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    US ने कहा - नहीं देंगे गेहूं, शास्त्री जी ने दिया था मुंहतोड़ जवाब..., फिर इस शख्स की वजह से भारत बना गेहूं का किंग

    Updated: Thu, 07 Aug 2025 12:48 PM (IST)

    Father of Indian Green Revolution आज भारत के हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) की जन्म जयंती है। उन्होंने भारत को गेहूं और अन्य फसलों में आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभाई। एक समय था जब भारत को अमेरिका ने गेहूं की सप्लाई रोकने की धमकी दी थी। तब स्वामीनाथन ने भारत में हरित क्रांति लाने का काम किया।

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    एम एस स्वामीनाथन भारत के हरित क्रांति के जनक

    नई दिल्ली। आज भारत के पास इतना गेहूं है कि कई सारे देशों को निर्यात करता है। लेकिन एक समय ऐसा भी था कि जब भारत में अकाल पड़ा था। वो साल 1965 का। एक तरफ पाकिस्तान से युद्ध चल रहा था। दूसरी ओर मौसम की मार ने हमें और तोड़ दिया था। खेती-किसानी बहुत प्रभावित हुई थी। भारत अपनी जरूरत के लिए अमेरिका से गेहूं लिया करता था। लेकिन युद्ध के चलते अमेरिका ने भारत को धमकी दी। भारत ने उसी की भाषा में उसका जवाब दिया। फिर भारत में आई हरित क्रांति, जिसने हिंदुस्तान को गेहूं का ही किंग बना दिया। आइए इस कहानी का विस्तार से आसान भाषा में समझते हैं। ये कहानी है भारत के हरित क्रांति (Indian Green Revolution) के जनक कहे जाने वाले डॉक्टर एस एस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) की। आज उनकी जन्म जयंती है। इस अवसर पर पूरा भारत उन्हें याद कर रहा है। आइए जानते हैं कि उन्होंने कैसे भारत को गेहूं में आत्मनिर्भर बनाया।

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    अमेरिका को शास्त्री जी ने दिया था तगड़ा जवाब

    1962 में भारत को चीन के साथ हुए युद्ध में काफी नुकसान हुआ था। हम खुद को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे थे। उस समय तक हम कृषि में इतने उन्नत नहीं थी। हम कई चीजों को दूसरे देशों से आयात करते थे। अमेरिका हमें गेहूं सप्लाई करता था। चीन के साथ युद्ध में हुए नुकसान से हम उबर रहे थे कि मौका पाकर पाकिस्तान ने हम पर हमला कर दिया। भारत ने इस हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया।

    जवाब ऐसा कि हिंदुस्तान की सेना पाकिस्तान के लाहौर तक घुस गई। पाकिस्तान, अमेरिका के आगे गिड़गिड़ाया। इसके बाद युद्ध रुकवाने के लिए अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाया। उस समय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन ने भारत के प्रधानमंत्री से कहा युद्ध रोक दो नहीं तो गेहूं नहीं देंगे। अमेरिका को लगा कि उसकी धमकी काम कर जाएगी। लेकिन शास्त्री जी ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए कहा कि रोक दो। इतना ही नहीं उन्होंने तो अमेरिका से गेहूं लेने से साफ मना कर दिया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया। फिर देश में उठी हरित क्रांति की बयार और नाम आया डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन का।

    अब तक आपने पढ़ा कि भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत पर कैसा दबाव बनाने की कोशिश की और भारत के तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया। अब इसके बाद बारी थी कृषि में फ्यूल डालने की। देश में गेहूं और अन्य फसलों के उत्पादन को बढ़ाने की। इसी की जिम्मेदारी ली डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन ने।

    भारत में ऐसे आई थी हरित क्रांति 

    1954 में स्वामीनाथन ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में काम करना शुरू किया। यहां वह शोध उर्वरकों के व्यापक उपयोग के माध्यम से चावल और गेहूं का उत्पादन बढ़ाने पर काम कर रहे थे।

    1960 के दशक के आरंभ में, स्वामीनाथन ने बोरलॉग के साथ मिलकर भारत के पर्यावरण के अनुकूल गेहूं के बीजों की किस्में विकसित कीं। बोरलॉग से मैक्सिकन गेहूं की किस्मों का एक बैच प्राप्त करने के बाद, उन्होंने उनकी व्यवहार्यता का परीक्षण करने के लिए प्रयोग किए। वे उच्च उपज देने वाली और रोग-प्रतिरोधी साबित हुईं। इसके बाद, उन्होंने किसानों, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा राज्यों के किसानों को मैक्सिकन किस्मों को अपनाने के लिए प्रेरित करने का प्रयास शुरू किया।

    इन राज्यों में भारत में गेहूं की खेती के लिए अनुकूल जलवायु परिस्थितियां थीं। 1966 में, उन्होंने भारत सरकार को इन उच्च उपज देने वाले बीजों के 18,000 टन खरीदने के लिए राजी किया, जिससे भारत में हरित क्रांति का जन्म हुआ।

     उस समय भारत गंभीर खाद्य संकट से जूझ रहा था और अपनी बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए खाद्य सहायता और आयात पर निर्भर था। ऐसे में भारत के लिए हरित क्रांति की दिशा में बहुत बड़ा कदम साबित हुा।

    डबल हो गया गेहूं का उत्पादन

    जिन किसानों ने मैक्सिकन गेहूं की किस्मों का इस्तेमाल किया, उनकी पैदावार और मुनाफे में भारी वृद्धि हुई। भारत का गेहूं उत्पादन 1964 में 1.2 करोड़ टन से बढ़कर 1970 में 2 करोड़ टन हो गया। एक साल बाद भारत सरकार ने देश को अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर घोषित कर दिया।

    इसके साथ-साथ भात  में आधुनिक कृषि पद्धतियां—जैसे उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग, उन्नत सिंचाई तकनीकें, और खेती का मशीनीकरण—व्यापक रूप से प्रचलित हो गईं।

    चावल का भी उत्पादन बढ़ा

    गेहूं उत्पादन बढ़ाने में स्वामीनाथन की सफलता ने चावल की खेती में उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने चावल की कई नई किस्मों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसने भारत के चावल उत्पादन को पूरी तरह बदल दिया।

    भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक

    आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। अमेरिका की फॉरेन एग्रीकल्चर सर्विस के अनुसार भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 में 113.29 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन किया। वहीं, चीन ने 140.1 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन किया। वहीं, यूरोपियन यूनियन ने 122.12 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन किया था।

    इस राज्य में जन्मे थे एम.एस. स्वामीनाथन

    एम.एस. स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के  कुंभकोणम में हुआ था। उनकी मृत्यु 28 सितंबर, 2023, चेन्नई, तमिलनाडु में हुई थी।1930 के दशक में अपने परिवार के खेत में पले-बढ़े स्वामीनाथन ने किसानों के संघर्षों को अपनी आंखों से देखा, जो खराब फसल पैदावार, असहनीय कर्ज और अत्यधिक गरीबी के चक्र में फंसे हुए थे।

    1943 के बंगाल के अकाल ने, जिसमें लाखों लोगों की जान चली गई, उनमें भारत के खाद्य संकट से निपटने की तत्काल आवश्यकता पैदा कर दी। इन सभी घटनाओं का स्वामीनाथन पर गहरा असर पड़ा और उन्होंने  कृषि विज्ञान में अपना करियर बनाने की सोची। लेकिन उनका परिवार चाहता था कि वो सर्जन बने। हालांकि, उन्होंने कृषि को ही अपना पेशा चुना।

    उन्होंने आनुवंशिकी और पादप प्रजनन में डॉक्टरेट और पोस्ट डॉक्टरेट सहित कई डिग्रियां प्राप्त कीं। 1949 में, स्वामीनाथन को आलू की फसलों को पाले और कीटों के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनाने के तरीकों पर शोध करने के लिए संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) से फेलोशिप प्रदान की गई। और आगे चलकर वह भारत के हरित क्रांति के पितामह कहलाए।

    इन पदों पर रहते हुए स्वामीनाथन ने निभाई अहम जिम्मेदारी

    भारत में हरित क्रांति लाने वाले एम एस स्वामीनाथन 1961-72 तक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक रहे थए। इसके बाद 1972 से 1979 तक वह महानिदेशक रहे। 1982 से 1988 तक वह अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक रहे।

    1984 से 1990 तक वह अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ  के अध्यक्ष रहे। 1989 से 1996 तक वह विश्व प्रकृति निधि के अध्यक्ष रहे। 2004 से 2006 तक वह राष्ट्रीय कृषि आयोग के अध्यक्ष रहे। और 2007 से 2013 तक वह राज्यसभा के सांसद रहे।