का संतुलन बना सकते हैं।
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि को मज़बूती देना
आत्मनिर्भर भारत का सपना तभी साकार होगा जब हमारे देश के किसान मज़बूत और आत्मनिर्भर होंगे। पतंजलि इस दिशा में किसानों को सीधे सहयोग देकर उनकी मदद कर रहा है। कंपनी देशभर में किसानों का एक बड़ा नेटवर्क बना चुकी है और उन्हें जैविक खेती (organic farming) के लिए प्रशिक्षित भी कर रही है। इससे किसानों को उनके उत्पादों के उचित दाम मिलते हैं और बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाती है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलती है। Patanjali Farmer Samriddhi Program के तहत कई किसानों की ज़िंदगी में बदलाव आया है। इस तरह पतंजलि ने दिखाया है कि आधुनिक सप्लाई चेन और निर्माण इकाइयों को जोड़कर कैसे ग्रामीण भारत को औद्योगिक विकास की रीढ़ बनाया जा सकता है।
औद्योगिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना
पतंजलि का एक और बड़ा योगदान है, देश में बने उत्पादों को बढ़ावा देना। International Journal of Research Publication and Reviews में प्रकाशित एक स्टडी में बताया गया है कि पतंजलि के “Vocal for Local” अभियान ने देश के उद्योगों पर बड़ा प्रभाव डाला है। कंपनी ने देशभर में कई बड़े उत्पादन संयंत्र (manufacturing plants) डाले हैं, जहाँ कच्चा माल और श्रमिक, दोनों ही लोकल होते हैं। इस मॉडल से दिखता है कि निर्माण, पैकेजिंग, लॉजिस्टिक्स और ट्रांसपोर्ट जैसे क्षेत्रों को भी पूरी तरह से स्वदेशी बनाया जा सकता है।
पतंजलि द्वारा रुचि सोया (अब Patanjali Foods Ltd.) का अधिग्रहण करना इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक संघर्षरत भारतीय कंपनी को फिर से जीवित कर आत्मनिर्भर भारत अभियान का हिस्सा बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष
संक्षेप में कहा जाए तो पतंजलि का आर्थिक प्रभाव भारत की आत्मनिर्भर यात्रा का एक अहम स्तंभ है। यह संस्था दिखाती है कि सही सोच, पारंपरिक ज्ञान और उद्यमशीलता (entrepreneurship) के मेल से कैसे देश की स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाया जा सकता है। पतंजलि का योगदान यह साबित करता है कि आत्मनिर्भर भारत का रास्ता सिर्फ सरकारी योजनाओं से नहीं, बल्कि ऐसे संगठनों की भागीदारी से भी बनता है जो देश के विकास के साथ आत्मनिर्भरता को अपना मिशन मानते हैं।
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