पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में क्यों हैं AI से नौकरी जाने के कम खतरे? IT सचिव ने गिनाए ये कारण
एआई के कारण भारत में दफ्तरी नौकरियों पर कम खतरा है, क्योंकि यहां STEM आधारित रोजगार अधिक हैं। पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में दफ्तर आधारित नौकरिया ...और पढ़ें

नई दिल्ली। सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सचिव एस. कृष्णन ने कहा है कि कृत्रिम मेधा (एआई) के कारण ज्ञान-आधारित या दफ्तरी नौकरियों पर पड़ने वाला जोखिम पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में कम है। इसकी वजह यह है कि भारत के कुल कार्यबल में दफ्तर वाली नौकरियों की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है और यहां विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित (STEM) आधारित रोजगारों का दबदबा है।
भारत के संदर्भ में अतिरंजित हैं आशंकाएं
पीटीआई-भाषा को दिए विशेष साक्षात्कार में कृष्णन ने कहा कि रोजगार पर एआई के असर को लेकर जो चिंताएं जताई जा रही हैं, उन्हें भारत के संदर्भ में उसी तीव्रता से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में दफ्तर आधारित नौकरियां कम हैं, इसलिए संज्ञानात्मक या ज्ञान-आधारित कार्यों पर एआई का खतरा सीमित रहता है।
STEM क्षेत्र में अवसर अधिक
आईटी सचिव ने कहा कि भारत में दफ्तर वाले अधिकांश रोजगार STEM क्षेत्रों से जुड़े हैं, जो एआई के दौर में जोखिम के बजाय नए अवसर पैदा करते हैं। “भारत में अन्य क्षेत्रों की तुलना में दफ्तर वाली नौकरियों की संख्या कम है। इसलिए एआई का असर यहां उतना गंभीर नहीं होगा जितना अन्य देशों में देखा जा रहा है,” उन्होंने कहा।
शारीरिक श्रम नहीं, दिमागी काम पर असर
कृष्णन के अनुसार, एआई ऐसी पहली तकनीक है जो मुख्य रूप से ज्ञान-आधारित कर्मचारियों और संज्ञानात्मक श्रम को प्रभावित कर सकती है। इससे पहले की औद्योगिक क्रांतियों में मशीनों ने अधिकतर शारीरिक श्रम की जगह ली थी, न कि दिमाग से किए जाने वाले कार्यों को।
इंसानी श्रम खत्म नहीं होगा
हालांकि, उन्होंने इस धारणा को खारिज किया कि एआई निकट भविष्य में इंसानी कामगारों की जरूरत पूरी तरह समाप्त कर देगा। उनका मानना है कि एआई का वास्तविक असर मानवीय क्षमताओं को बढ़ाने में होगा, जिससे लोग अपने विश्लेषणात्मक कार्य अधिक कुशलता और उत्पादकता के साथ कर सकेंगे।
‘हैलुसिनेशन’ अब भी बड़ी चुनौती
आईटी सचिव ने यह भी कहा कि एआई से मिलने वाली गलत या भ्रामक जानकारी, जिसे ‘हैलुसिनेशन’ कहा जाता है, अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसलिए एआई से तैयार सामग्री की निगरानी और सत्यापन के लिए मानवीय हस्तक्षेप लंबे समय तक जरूरी रहेगा।
रोजगार सृजन की नई संभावनाएं
कृष्णन ने बताया कि एआई प्रणालियों को संचालित करने के लिए बड़ी कंप्यूटिंग क्षमता और मॉडल निर्माण की आवश्यकता होती है, जिसे आमतौर पर छोटे लेकिन अत्यधिक कुशल पेशेवर समूह संभालते हैं। हालांकि यह प्रक्रिया पूंजी-प्रधान है, लेकिन रोजगार पर इसका असर सीमित रहता है। असली रोजगार अवसर उपयोग-आधारित एआई एप्लिकेशन के विकास और तैनाती से पैदा होंगे, जहां बड़ी संख्या में प्रशिक्षित पेशेवरों की जरूरत होगी।
वैश्विक स्तर पर भारत की मजबूत स्थिति
उन्होंने कहा कि भारत न केवल अपनी घरेलू जरूरतों के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एआई के उपयोग और तैनाती में अहम भूमिका निभा सकता है। सरकार द्वारा विकसित किया जा रहा स्वदेशी एआई एप्लिकेशन मॉडल अगले वर्ष फरवरी में प्रस्तावित एआई शिखर सम्मेलन से पहले तैयार होने की उम्मीद है, जिससे रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को नई गति मिल सकती है।

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