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    अमेरिका में दवा के नए प्राइसिंग नियम लागू हुए तो भारत में भी कीमतों पर होगा असर, जानिए कैसे

    Trump pharma order impact अमेरिका में दवा कंपनियों ने 30 दिन में दाम नहीं घटाए तो ट्रंप प्रशासन नए नियम लागू करेगा। जहां तक जेनरिक दवा कंपनियों की बात है तो भारत की दवा इंडस्ट्री का कहना है कि उन पर इसका असर नहीं होगा। लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अमेरिका में रेवेन्यू में नुकसान हुआ तो वे इसकी भरपाई भारत जैसे देशों से कर सकती हैं।

    By Jagran News Edited By: Sunil Kumar Singh Updated: Tue, 13 May 2025 06:12 PM (IST)
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    ट्रंप के आदेश से क्या भारत में बढ़ेंगे दवाओं के दाम?

    नई दिल्ली। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दवा कंपनियों को अमेरिका में प्रेसक्रिप्शन दवाओं के दाम घटाने का आदेश (Trump pharma order) दिया है। एक महीने में इन दवाओं के दाम 59% से 90% तक घटाने का आदेश है। ट्रंप के इस आदेश से अमेरिकी नागरिकों को तो फायदा मिलेगा, लेकिन सवाल है कि इसका भारत जैसे देशों में दवा की कीमतों (impact on Indian medicine prices) पर क्या असर होगा।

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    ट्रंप ने मोस्ट फेवर्ड नेशन के नए प्राइसिंग नियम (US drug pricing rules) की भी बात कही है। इसके अनुसार, अगर 30 दिन में दवा कंपनियां दाम नहीं घटाती हैं तो किसी दवा की दुनिया के बाकी देशों में जो सबसे कम कीमत होगी, वही कीमत अमेरिका में भी लागू होगी। इसलिए कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि फार्मा कंपनियां भारत जैसे देशों में अपने प्रोडक्ट के दाम बढ़ाने के लिए दबाव डाल सकती हैं।

    भारत में दवा कीमतों पर क्या होगा असर

    ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार मोस्ट फेवर्ड नेशन प्राइसिंग नियम लागू होने पर बाकी दुनिया में दवा कीमतें नए सिरे से तय करने का सिलसिला शुरू हो सकता है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय दवा कंपनियां भारत जैसे कम कीमत वाले बाजारों में अपनी दवाओं के नाम बढ़ाने के लिए दबाव डाल रही हैं। इसके लिए ट्रेड वार्ताओं में पेटेंट नियमों को सख्त करने के लिए कहा जा रहा है।

    कंपनियों का तर्क है कि मोस्ट फेवर्ड नेशन नियम में सबसे कम कीमत का फॉर्मूला लागू किया जाएगा। इसलिए अगर दूसरे देशों में भी दवा के दाम कुछ बढ़ते हैं, तो अमेरिका में उन्हें अपने प्रोडक्ट की कीमत कम घटनी पड़ेगी।

    कंसल्टेंसी फर्म ईवाई के टैक्स पार्टनर सौरभ अग्रवाल ने भी कहा कि इससे अमेरिकी कंज्यूमर को तो काफी बचत होगी, लेकिन इंडस्ट्री पर दबाव बढ़ने से कंपनियां कम लागत वाले देशों में दाम बढ़ा सकती हैं। दवा बनाने वाली कंपनियां अमेरिका में रेवेन्यू में नुकसान की भरपाई और आरएंडडी के लिए इन देशों में अपने प्रोडक्ट के दाम बढ़ाएंगी।

    भारतीय कंपनियों के बिजनेस पर प्रभाव नहीं

    हालांकि जेनरिक दवा बनाने वाली भारतीय कंपनियों का कहना है कि इस आदेश का उन पर कोई खास असर नहीं होगा, लेकिन इनोवेटर ड्रग कंपनियां इससे प्रभावित होंगी। इंडियन फार्मास्यूटिकल एलायंस (IPA) के सेक्रेटरी जनरल सुदर्शन जैन ने एक बयान में कहा कि जेनेरिक इंडस्ट्री बहुत ही कम मार्जिन पर काम करती है। अमेरिका में 90% प्रेसक्रिप्शन दवाएं जेनेरिक होती हैं, हालांकि उनकी मार्केट वैल्यू सिर्फ 13% है।

    लोगों को सस्ती दवाई उपलब्ध कराने में जेनरिक इंडस्ट्री की महत्वपूर्ण भूमिका है। जैन के अनुसार ट्रंप के आदेश में इस बात पर जोर दिया गया है कि इनोवेशन की लागत का बोझ सभी स्टेकहोल्डर पर समान रूप से लागू होना चाहिए। आईपीए 23 प्रमुख भारतीय दवा कंपनियों का संगठन है। ये कंपनियां बड़े पैमाने पर दवा का निर्यात भी करती हैं।

    भारत जेनरिक दवाओं का सबसे बड़ा सप्लायर है। ग्लोबल सप्लाई में भारत की हिस्सेदारी 20% के आसपास है। यहां 60 थैरेप्यूटिक कैटेगरी में लगभग 60,000 जेनरिक ब्रांड की दवाएं बनती हैं। भारत में बनी दवाएं लगभग 200 देशों को निर्यात की जाती हैं। इनमें अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे विकसित देश भी हैं।

    भारत पर पेटेंट नियम बदलने का दबाव

    GTRI के श्रीवास्तव के अनुसार, भारत के दवा कानून WTO के ट्रिप्स समझौते के मुताबिक हैं। भारत लंबे समय से ‘ट्रिप्स प्लस’ प्रावधान का विरोध करता रहा है। इस प्रावधान के तहत विकसित देश मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के माध्यम से अतिरिक्त पेटेंट सुरक्षा का दबाव डाल रहे हैं। इसमें डेटा एक्सक्लूसिविटी, पेटेंट अवधि का ऑटोमेटिक विस्तार, पेटेंट लिंकेज, पेटेंट का दायरा बढ़ाना और एवरग्रीनिंग प्रैक्टिस शामिल हैं।

    भारत इन प्रावधानों का विरोध करता है। उदाहरण के लिए, भारत में डेटा एक्सक्लूसिविटी की अनुमति नहीं है। यहां रेगुलेटरी बॉडी को पहले से मौजूद क्लिनिकल ट्रायल डेटा के आधार पर जेनरिक दवा को मंजूरी देने की इजाजत है। इससे किसी दवा को मंजूरी देने में कम समय लगता है। भारत में पेटेंट लिंकेज भी स्वीकार्य नहीं है। यहां रेगुलेटरी अप्रूवल को पेटेंट लागू करने से अलग रखा गया है। इससे अनावश्यक कानूनी अड़चनें दूर करने में मदद मिलती है। भारतीय पेटेंट कानून की धारा 3(डी) में एवरग्रीनिंग की इजाजत नहीं है। अर्थात पुरानी दवा में मामूली संशोधन करके पेटेंट की अवधि का विस्तार नहीं किया जा सकता है।

    श्रीवास्तव का कहना है कि भारत की पेटेंट व्यवस्था इनोवेशन विरोधी नहीं है। बल्कि यह व्यवस्था दवा की पहुंच और कम कीमत पर उपलब्धता को आसान बनाती है। भारतीय पेटेंट कानून वास्तविक इनोवेशन को बढ़ावा देने और एकाधिकार पर अंकुश लगाने वाले हैं। पारंपरिक ज्ञान की रक्षा करके, एवरग्रीनिंग को खारिज करके और बौद्धिक संपदा नीतियों के केंद्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य को रखकर भारत जेनरिक दवा उत्पादन में ग्लोबल लीडर बना है। भारत सिर्फ अपने लोगों को कम कीमत पर जीवन रक्षक दवाएं सुलभ नहीं कराता, बल्कि विकासशील जगत की बड़ी आबादी को वह इन्हें उपलब्ध कराता है।