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शुरू से समझें क्या है ब्याज पर ब्याज छूट का पूरा मामला, सरकार पर पड़ेगा 7,500 करोड़ का अतिरिक्त बोझ

हालांकि सिर्फ दो करोड़ रुपये तक के कर्जधारकों को छूट देने से भी सरकार को 6500 करोड़ का वित्तीय बोझ वहन करना पड़ता और सरकार उसके लिए तैयार थी। लेकिन सभी प्रकार के कर्ज को इससे छूट देने पर बोझ करीब 7500 करोड़ रुपये और बढ़ जाएगा।

By NiteshEdited By: Published: Wed, 24 Mar 2021 08:22 AM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 10:11 AM (IST)
शुरू से समझें क्या है ब्याज पर ब्याज छूट का पूरा मामला, सरकार पर पड़ेगा 7,500 करोड़ का अतिरिक्त बोझ
रेटिंग एजेंसी इकरा की तरफ से यह अनुमान जाहिर किया गया

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोन मोरेटोरियम के मामले में कर्जधारकों को ब्याज पर ब्याज से पूरी तरह से छूट मिलने से सरकार पर करीब 7,500 करोड़ रुपये तक का अतिरिक्त भार पड़ने का अनुमान है। रेटिंग एजेंसी इकरा की तरफ से यह अनुमान जाहिर किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पिछले वर्ष मार्च से लेकर अगस्त तक लोन मोरेटोरियम का लाभ लेने वाले सभी कर्जधारकों को ब्याज पर ब्याज से मुक्त कर दिया। सरकार सिर्फ दो करोड़ रुपये तक के कर्जधारकों को ब्याज पर लगने वाले ब्याज से छूट देने के पक्ष में थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अतार्किक करार देते हुए सभी प्रकार के कर्जधारकों को राहत दी। 

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हालांकि सिर्फ दो करोड़ रुपये तक के कर्जधारकों को छूट देने से भी सरकार को 6,500 करोड़ का वित्तीय बोझ वहन करना पड़ता और सरकार उसके लिए तैयार थी। लेकिन सभी प्रकार के कर्ज को इससे छूट देने पर बोझ करीब 7,500 करोड़ रुपये और बढ़ जाएगा। कुल मिलाकर यह कि इस मामले में सरकार पर करीब 14,000 करोड़ रुपये तक का बोझ पड़ने का अनुमान है।

क्या था मामला

आरबीआइ ने कोरोना से उपजे हालात को देखते हुए 27 मार्च, 2020 को पहली बार तीन महीने के लिए (मार्च-मई, 2020) सभी तरह के सावधि कर्ज पर ईएमआइ भुगतान स्थगित करने का फैसला किया था। बाद में इसे बढ़ाकर 31 अगस्त तक कर दिया गया था।- 

मामला कैसे पहुंचा कोर्ट : विभिन्न पक्षों ने इस अवधि के दौरान बैंकों द्वारा लोन के ब्याज पर ब्याज लेने के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की। उन्होंने मोरेटोरियम अवधि का पूरा ब्याज माफ करने और अवधि बढ़ाने का आदेश देने का आग्रह किया।- 

सरकार का तर्क क्या : सरकार और आरबीआइ की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि ब्याज दरों को पूरी तरह से माफ करने से समूची बैं¨कग व्यवस्था पर प्रतिकूल असर होगा। बैंकिंग सिस्टम पर छह लाख करोड़ रुपये का ऐसा बोझ पड़ेगा, जिससे कई बैंकों की कमर टूट जाएगी और उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। 

एसबीआइ का उदाहरण देते हुए सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया था कि अगर देश के इस सबसे बड़े बैंक ने छह महीने के लिए ब्याज माफ कर दिया तो उसने पिछले 65 वर्षो में जो कमाया है, वह सब खत्म हो जाएगा।

फैसले से किन्हें दिक्कत : सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से देश की रियल एस्टेट कंपनियों और कुछ दूसरे उद्योगों की परेशानी बढ़ने के आसार हैं, क्योंकि उन्होंने ही मोरेटोरियम अवधि बढ़ाने की याचिका दायर की थी। इसमें बिजली सेक्टर भी शामिल है, जिसका कहना है कि कोरोना की वजह से लॉकडाउन ने उनके कारोबार पर भी काफी बोझ डाला था और वह बैंकों का बकाया कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं है।


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