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    सच नहीं है भारत के साथ व्यापार घाटे का ट्रंप का दावा, सरप्लस में है अमेरिका, जानिए कैसे

    Updated: Mon, 26 May 2025 06:52 PM (IST)

    अमेरिका के राष्ट्रपति Donald Trump भारत के साथ व्यापार आंकड़ों में जिन गुड्स एंड सर्विसेज का हवाला देते हैं उनमें 80 से 85 अरब डॉलर के बिजनेस शामिल नहीं होते। उन आंकड़ों को शामिल किया जाए तो भारत के साथ अमेरिका को व्यापार घाटा नहीं बल्कि वह सरप्लस में होगा। फिर भी ट्रंप भारत पर tariff king होने का आरोप लगाकर टैरिफ घटाने का दबाव बना रहे हैं।

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    सच नहीं है भारत के साथ व्यापार घाटे का ट्रंप का दावा, सरप्लस में है अमेरिका

    नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार व्यापार घाटे का मुद्दा उठाकर भारत पर ‘टैरिफ किंग’ होने का आरोप लगाते रहे हैं। उनका दबाव है कि भारत अमेरिका से आयात पर टैरिफ घटाए। लेकिन व्यापार घाटे का उनका दावा आधे-अधूरे तथ्यों पर आधारित है। आइए जानते हैं कैसे।

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    थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अनुसार (GTRI) अमेरिका को शिक्षा, डिजिटल सर्विसेज, फाइनेंशियल ऑपरेशंस और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी की रॉयल्टी आदि से हर साल 80 से 85 अरब डॉलर मिलते हैं। अगर इन आंकड़ों को शामिल किया जाए तो अमेरिका, भारत के साथ व्यापार घाटे में नहीं, बल्कि 35 से 40 अरब डॉलर सरप्लस में है।

    क्या है ट्रंप के दावे की हकीकत

    ट्रंप ने 13 फरवरी 2025 को दावा किया था कि भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर का है। यह आंकड़ा गलत था। भारत सरकार (DGCI&S) के आंकड़ों के अनुसार 2024-25 में दोनों देशों के बीच 186 अरब डॉलर का कारोबार हुआ। भारत ने अमेरिका को 86.5 अरब डॉलर की वस्तुओं का निर्यात किया और अमेरिका से 45.3 अरब डॉलर का आयात किया। इस तरह वस्तु निर्यात में भारत 41 अरब डॉलर के सरप्लस में था। सर्विसेज के मामले में भारत ने 28.7 अरब डॉलर का निर्यात किया जबकि आयात 25.5 अरब डॉलर का था। इसमें भारत 3.2 अरब डॉलर सरप्लस की स्थिति में था। इस तरह कुल सरप्लस भारत के पक्ष में 44.4 अरब डॉलर का निकलता है।

    आंकड़ों में ये बिजनेस शामिल नहीं

    लेकिन इन आंकड़ों में कई महत्वपूर्ण बिजनेस शामिल नहीं हैं। अमेरिका को भारत से हायर एजुकेशन सेक्टर में काफी आय होती है। अमेरिका में पढ़ने वाले भारतीय स्टूडेंट हर साल करीब 25 अरब डॉलर खर्च करते हैं- 15 अरब डॉलर ट्यूशन फीस के रूप में और बाकी 10 अरब डॉलर वहां रहने का खर्च होता है। भारतीय छात्रों का साल का खर्च 87,000 से 142,000 डॉलर तक होता है। इस तरह एजुकेशन अमेरिका की तरफ से भारत को सबसे बड़े निर्यात में एक है।

    गूगल, मेटा, अमेजन, एपल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी दिग्गज कंपनियों को भारत के डिजिटल मार्केट से हर साल 15 से 20 अरब डॉलर की आय होती है। यह रेवेन्यू उन्हें डिजिटल एडवर्टाइजमेंट, क्लाउड सर्विसेज, ऐप स्टोर, सॉफ्टवेयर और डिवाइस की बिक्री तथा स्ट्रीमिंग सब्सक्रिप्शन से होती है। इसका बड़ा हिस्सा वापस अमेरिका चला जाता है। सिटीबैंक, जेपी मॉर्गन, गोल्डमैन सैक्स, मैकेंजी, बीसीजी, डेलॉय, पीडब्लूसी और केपीएमजी जैसे अमेरिकी बैंक और कंसल्टिंग फर्म भारत से हर साल 10 से 15 अरब डॉलर का रेवेन्यू हासिल करती हैं।

    अमेरिका के लिए आय का एक और बड़ा स्रोत ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) हैं। वॉलमार्ट, डेल, आईबीएम, वेल्स फार्गो, सिस्को और मॉर्गन स्टैनले जैसी कंपनियां बेंगलुरु और हैदराबाद में जीसीसी चला रही हैं। इनका ज्यादातर काम भारत में होता है लेकिन इनकी इकोनॉमिक वैल्यू अमेरिका को जाती है जो 15 से 20 अरब डॉलर सालाना है।

    फाइजर, जॉन्सन एंड जॉन्सन, मर्क जैसी अमेरिकी दवा कंपनियों को पेटेंट, ड्रग लाइसेंसिंग और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से हर साल डेढ़ से दो अरब डॉलर मिलते हैं। फोर्ड और जीएम जैसी ऑटोमोबाइल कंपनियां तथा कंपोनेंट सप्लायर लाइसेंसिंग और टेक्निकल सर्विसेज से 0य8 से 1.2 अरब डॉलर हासिल करती हैं। हॉलीवुड तथा अमेरिका के स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म को भारत में बॉक्स ऑफिस, सब्सक्रिप्शन तथा कंटेंट लाइसेंसिंग से हर साल एक से डेढ़ अरब डॉलर मिलते हैं। भारत को अमेरिका रक्षा क्षेत्र में भी अरबों डॉलर की बिक्री करता है, जिसके आंकड़े अक्सर गोपनीय होते हैं।

    ट्रेड वार्ता में भारत आंकड़ों की हकीकत बताएः GTRI

    ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि भारत को अमेरिका के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की बातचीत में पूरे विश्वास के साथ जाना चाहिए और अमेरिका की तरफ से बढ़ा-चढ़ाकर किए जा रहे घाटे के दावे का विरोध करना चाहिए।

    अगर अमेरिका फिर भी ट्रेड डेफिसिट पर फोकस करता है तो भारत को भी बातचीत टैरिफ तक सीमित रखनी चाहिए। सरकारी खरीद, डिजिटल ट्रेड, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी तथा दूसरे मामलों में बातचीत से इनकार करना चाहिए। श्रीवास्तव के अनुसार जिन सेक्टर से व्यापार संतुलन का कोई लेना-देना नहीं है, उनमें अमेरिका को बड़ी रियायत देने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि इससे अमेरिका का ट्रेड सरप्लस और बढ़ जाएगा।

     

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