क्या होता है IPO का मतलब? समझें इससे जुड़े सभी टर्म की मीनिंग
अगर आप शेयर बाजार में निवेश करते हैं या करने का प्लान बना रहे हैं तो आपने आईपीओ के बारे में जरूर सुना होगा। कंपनियों द्वारा शेयर बाजार में पहली बार प्रवेश करने की प्रक्रिया को प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) कहा जाता है। आज हम इसी आईपीओ के बारे में डिटेल में बात करेंगे। ये जानेंगे कि आईपीओ क्या है और इससे जुड़े टर्म को समझने की भी कोशिश करेंगे।

बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। शेयर बाजार खुद में ही एक पेचीदा टर्म है। शेयर बाजार वह जगह होती है जहां कंपनियों के शेयरों को खरीदने और बेचने का काम होता है। भारत में दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं, एनएसई और बीएसई। स्टॉक एक्सचेंज को सेकेंडरी मार्केट भी कहा जाता है।
हम से ज्यादातर लोग इस सेकेंडरी मार्केट से वाकिफ हैं, लेकिन प्राइमरी बाजार के बारे में कम लोग जानते हैं। दरअसल, किसी कंपनी के शेयर सेकेंडरी मार्केट में प्रवेश करने से पहले लंबा सफर तय करते हैं। कंपनी शेयर बाजार में प्रवेश करने के लिए पहले निवेशकों को सीधे शेयर जारी करती है। इसे ही आईपीओ कहा जाता है। आईपीओ लॉन्च करने से पहले कंपनी को बाजार नियामक सेबी से मंजूरी लेनी पड़ती है।
क्या होता है IPO?
आईपीओ को Initial Public Offering कहा जाता है। कोई भी कंपनी शेयर बाजार में प्रवेश के अपना आईपीओ लॉन्च करती है। ये आईपीओ प्राइमरी मार्केट में लॉन्च किए जाते हैं। इसे प्राइस बैंड के आधार पर लॉन्च किया जाता है।
प्राइस बैंड
प्राइस बैंड वे रेंज है, जिस कीमत पर कंपनी अपना आईपीओ निकालती है। वहीं अलॉटमेंट के समय उस कीमत पर शेयर्स मिलते हैं, जिस रेंज में निवेशकों ने सबसे ज्यादा बोली लगाई हो। ओवरसब्सक्रिप्शन से बचने के लिए आप सबसे ज्यादा कीमत पर ही बोली लगाएं।
ओवरसब्सक्रिप्शन
ओवरसब्सक्रिप्शन की स्थिति तब होती है, जब उस आईपीओ के लिए आवेदनों की संख्या मौजूद शेयरों की संख्या से अधिक हो जाते हैं।
लॉट साइज
स्टॉक एक्सचेंज से तो आप चाहें तो किसी भी कंपनी के एक से लेकर कितने भी शेयर खरीद सकते हैं। लेकिन प्राइमरी मार्केट में ऐसा नहीं होता। इसमें मिनिमम एक लॉट लेना पड़ता है। इस लॉट का साइज कंपनी तय करती है, लेकिन सेबी के मौजूदा नियमों के मुताबिक एक लॉट का मूल्य 15 हजार रुपए से अधिक नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए जैसे किसी कंपनी ने लॉट साइज 100 शेयर्स का रखा है। इसके एक आईपीओ या शेयर की कीमत 150 रुपये हैं। तो निवेशक को न्यूनतम 15,000 रुपये आईपीओ में निवेश करने होंगे।
GMP देखना है जरूरी
GMP यानी Grey Market में उस आईपीओ के शेयर की जो कीमत चल रही होगी, अनुमान लगाया जाता है कि उस शेयर की लिस्टिंग प्राइज भी उतनी होगी। यदि ग्रे मार्केट में प्राइस ज्यादा है तो लिस्टिंग प्रीमियम पर होगी, और यदि ग्रे मार्केट में कीमत कम है तो लिस्टिंग डिस्काउंट पर होगी।
लिस्टिंग
आईपीओ की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ये शेयर स्टॉक एक्सचेंज में प्रवेश करते हैं। यहां उनकी लिस्टिंग प्रीमियम (यानी इश्यू प्राइज से ज्यादा) या डिस्काउंट (यानी इश्यू प्राइज से कम) पर हो सकती है। लिस्टिंग का मतलब हुआ कि ये शेयर अब स्टॉक एक्सचेंज में खरीद-बिक्री के लिए आ चुके हैं।
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