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    Explainer: क्या होती है पत्नी की 'निजी संपत्ति', जिस पर पति का भी नहीं होता हक

    Updated: Sun, 28 Apr 2024 08:00 AM (IST)

    शादी के पत्नी को सुसराल पक्ष और मायके से साड़ी गहने समेत कई कीमती उपहार मिलते हैं। इन्हें स्त्रीधन कहते हैं और इस पर सिर्फ पत्नी का ही अधिकार होता है। इसे ससुराल पक्ष का कोई भी व्यक्ति भी जबरदस्ती नहीं ले सकता। आइए जानते हैं कि स्रीधन के मामले में महिलाओं के पास क्या अधिकार होते हैं और यह दहेज से कितना अलग है।

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    महिला को शादी से पहले या बाद में मिले उपहार स्त्रीधन होते हैं।

    बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। शादी को काफी नाजुक बंधन माना जाता है। यह ऐसा रिश्ता है, जो दो लोगों की आपसी समझ से चलता है। अक्सर छोटी-मोटी को नजरअंदाज करना पड़ता है या फिर परिस्थितियों से थोड़ा-बहुत समझौता करना पड़ता है। लेकिन, कई बार मामला इतना बिगड़ जाता है कि अलगाव की नौबत आ जाती है।

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    ऐसे में जब महिला अपने जेवरात और शादी के बाद मिले दूसरे उपहार वापस मांगती है, तो कई बार ससुराल वाले मुकर जाते हैं। उन्हें लगता है कि ये उपहार तो उनके रिश्तेदारों से मिले हैं, तो उन पर बहू का हक कैसे हो सकता है। लेकिन, ऐसा है नहीं। और इस बात को सुप्रीम कोर्ट भी स्पष्ट कर चुका है कि शादी के महिला को मिले उपहार उसकी 'निजी संपत्ति' है और उस पर किसी और का हक नहीं है।

    सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

    हालिया मामला केरल का है। पत्नी का आरोप था कि उसके पति ने शादी की पहली रात ही उसके सारे गहने यानी स्त्रीधन को लेकर सुरक्षित रखने के नाम पर अपनी मां को दे दिए। फिर मां-बेटे ने मिलकर उसके सारे गहने का इस्तेमाल अपना कर्ज चुकाने के लिए किया। अदालत ने महिला को आरोप सही पाया और पति को स्त्रीधन लौटाने का आदेश दिया।

    अदालत ने कहा कि पति मुश्किल के समय पत्नी के स्रीधन का इस्तेमाल तो कर सकता है। लेकिन, यह उधार की सूरत में रहता है, जिसे पत्नी को लौटाना पति का दायित्व होता है। स्त्रीधन पर पति-पत्नी का संयुक्त अधिकार नहीं होता, बल्कि यह संपत्ति सिर्फ और सिर्फ पत्नी की होती है।

    क्या होता है स्त्रीधन?

    कानून की नजर में वे सभी चीजें स्त्रीधन हैं, जो पत्नी को शादी से पहले या शादी के उपहार के तौर पर मिलती हैं। जैसे कि साड़ी, गहने और किसी भी अन्य तरह का उपहार। इसमें प्रॉपर्टी तक भी शामिल है। इस बात का कोई मतलब नहीं कि ये चीजें बहू को मायके से मिली हैं या फिर ससुराल की तरफ से।

    दहेज से कितना अलग है स्त्रीधन

    दहेज और स्रीधन दो बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं। जहां दहेज लेना और देना, दोनों गैरकानूनी है, वहीं स्त्रीधन को कानूनन लिया और दिया जा सकता है। यह स्नेहमय उपहार होता है। यही वजह है कि इस पर महिला का पूरी तरह से अधिकार होता है और इसे कोई जबरन नहीं ले सकता।

    स्‍त्रीधन पर क्या हैं महिलाओं के हक

    - हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत महिला को स्त्रीधन को रखने पूरा हक है। वह चाहे जैसे उसका इस्तेमाल कर सकती है। वह उसे किसी को भी दे सकती है या फिर बेच सकती है। ससुराल पक्ष, यहां तक कि पति का भी उस पर कोई अधिकार नहीं होता।ॉ

    - अगर महिला ने अपने स्रीधन को ससुराल में किसी के पास रखा है, जैसे कि सास, ससुर या पति, तो वह उस स्त्रीधन का सिर्फ रखवाला माना जाएगा। जैसा कि केरल वाले में मामले में था। जब भी महिला अपने स्त्रीधन को वापस मांगेगी, तो उसे लौटाने से इनकार नहीं किया जा सकता।

    - ससुराल पक्ष अगर महिला के स्त्रीधन को जबरन रख लेता है और मांगने पर नहीं लौटाता, तो महिला 'अमानत में खयानत' का केस कर सकती है। जैसा कि केरल मामले में पत्नी ने किया था। अगर महिला का पति से अलगाव होता है, तो वह ससुराल छोड़ते वक्त अपना स्त्रीधन कानूनन साथ ले जा सकती है।

    मृत्यु के बाद किसका होता है स्त्रीधन?

    स्त्रीधन पर अपने जीवनकाल के दौरान महिला का कानूनी एकाधिकार होता है। उसकी मृत्यु के स्त्रीधन किसे मिलेगा, यह उसकी वसीयत पर निर्भर करता है। अगर किसी महिला की मृत्यु वसीयत किए बगैर हो जाती है, तो उसकी स्त्रीधन वाली संपत्ति उसके उत्तराधिकारियों के बीच बंट जाएगी।   

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