सर्च करे
Home

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रिन्यूएबल एनर्जी में भारत ने गाड़े झंडे, लेकिन चीन पर कब खत्म होगी निर्भरता?

    Updated: Thu, 26 Sep 2024 07:59 PM (IST)

    चीन रिन्यूएबल एनर्जी के सेक्टर में भारतीय कंपनियों के लिए अभी भी एक बड़ी चुनौती है। जाहिर है कि चीनी आयात पर अंकुश लगाने के लिए भारत सरकार के शुल्कीय ...और पढ़ें

    Hero Image
    भारत अपनी जरूरत का 60 फीसद सोलर पीवी मॉड्यूल अभी भी चीन से आयात कर रहा है।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। एक दशक पहले सौर प्लांट के सबसे महत्वपूर्ण उपकरण सोलर पीवी मॉड्यूल निर्माण में भारत कहीं नहीं था। देश में इसकी मैन्युफैक्चरिंग की स्थापित क्षमता सिर्फ तीन हजार मेगावाट सालाना थी। आज यह क्षमता बढ़ कर 67 हजार मेगावाट हो चुकी है। अगले वित्त वर्ष 2025-26 तक यह क्षमता एक लाख मेगावाट हो जाएगी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यह निश्चित तौर पर बड़ी उपलब्धि दिखती है लेकिन देश की जरूरत को देखते हुए नाकाफी है। भारत में सोलर पीवी मॉड्यूल बनाने के लिए जो भी प्लांट लगाये जा रहे हैं उनमें से अधिकांश में (80 फीसद से ज्यादा) चीन निर्मित मशीन व प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत अपनी जरूरत का 60 फीसद सोलर पीवी मॉड्यूल अभी भी चीन से आयात कर रहा है।

    चीन इस सेक्टर में भारतीय कंपनियों के लिए अभी भी एक बड़ी चुनौती है। जाहिर है कि चीनी आयात पर अंकुश लगाने के लिए भारत सरकार के शुल्कीय व गैर-शुल्कीय कदम अभी भी बेअसर है। ऐसे में उद्योग जगत के विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अपनी मौजूदा नीति में बदलाव करने की जरूरत है, खास तौर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में लागू पीएलआई स्कीम में।

    क्या चीन पर घट रही है हमारी निर्भरता

    एक दिन पहले नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की तरफ से यह जानकारी दी गई है कि देश में उच्च क्षमता के सोलर पीवी माड्यूल्स के निर्माण के लिए घोषित पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव- उत्पादन से जुड़ा हुआ प्रोत्साहन) नीति के तहत 24 हजार करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया गया है। इससे 47 हजार मेगावाट क्षमता के पीवी मॉडयूल्स के निर्माण के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया है।

    एमएनआरई मंत्री प्रह्लाद जोशी ने हाल ही में संसद में बताया था कि सौर ऊर्जा संयंत्र में लगाने वाले सोलर पीवी सेल्स और पीवी मॉड्यूल की आपूर्ति के लिए चीन पर निर्भरता तेजी से कम हो रही है। उक्त दोनों उत्पादों पर चीन पर निर्भरता वर्ष 2022-23 में क्रमश: 94 व 93 फीसद थी जो वर्ष 2023-24 में घट कर 56 व 66 फीसद हो गई है।

    चीन के साथ बढ़ते कारोबारी घाटे के पीछे एक कारण सौर ऊर्जा में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों का बढ़ता आयात भी है। भारत ने वर्ष 2030 तक देश में तीन लाख मेगावाट सौर उर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इतनी बड़ी क्षमता के लिए उपकरण आपूर्ति करने में घरेलू उद्योग की कोशिशें नाकाफी है, लिहाजा चीन से ही इनका आयात जारी रखना बाध्यता होगी।

    भारत के सोलर इंडस्ट्री की चुनौतियां

    भारत की प्रमुख सोलर पीवी मॉड्यूल बनाने वाली कंपनी सात्विक सोलर के सीईओ प्रशांत माथुर का कहना है कि सबसे पहले हमें अपनी पीएलआई स्कीम में बदलाव करने की जरूरत है। भारत सरकार की स्कीम समग्र सोलर सेक्टर के लिए है लेकिन दुनिया में बहुत ही कम देश हैं जो सौर ऊर्जा से संबंधित सारे सेक्टरों के निर्माण में आत्मनिर्भर हैं।

    उदाहरण के तौर पर पॉलीमर्स या वेफर्स के निर्माण की इकाई स्थापित करने में काफी निवेश होता है। पूरा वैल्यू चेन स्थापित करने के लिए काफी ज्यादा निवेश चाहिए। पालीमर्स या वेफर्स का इस्तेमाल सेमीकंडक्टर उद्योग में भी होता है। यानी इनके निर्माण से जुड़ी कंपनियां सौर ऊर्जा के साथ सेमीकंडक्टर उद्योग को भी आपूर्ति कर सकेंगी। लेकिन अगर अलग-अलग सेक्टर को प्रोत्साहन दिया जाए तो उसका ज्यादा फायदा दिख सकता है।

    माथुर की दूसरा सलाह यह है कि भारत में जमीन अधिग्रहण की समस्या को दूर किया जाए। वह बताते हैं कि सौर ऊर्जा से जुड़े उद्योगों के लिए जमीन का अधिग्रहण एक बड़ी अड़चन है। इसे सरकार के स्तर पर ही दूर किया जा सकता है। कम ब्याज पर फंड और कुशल श्रम की कमी को भी वह अन्य अड़चन के तौर पर चिन्हित करते हैं। इन्हें दूर करके ही भारत नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकेगा।

    यह भी पढ़ें : आम जनता को मिलेगी बड़ी राहत! 100 से अधिक वस्तुओं पर GST घटाने की तैयारी

     

    बिजनेस से जुड़ी हर जरूरी खबर, मार्केट अपडेट और पर्सनल फाइनेंस टिप्स के लिए फॉलो करें