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    पुराने नोटों से कतराने लगे लोग

    By Edited By:
    Updated: Sat, 25 Jan 2014 10:18 PM (IST)

    मुंबई में टैक्सी चालकों ने वर्ष 2005 से पहले के नोटों को लेना बंद कर दिया है। पुरानी दिल्ली के बुलियन बाजार में एक एक नोट को चेक करने के बाद स्वीकार किया जा रहा है। नकदी कारोबार पर आश्रित अन्य कमोडिटी बाजार से भी कुछ ऐसी ही खबरें आ रही हैं। ये कुछ बानगी है कि किस तरह से रिजर्व बैंक ने आम जनता से जुड़े एक मुद्दे

    नई दिल्ली। मुंबई में टैक्सी चालकों ने वर्ष 2005 से पहले के नोटों को लेना बंद कर दिया है। पुरानी दिल्ली के बुलियन बाजार में एक एक नोट को चेक करने के बाद स्वीकार किया जा रहा है। नकदी कारोबार पर आश्रित अन्य कमोडिटी बाजार से भी कुछ ऐसी ही खबरें आ रही हैं।

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    ये कुछ बानगी है कि किस तरह से रिजर्व बैंक ने आम जनता से जुड़े एक मुद्दे पर बिना किसी तैयारी के अहम फैसला कर लिया। मुश्किल यह है कि आरबीआइ इस तरह का फैसला तो कर लेता है, लेकिन उसके असर को लेकर आम जनता को भरोसे में नहीं लिया जाता। अब भी केंद्रीय बैंक की तरफ से अपने फैसले की सही स्थिति बताने की कोई कोशिश नहीं की जा रही। समाचार माध्यमों में वर्ष 2005 से पहले के नोटों को स्वीकार नहीं करने की खबर आने के बाद आरबीआइ ने सफाई में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपने दायित्वों का इतिश्री कर ली है। लेकिन अभी इसका असर होता नहीं दिख रहा।

    सूत्रों के मुताबिक पूरे देश में कमोडिटी बाजार का 95 फीसद तक कारोबार नकदी होता है। लाखों के लेनदेन नकदी में होते हैं। रिजर्व बैंक के फैसले की खबर आने के बाद अब हर लेनदेन में इस्तेमाल हर नोट की पहचान करनी पड़ रही है। एक-एक नोट को उलट-पलट कर देखना बहुत ही झंझट भरा काम है। कुछ ऐसी ही समस्या का सामना दिल्ली के सराफा बाजार के दुकानदार भी कर रहे हैं। कमोडिटी बाजार के लोग पढ़े-लिखे होते हैं, जो वर्ष 2005 के पहले के नोटों की पहचान कर उसे बैंक में नए नोट में बदल सकते हैं। लेकिन मुंबई के टैक्सी चालकों ने अभी से इन नोटों को स्वीकारना बंद कर दिया है। आरबीआइ गवर्नर की यह सफाई भी दी है कि इन नोटों की वैधता को लेकर कोई संकट नहीं है, लेकिन इसे सुनने को कोई भी तैयार नहीं।

    आरबीआई वापस लेगा 2005 से पहले के नोट

    इससे पहले भी आरबीआइ ने इस तरह के मुद्दों पर कभी आम जन की राय जानने की कोशिश नहीं की है। आज से कुछ वर्ष पहले जब 25 और 50 पैसे के सिक्के को लोगों ने स्वीकार करना बंद कर दिया था, तब भी केंद्रीय बैंक से इस बारे में जागरूकता फैलाने की कोई कोशिश नहीं की गई। ज्यादा से ज्यादा आरबीआइ प्रेस विज्ञप्ति जारी कर देता है।