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    Global Recession: क्या होती है आर्थिक मंदी? क्या है इसका इतिहास; भारत पर कितना है इसका खतरा

    By Siddharth PriyadarshiEdited By:
    Updated: Sat, 03 Sep 2022 02:10 PM (IST)

    जब भी किसी देश की अर्थव्यवस्था धीमी या सुस्त पड़ जाती है तो कहा जाता है कि वहां आर्थिक मंदी आ गई। जीडीपी आंकड़ों के बारे में जानकारी प्राप्त करके देश में आर्थिक मंदी के बारे में पता लगा सकते हैं।

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    what is recession, its history and effect

    नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। दुनिया में अर्थिक मंदी (Global Recession) को लेकर चर्चा तेज है। विश्लेषक और अर्थशास्त्री इसे लेकर अपने-अपने दावे कर रहे हैं। यूरोप और अमेरिका में इसका खतरा सबसे ज्यादा बताया जा रहा है। सोमवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत में आर्थिक मंदी से जुड़ी आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) के मंदी में जाने का सवाल ही नहीं पैदा नहीं होता।

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    सवाल उठता है कि कोई आम आदमी यह कैसे जान सकता है कि मंदी है या नहीं। आखिर, मंदी कब और कैसे आती है और इसका आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ता है।

    क्या होती है मंदी

    जब भी किसी देश की अर्थव्यवस्था धीमी या सुस्त पड़ जाती है, तो उसे आर्थिक मंदी कहा जाता है। तकनीकी आधार पर बात की जाए, तो जब भी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाही तक गिरती है तो माना जाता है कि वह देश मंदी के दौर में चला गया है। 

    क्या हैं मंदी के दुष्प्रभाव

    मंदी के दौरान देश में महंगाई तेजी से बढ़ती है। रोजगार घटता है। इसके साथ शेयर बाजार में भारी गिरावट होती है। आप सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के तिमाही आंकड़ों को बारे में जानकारी प्राप्त करके किसी भी देश में आर्थिक मंदी के बारे में पता लगा सकते हैं।

    मंदी और स्टैगफ्लेशन

    आपने मंदी के बारे में खबरें पढ़ते समय जरूर 'स्टैगफ्लेशन' शब्द सुना होगा। मंदी और स्टैगफ्लेशन के बीच बड़ा ही बारीक साअंतर होता है। जब किसी देश की अर्थव्यवस्था धीमी होकर स्थिर हो जाती है यानी उनमें कोई भी वृद्धि नहीं होती है तो उसे स्टैगफ्लेशन कहा जाता है।

    महंगाई बढ़ना और गिरना दोनों ही ला सकते हैं मंदी

    जानकारों का कहना है कि किसी भी अर्थवयवस्था के लिए महंगाई बढ़ना और गिरना दोनों ही खतरनाक है। 1970 के दशक में अमेरिका में बेहिसाब महंगाई आर्थिक मंदी का कारण बन गई थी। इस दौरान महंगाई को काबू करने के लिए अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व को ब्याज दरों को तेजी से बढ़ाना पड़ा था।

    वहीं, जापान में 1990 के दशक में मंदी महंगाई गिरने के कारण आई थी। उस दौरान जापान में चीजों के दाम काफी नीचे गिर गए थे, जिसके कारण लोगों ने पैसे खर्च करने बंद कर दिए थे। चीजें सस्ती होने से कंपनियों ने सैलरी काटी। लोगों कीआय में भारी गिरावट आ गई थी।

    भारत में मंदी का इतिहास

    आजादी के बाद से अब तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ओर जारी किए गए जीडीपी के आंकड़ों को देखा जाए, तो यह कहा जा सकता है कि अब तक भारत में 1958, 1966, 1973 और 1980 में मंदी आई थी। वित्त वर्ष 1957-58 में जीडीपी में -1.2 फीसदी, 1965-66 में -3.7 फीसदी, 1972-73 में -0.3 फीसदी और 1979-80 में -5.2 फीसदी की दर से गिरावट हुई थी।