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    RCEP के भारत पर होंगे गंभीर असर, इस करार के बारे में जानें विस्तार से

    By Ankit KumarEdited By:
    Updated: Wed, 09 Oct 2019 08:23 AM (IST)

    RCEP आसियान एवं एफटीए देशों के बीच साझेदारी से जुड़े करार आरसीईपी पर बातचीत अपने आखिरी दौर में है।

    RCEP के भारत पर होंगे गंभीर असर, इस करार के बारे में जानें विस्तार से

    नई दिल्ली, पीटीआइ। आसियान देशों और एफटीए के सदस्य देशों के बीच पार्टनरशिप यानी कि  RCEP को लेकर बातचीत अपने अंतिम चरण में पहुंच गई है। यही वजह है कि इस बेहद अहम समझौते को लेकर बैठकों का दौर जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मुक्त व्यापार को लेकर प्रस्तावित RCEP करार पर हो रही बातचीत की प्रोगेस जानने के लिए एक बैठक की। इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मामलों के मंत्री एस जयशंकर, कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टर पीयूष गोयल और कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टरी में राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हिस्सा लिया। इसके अलावा होम मिनिस्टरी में भी RCEP को लेकर एक बैठक हुई। इतना ही नहीं सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यालय पर भी इस व्यापार समझौते के लेकर ट्रेड एक्सपर्ट्स, एकेडमिशियन्स और इंडस्ट्री मेम्बर्स के बीच विचार-विमर्श हुआ। 

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    देश में टॉप लेवल पर हुईं ये बैठकें इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण हैं कि आरसीईपी के 16 सदस्य देशों के व्यापार मंत्रियों की अगले हफ्ते बैंकॉक में बैठक होनी है। इस बैठक के दौरान इस समझौते पर अब तक हुई बातचीत की प्रगति की समीक्षा की जाएगी। सूत्रों के मुताबिक RCEP को लेकर संभवतः यह अंतिम मंत्री-स्तरीय बैठक होगी क्योंकि अब बहुत कम मुद्दों पर ही आम राय बनाना बाकी है। आइए विस्तार से जानते हैं इस क्षेत्रीय साझेदारी करार के बारे में:

    RCEP क्या है?

    रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप आसियान के दस सदस्य देशों ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और छह एफटीए पार्टनर्स चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौता है। 

    भारत को क्या हो सकता है फायदा

    विश्लेषकों के मुताबिक इस करार से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में वृद्धि दर्ज की जा सकती है, खासकर एक्सपोर्ट से जुड़े एफडीआई में। इसके अलावा इस करार से देश के एमएसएमई क्षेत्र को भी खासा फायदा मिलने की उम्मीद है। इस करार के अमल में आने के बाद एशिया-पेसिफिक क्षेत्र में भारत का कद और सूख बढ़ सकता है। 

    कुछ तबके क्यों कर रहे विरोध

    देश में शीर्ष स्तर पर हुईं ये बैंठकें इसलिए भी अहम हैं क्योंकि डेयरी सहित विभिन्न सेक्टर इस करार का काफी विरोध कर रहे हैं। वहीं इस बात की आशंका भी जताई जा रही है कि इस करार से भारत का ट्रेड डिफिसिट बढ़ सकता है। यह आशंका इसलिए जताई जा रही है कि नीति आयोग ने हाल में कहा है कि मुक्त व्यापार समझौता के बाद आसियान, कोरिया और जापान के साथ भारत के व्यापार घाटे में वृद्धि हुई है।