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    मुद्रास्फीति (Inflation)

    By Abhinav ShalyaEdited By: Abhinav Shalya
    Updated: Mon, 10 Apr 2023 01:13 PM (IST)

    Inflation Causes and Measurement मुद्रास्फीति को सरल शब्दों में महंगाई भी कहा जाता है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से... (जागरण फाइल फोटो)

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    Inflation: Effects, How its measured, Reasons behind it

    नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। पिछले एक साल में आपने मुद्रस्फीति (Inflation) शब्द को कई बार सुना होगा। आरबीआई की ओर से लगातार ब्याज दरों में इजाफा करने के पीछे की वजह भी यही है। आखिर ये मुद्रास्फीति क्या होती है और आम आदमी पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं।

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    क्या होती है मुद्रास्फीति? (What is inflation?)

    मुद्रास्फीति को आम बोलचाल की भाषा में महंगाई कहा जाता है। जब भी किसी अवधि में वस्तुओं और सेवाओं के दामों बढ़ोतरी हो जाती है और लोगों को पहले जितनी ही मात्रा में वस्तुओं एवं सेवाएं खरीदने के लिए अधिक दाम चुकाने पड़ते हैं। उसे मुद्रास्फीति कहा जाता है। उदाहरण के लिए 1997 में आटा करीब 12 रुपये किलो मिलता था, लेकिन आज में समय में एक किलो आटा खरीदने के लिए करीब 35 रुपये का भुगतान करना होता है।

    मुद्रास्फीति के प्रभाव (Effects of Inflation)

    मुद्रास्फीति को दोधारी तलवार माना जाता है। अगर यह दो प्रतिशत के आसपास रहता है, तो अर्थशास्त्री द्वारा माना जाता है कि अर्थव्यवस्था स्थिर है और अच्छा प्रदर्शन कर रही है। मांग और आपूर्ति अच्छी स्थिति में है।

    जब भी मुद्रास्फीति किसी अर्थव्यवस्था की विकास दर को पार करती है। इसे एक संकेत माना जाता है कि अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है।

    आम जनता पर मुद्रास्फीति का प्रभाव

    मुद्रास्फीति बढ़ने का आम जनता पर इसका नकारात्मक पड़ता है। वस्तुओं और सेवाओं के दाम तेजी के बढ़ने के कारण कई चीजें आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाती हैं, क्योंकि ऐसा देखा जाता है कि जब भी महंगाई बढ़ती तो आमदनी में इजाफा रुक जाता है और लोगों को उतनी ही सैलरी में गुजारा करना पड़ता है।

    कंपनियों पर मुद्रास्फीति का प्रभाव

    मुद्रास्फीति बढ़ने से आम जनता के साथ-साथ कंपनियों पर भी काफी प्रभाव पड़ता है। कंपनियों के लिए माल का उत्पादन करना महंगा हो जाता है, जिस कारण मार्जिन में कमी देखने को मिलती है। इस कारण कर्मचारियों की सैलरी में भी कम बढ़ोतरी होती है। कई बार जब महंगाई काफी अधिक हो जाती है, तो कंपनियां अपना आर्थिक बोझ कम करने के लिए छंटनी आदि का भी सहारा लेती हैं।

    कैसे मुद्रास्फीति की जाती है गणना? (How is inflation measured?)

    किसी भी देश में लोगों के जीवन जीने के स्तर कई वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों से प्रभावित होता है। सरकार की ओर से लोगों का औसत जीवन जीने का स्तर मापने के लिए सर्वे का सहारा लिया जाता है, जिसमें लोगों के द्वारा सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली वस्तुओं की एक बास्केट बनाई जाती है। इसी में शामिल वस्तुओं की कीमतों के आधार पर मुद्रास्फीति की गणना की जाती है।

    भारत में सरकार की ओर से दो प्रकार की मुद्रस्फीति की दर निकाली जाती है। पहली- खुदरा मुद्रास्फीति (CPI) और दूसरा थोक मुद्रास्फीति (WPI)।

    मुद्रास्फीति के कारण (Reasons of Inflation)

    मुद्रास्फीति बढ़ने और घटने के दो प्रमुख कारण होते हैं।

    मांग आधारित मुद्रास्फीति: जब भी वस्तुओं और सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ जाती है और उत्पादन कम होता है, तो इससे मांग आधारित मुद्रस्फीति जन्म लेती है। मांग कम होने से इसका उल्टा होता है। उदाहरण के लिए कोरोना के बाद दुनिया में गाड़ियों की मांग में तेजी से इजाफा हो गया है। इस कारण कंपनियां तेजी से गाड़ियों के दामों में बढ़ोतरी कर रही हैं।

    लागत आधारित मुद्रास्फीति: जब भी इनपुट लागत बढ़ने के कारण वस्तुओं और सेवाओं के दाम बढ़ जाते हैं, तो इससे लागत आधारित मुद्रास्फीति जन्म लेती है। लागत कम होने से इसका उल्टा होता है। उदाहरण के लिए कोरोना के दौरान आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होने से स्टील की कीमतों में तेजी से इजाफा हो गया था। इस कारण लोगों के लिए इससे बनने वाले उत्पाद जैसे सरिया आदि की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिली थी।

    मुद्रास्फीति को कैसे किया जाता है कंट्रोल 

    किसी भी देश के लिए अर्थव्यवस्था में गति बनाए रखने के लिए मुद्रास्फीति को कंट्रोल में रखना जरूरी है। जब भी ये एक निर्धारित सीमा से अधिक हो जाती है। उस देश का केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना शुरू कर देता है। जैसा कि आपने पिछले एक साल में भारत में देखा। बढ़ती महंगाई को कम करने के लिए आरबीआई मई 2022 से रेपो रेट 2.5 प्रतिशत बढ़ा चुका है।

    वहीं, जब कोरोना के समय में महंगाई जरूरत से ज्यादा कम हो गई थी, तो मांग को फिर से ऊपर उठाने के लिए आरबीआई की ओर से रेपो रेट को कम किया गया था।