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    ट्रंप सैंक्शन के जद में आई इस भारतीय तेल कंपनी की ऑयल फील्ड, अब क्या विकल्प?

    Updated: Sun, 26 Oct 2025 08:05 PM (IST)

    अमेरिका द्वारा रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध के बाद, ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने कानूनी सलाह लेना शुरू कर दिया है। प्रतिबंध वैंकोरनेफ्ट पर लगाए गए हैं, जिसमें भारतीय कंपनियों की भी हिस्सेदारी है। ओवीएल यह सुनिश्चित करना चाहती है कि वह अनजाने में भी अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन न करे। भारतीय कंपनियों को डिविडेंड मिलता है।

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    नई दिल्ली। अमेरिका द्वारा रूस की तेल कंपनियों पर नए प्रतिबंध लगाए जाने के बाद ONGC Videsh Ltd (OVL) ने कानूनी सलाह लेना शुरू कर दिया है। मामला इसलिए अहम है क्योंकि जिस रूसी तेल क्षेत्र वैनकोरनेफ्ट (Vankorneft) पर प्रतिबंध लगाया गया है, उसमें भारतीय कंपनियों की भी हिस्सेदारी है।

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    दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 22 अक्टूबर को रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों Rosneft और Lukoil पर नए प्रतिबंधों की घोषणा की। इन प्रतिबंधों का मकसद रूस पर दबाव बनाना है ताकि वह यूक्रेन में चल रहे युद्ध को खत्म करे।

     

    अमेरिका के ट्रेजरी विभाग के ऑफिस ऑफ फॉरेन एसेट्स कंट्रोल (OFAC) ने उन सभी कंपनियों को ब्लॉक्ड लिस्ट में डाला है जिनमें Rosneft या Lukoil की 50% या उससे अधिक हिस्सेदारी है। इस सूची में CJSC Vankorneft का नाम भी शामिल है, जिसमें OVL की 26% और Oil India, Indian Oil और Bharat PetroResources की कुल 23.9% हिस्सेदारी है। बाकी 50.1% हिस्सा Rosneft के पास है।

     

    यानी तकनीकी रूप से भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी 50% से कम है, इसलिए OFAC के नियम सीधे तौर पर उन पर लागू नहीं होते। लेकिन फिर भी, OVL कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। इसलिए उसने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह की लॉ फर्मों से कानूनी राय मांगी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारतीय कंपनियां अनजाने में भी किसी अमेरिकी प्रतिबंध का उल्लंघन न करें।

     

    सूत्रों के मुताबिक, भारतीय कंपनियां इस परियोजना से कोई ऑयल शेयर यानी तेल का सीधा हिस्सा नहीं लेतीं। उन्हें सिर्फ डिविडेंड (लाभांश) मिलता है, जो तेल और गैस की बिक्री से होने वाली कमाई पर आधारित होता है।

     

    हालांकि रूस पर पहले से लागू प्रतिबंधों की वजह से भारतीय कंपनियां पिछले तीन साल से अपना डिविडेंड भारत नहीं ला पाई हैं। बताया जा रहा है कि करीब 1.4 अरब डॉलर (लगभग ₹11,600 करोड़) अब भी उनके रूसी खातों में फंसे हुए हैं।

     

    विशेषज्ञों के अनुसार, अगर किसी भी तरह से अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन हुआ माना गया तो भारतीय कंपनियों को विदेशी फंडिंग जुटाने में दिक्कत आ सकती है और उनके अंतरराष्ट्रीय डॉलर ट्रांजैक्शन पर भी असर पड़ सकता है।