Crude Oil: चार साल के निचले स्तर पर क्रूड, एक महीने में 10 डॉलर प्रति बैरल की आई कमी
वैश्विक अनिश्चितता के बीच कच्चे तेल की कीमत 62 डालर प्रति बैरल के साथ चार साल के निचले स्तर पर आ गई है। जानकारों का मानना है कि कच्चे तेल में होने वाली इस गिरावट से पाकिस्तान के साथ युद्ध के इस माहौल में भारत को वित्तीय मजबूती मिलेगी। वर्तमान वैश्विक हालात को देखते हुए कच्चे तेल के दाम में बढ़ोतरी के आसार नहीं दिख रहे हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वैश्विक अनिश्चितता के बीच कच्चे तेल की कीमत 62 डालर प्रति बैरल के साथ चार साल के निचले स्तर पर आ गई है। जानकारों का मानना है कि कच्चे तेल में होने वाली इस गिरावट से पाकिस्तान के साथ युद्ध के इस माहौल में भारत को वित्तीय मजबूती मिलेगी।
देश के जीडीपी विकास तक को प्रभावित करती है कच्चे तेल की कीमत
कच्चे तेल की कीमत देश के जीडीपी विकास तक को प्रभावित करती है, तभी सरकार की तरफ से जीडीपी विकास दर का अनुमान लगाते समय कच्चे तेल के औसतन सालाना दाम को ध्यान में रखा जाता है।
वर्तमान वैश्विक हालात को देखते हुए कच्चे तेल के दाम में बढ़ोतरी के आसार नहीं दिख रहे हैं। पिछले एक माह में कच्चे तेल के दाम में 10 डालर प्रति बैरल की गिरावट आई है, जिससे भारत के आयात बिल को कम करने और राजस्व बढ़ाने में मदद मिलेगी।
पेट्रोलियम वस्तुओं का आयात इतना रहा
भारत के आयात बिल में पेट्रोलियम आयात की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत है और हर साल पेट्रोलियम आयात बिल बढ़ता जा रहा है। गत वित्त वर्ष 2024-25 में पेट्रोलियम वस्तुओं का आयात 185 अरब डॉलर रहा। भारत का कुल वस्तु आयात 720 अरब डॉलर का था। इससे पूर्व के वित्त वर्ष 2023-24 में पेट्रोलियम आयात 178 अरब डॉलर का था।
पेट्रोलियम आयात बिल में कमी आना तय
पिछले वित्त वर्ष में कच्चे तेल की कीमत 71-85 डालर प्रति बैरल के स्तर पर थी। इस हिसाब से चालू वित्त वर्ष 2025-26 में पेट्रोलियम आयात बिल में कमी आना तय है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में मजबूती के साथ रुपये को मजबूत होने में मदद मिलेगी।
एक बार फिर से उत्पाद कर में हो सकती है वृद्धि
कच्चे तेल की वैश्विक कीमत में कमी को देखते हुए सरकार ने पिछले माह पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले उत्पाद कर में दो-दो रुपये की बढ़ोतरी की थी। 62 डालर प्रति बैरल पर कीमत को देखते हुए एक बार फिर से सरकार की तरफ से उत्पाद कर में बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है।
पेट्रोल और डीजल के उत्पाद कर में एक-एक रुपये की बढ़ोतरी से सरकार के राजस्व में सालाना 1600 करोड़ तक की बढ़ोतरी होती है। हालांकि उत्पाद कर में बढ़ोतरी का भार आम उपभोक्ता पर नहीं डाला जाएगा, क्योंकि कच्चे तेल के दाम में कमी से पेट्रोलियम कंपनियों के मार्जिन में बढ़ोतरी हो जाती है।
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