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    TCS की ये कैसी नई पॉलिसी, लागू होते ही कर्मचारियों को सता रहा छंटनी का डर; जानें पूरा मामला

    Updated: Thu, 17 Jul 2025 06:42 PM (IST)

    टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS News) की नई बेंच पॉलिसी से हजारों कर्मचारी चिंतित हैं। पॉलिसी के अनुसार यदि कोई कर्मचारी 35 दिनों तक प्रोजेक्ट पर नहीं होता तो उसकी नौकरी खतरे में आ सकती है। कर्मचारियों को साल में 225 दिन किसी बिल योग्य प्रोजेक्ट पर होना अनिवार्य है अन्यथा सैलरी प्रमोशन पर असर पड़ सकता है।

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    भारत की सबसे बड़ी IT कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज।

     नई दिल्ली। भारत की सबसे बड़ी IT कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS News) की नई बेंच पॉलिसी ने हजारों कर्मचारियों की चिंता बढ़ा दी है। ये (tcs new policy) नई पॉलिसी 12 जून 2025 से लागू है। इस पॉलिसी के तहत, यदि कोई कर्मचारी 35 दिनों तक किसी प्रोजेक्ट पर नियुक्त नहीं होता है, तो उसकी नौकरी पर खतरा मंडराने लगता है। यह नियम सभी कर्मचारियों पर लागू होता है और इसे इस सप्ताह पहली बार पूरी तरह से लागू किया गया है।

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    क्या है TCS की नई पॉलिसी?

    TCS की नई डिप्लॉयमेंट पॉलिसी के मुताबिक, हर कर्मचारी को साल भर में कम से कम 225 बिजनेस डेज के लिए किसी न किसी बिल योग्य प्रोजेक्ट पर होना जरूरी है। इसका मतलब है कि एक साल में बिना किसी प्रोजेक्ट के केवल 35 दिन तक ही कोई कर्मचारी बेंच पर रह सकता है । यदि कोई कर्मचारी इस अवधि में किसी प्रोजेक्ट पर नहीं लगता, तो उसका करियर ठहराव का शिकार हो सकता है या उसे नौकरी से भी हाथ धोना पड़ सकता है।

    कंपनी ने स्पष्ट किया है कि लंबे समय तक बिना प्रोजेक्ट के रहना सैलरी, प्रमोशन, विदेश तैनाती और नौकरी की निरंतरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। साथ ही, बेंच पर रहते हुए कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से 4 से 6 घंटे का समय अपस्किलिंग प्लेटफॉर्म्स जैसे iEvolve, Fresco Play, VLS या LinkedIn लर्निंग पर देना होगा।

    क्या हैं फैक्टर मांग
    न्यूनतम बिल के लिए दिन सालाना 225 व्यावसायिक दिन
    अधिकतम बेंच समय सालाना 35 व्यावसायिक दिन
    पेनाल्टी वेतन, पदोन्नति, विदेश स्थानांतरण, रोजगार निरंतरता पर प्रभाव
    जिम्मेदारी

    आरएमजी के माध्यम से सक्रिय रूप से परियोजनाओं की तलाश करना

    बेंच समय के दौरान प्रतिदिन 4-6 घंटे का स्किल डेवलपमेंट; ऑफिस में रहना अनिवार्य

    सोशल मीडिया पर गूंज रही चिंता

    इस पॉलिसी के लागू होने के बाद से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, खासकर Reddit पर कर्मचारियों ने अपने अनुभव साझा किए हैं। कई लोगों का कहना है कि उन्हें अपनी विशेषज्ञता से इतर प्रोजेक्ट्स में जबरन डाला जा रहा है। एक फ्रेशर ने लिखा, “मुझे Java में ट्रेनिंग दी गई, लेकिन अब जब मुश्किल से एक महीना हुआ है, RMG मुझे सपोर्ट प्रोजेक्ट में डालने का दबाव बना रहा है, जो Java से संबंधित नहीं है।”

    कुछ कर्मचारियों का यह भी कहना है कि उन्हें अपने होम लोकेशन से काफी दूर तैनाती के प्रस्ताव दिए जा रहे हैं, जिससे उन्हें निजी और पेशेवर जीवन में संतुलन बनाना मुश्किल हो रहा है।

    क्या सभी कर्मचारी विरोध कर रहे हैं?

    नहीं। कुछ कर्मचारियों ने इस पॉलिसी का सपोर्ट भी किया है। उनका मानना है कि इससे उन लोगों की पहचान की जा सकेगी जो लंबे समय से बिना प्रोजेक्ट के बैठे हैं और खुद से पहल नहीं कर रहे। एक Reddit यूजर ने लिखा, “यह पॉलिसी कुछ अंडरपरफॉर्मिंग कर्मचारियों को हटाने में मदद करेगी, जो सालों से बिना वजह कंपनी से चिपके हुए हैं।”

    TCS मैनेजमेंट का पक्ष क्या है?

    TCS के CEO और MD कृतिवासन के मुताबिक यह नीति कोई नया कदम नहीं है, बल्कि एक मौजूदा प्रक्रिया को व्यवस्थित रूप देने की कोशिश है। हमेशा से अपेक्षा रही है कि कर्मचारी अपने करियर की जिम्मेदारी लें। HR समर्थन करता है, लेकिन असाइनमेंट खोजने की जिम्मेदारी कर्मचारी की भी है।

    उन्होंने यह भी जोड़ा कि कंपनी प्रोजेक्ट्स में नियुक्ति करते समय कर्मचारी की पसंद को ध्यान में रखती है, लेकिन अंतिम निर्णय क्लाइंट की मांग और स्किल्स के आधार पर होता है।

    क्यों आई यह नीति?

    विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक आर्थिक मंदी, ऑटोमेशन और AI के बढ़ते इस्तेमाल के चलते IT सेक्टर में मांग में गिरावट आई है। ऐसे में कंपनियां लागत घटाने और स्किल-सेट्स को नए जमाने की मांगों के अनुसार अपडेट करने की कोशिश कर रही हैं।

    कितने लोग हो सकते हैं प्रभावित?

    TCS ने प्रभावित कर्मचारियों की संख्या साझा नहीं की है, लेकिन इंडस्ट्री अनुमानों के अनुसार किसी भी समय 15-18 फीसदी IT कर्मचारी बेंच पर होते हैं। यह TCS की दुनियाभर की वर्कफोर्स लगभग 6.13 लाख है, ऐसे में लाखों लोग इस पॉलिसी के दायरे में आ सकते हैं।

    इस मुद्दे पर नसेंट इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इंप्लॉय सीनेट (NITES) ने श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया से हस्तक्षेप की मांग की है और इस नीति को "अमानवीय" और मानसिक स्वास्थ्य के लिए "हानिकारक" बताया है।

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