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    फायदे की बात: प्रॉपर्टी खरीदने से पहले जान लें ये 10 जरूरी बातें

    कई बार ब्रोशर्स और डेवलपर की बड़ी-बड़ी बातों के झांसे में आकर ग्राहक भारी भूल कर बैठते हैं। ऐसे में हम आपको 10 ऐसी जानकारियां बताने जा रहे हैं जिसके बाद आप कभी भी प्रॉपर्टी खरीदते समय धोखा नहीं खाएंगे।

    By MMI TeamEdited By: Updated: Fri, 09 Sep 2016 08:00 AM (IST)

    नई दिल्ली: अपना घर खरीदना हर किसी का सपना होता है। इसे खरीदने के लिए लोग अपने जीवनभर की जमा पूंजी लगा देते हैं। ऐसे में अगर आप प्रॉपर्टी खरीदने का मन बना रहे हैं तो पहले कुछ बातों को जान लेना आपके लिए काफी अहम हो जाता है। क्योंकि कई बार ब्रोशर्स और डेवलपर की बड़ी-बड़ी बातों के झांसे में आकर हम भारी भूल कर बैठते हैं और फिर पछताते हैं। ऐसे में हम आपको 10 ऐसी जानकारियां बताने जा रहे हैं जिनको जान लेने के बाद आप कभी भी फ्लैट या मकान खरीदने के दौरान धोखा नहीं खाएंगे। फ्लैट खरीदने के दौरान आप इन 10 अहम बातों पर गौर कर सकते हैं।

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    जमीन की रजिस्ट्री सबसे पहले मांगे

    अगर आप घर खरीद रहे हैं तो बिल्डर और डेवलपर से सबसे पहले रजिस्ट्री मांगनी चाहिए। ऐसा कर आप यह जान पाएंगे कि जिस जमीन पर आपका मकान या फ्लैट बना है उसपर कोई कानूनी विवाद तो नहीं चल रहा है। बैंक सिर्फ उन्हीं जमीनों पर लोन देता है जिसपर किसी भी तरह का कोई विवाद नहीं है।

    प्रोजेक्ट के अप्रूव्ड लेआउट मैप को देखें

    किसी बिल्डर को किसी भी प्रोजेक्ट में कितने टावर, फ्लैट और मंजिल बनाने की मंजूरी मिली है यह बात अथॉरिटी की ओर से अप्रूव्ड लेआउट मैप को देखकर साफ पता चल जाती है। इसमें किसी फ्लैट या प्रोजेक्ट में इस्तेमाल होने वाली कुल जगह का स्पष्ट ब्यौरा होता है। ये सारी बातें कंपनी के ब्रॉशर में साफ नहीं हो पाती हैं।

    लोकेशन और वास्तविक फ्लैट विजिट करें

    ब्रॉशर में दिए गए फ्लैट के एरिया पर भरोसा नहीं करना चाहिए। जिस जगह प्रोजेक्ट बन रहा है वहां खुद जाकर विजिट करना जरूरी होता है। ऐसा करने से आप अपने फ्लैट में इस्तेमाल होने वाले रॉ मैटेरियल (कच्चे माल) को देख पाएंगे। साथ ही आपको आसपास की लोकेशन के बारे में भी जानकारी मिलेगी। जैसे घर से अस्पताल, स्कूल, बाजार, रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड जैसी जगहों की दूरी कितनी है इत्यादि। केवल ब्रॉशर के भरोसे रहने से आप गलतफहमी के शिकार हो सकते हैं।

    बिल्ट-अप एरिया, सुपर एरिया और कार्पेट एरिया तो समझें

    खरीदार कई बार फ्लैट में लिखे सुपर एरिया को अपने फ्लैट का साइज मानकर फ्लैट की बुकिंग कर देते हैं। जबकि असल फ्लैट इससे काफी कम होता है। ऐसे में ग्राहकों को बिल्ट-अप, सुपर और कार्पेट एरिया के सही मायने समझ लेने चाहिए। कार्पेट एरिया उस एरिया को कहते है जहां आप कार्पेट बिछा सकें। इस एरिया में फ्लैट की दीवारें शामिल नहीं होती हैं। यह फ्लैट के अंदर का खाली स्थान होता है। बिल्ट-अप एरिया में फ्लैट की दीवारों को लेकर मापा जाता है, यानि इसमें कार्पेट एरिया के साथ-साथ पिलर, दीवारें और बालकनी जैसी जगह शामिल होती हैं। वहीं सुपर एरिया उस एरिया को कहते हैं, जिसमें उस प्रोजेक्ट के अंदर कॉमन यूज की चीजें को शामिल किया जाता है जैसे जेनरेटर रूम, पार्क, जिम, स्वीमिंग पूल, लॉबी, टेनिस कोर्ट आदि। आमतौर पर सभी बिल्डर्स फ्लैट को सुपर एरिया के आधार पर बेचते हैं।

    अपने पजेशन टाइम का रखें विशेष ध्यान

    अधिकांश बिल्डर्स और डेवलपर प्रोजेक्ट के पजेशन टाइम में 6 महीने का ग्रेस पीरियड भी जोड़ देते हैं। ऐसे में किसी भी ग्राहक का पजेशन टाइम दो साल की जगह 30 महीने हो जाता है। पजेशन डेट से 6 महीने देरी से पजेशन देने के बाद डेवलपर्स इसको लेट प्रोजेक्ट की श्रेणी में नहीं डालते हैं। ऐसे में ग्राहक बिल्डर या डेवलपर्स से लेट पजेशन की पेनल्टी भी चार्ज नहीं कर पाते हैं।

    पेनल्टी क्लॉज को ध्यानपूर्व पढ़े

    तय समय तक प्रोजेक्ट पर पजेशन न दे पाने पर डेवलपर्स ग्राहकों को पेनल्टी देने का प्रावधान रखते हैं। अधिकांश डेवलपर्स पजेशन तक ग्राहकों की ओर से भुगतान की जाने वाली किसी एक भी किश्त में देरी होने पर पनेल्टी न देने की शर्त रखते हैं। पूरे 2 साल के दौरान ग्राहकों के पास कई बार डिमांड ऑर्डर आते हैं। अगर ग्राहक किसी एक भी पेमेंट डेट से चूक जाता है तो डेवलपर्स पेनल्टी देने में तरह-तरह के बहाने बनाते हैं।

    पेमेंट स्कीम को अच्छे से समझें

    डेवलपर्स बड़े-बड़े ब्रैंड एंबेसडर और ईजी पेमेंट प्लान की मदद से ग्राहकों को आकर्षित करने कोशिश करते हैं। इनमें 10 फीसदी बुकिंग अमाउंट बाकी पजेशन पर, 12/24/42 महीनों के लिए ब्याबज छूट, 20:80 स्कीऔम (बिना बैंक फंडिंग के), 20:80’ / ‘10:90’ / ‘8:92’ / ‘5:95’ जैसी स्कींम्स काफी लोकप्रिय हैं। इन सभी स्कीमों की अपनी-अपनी महत्ता होती है। इससे फ्लैट के बुकिंग रेट और प्रोजेक्ट की कीमत पर भी काफी असर पड़ता है। इसलिए ग्राहकों को प्रॉपर्टी खरीदने से पहले इन सभी बारीकियों को सही से समझकर अपने लिए उचित पेमेंट स्कीम का चयन करना चाहिए।

    हिडन चार्जेज पर दे ध्यान

    बुकिंग करते समय कई तरह के चार्जेज का जिक्र बुकिंग एजेंट नहीं करता है। हिडन चार्जेज में पार्किंग चार्ज, सोसाइटी चार्ज, पावर बैक-अप जैसे चार्जेज को शामिल किया जाता है। इन सभी चार्जेज के बारे में बुकिंग के समय पर ही डेवलपर से सवाल कर समझ लें।

    डेवलपर की पिछली हिस्ट्री के बारे में करें पता

    जिस डेवलपर या बिल्डर के साथ आप अपना फ्लैट बुक करने जा रहे हैं उसकी ओर से पहले दिए जा चुके प्रोजेक्ट्स को जरुर देखें। इससे आपको कंस्ट्रक्शन क्वॉलिटी, समय से पजेशन देना, बिल्डर का प्रदर्शन जैसी चीजों को समझने में मदद मिल जाती है।

    सुनिश्चित करें कि एक्सक्लेशन फ्री हों फ्लैट के रेट

    कई बार डेवलपर प्रोजेक्ट पर एक्सक्लेशन चार्जेज लगा देते हैं। जैसे सीमेंट, सरिया आदि कच्चे माल के दाम बढ़ने पर डेवलपर ग्राहकों के लिए फ्लैट की कीमत को बढ़ा देते हैं। ऐसे में ग्राहकों को बुकिंग के समय इस बात को सपष्ट कर लेना चाहिए कि फ्लैट पर किसी भी तरह के एक्सक्लेशन चार्जेज नहीं हैं।