'भाई को गुजरे एक साल हुआ और...', Ratan Tata की बहनों ने क्यों जताई चिंता? बोलीं- खतरे में है टाटा ट्रस्ट
Ratan Tata के निधन के बाद, उनकी बहनों ने टाटा ट्रस्ट के भविष्य को लेकर चिंता जताई है। शिरीन जिजीभॉय और डीनना जिजीभॉय ने कहा कि रतन टाटा ट्रस्ट्स (tata trusts controversy) के भविष्य को लेकर चिंतित थे, और अब वही खतरे में है। उन्होंने मेहली मिस्त्री को हटाने पर भी असहमति जताई, और रतन टाटा की विरासत और मूल्यों को सुरक्षित रखने की अपील की। उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही शांति लौटेगी।
-1762175960387.webp)
शिरीन जिजीभॉय और डीनना जिजीभॉय रतन टाटा की सौतेली बहने हैं।
नई दिल्ली| टाटा ग्रुप के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) को गुजरे अभी एक साल ही हुआ है और टाटा ग्रुप के भीतरी विवाद (tata trusts controversy) खुलकर सामने आने लगे हैं। जिस पर रतन टाटा की बहनों ने खुलकर चिंता जताई है। शिरीन जिजीभॉय (Shireen Jejeebhoy) और डीनना जिजीभॉय (Deanna Jejeebhoy) ने का कहना है कि उन्हें टाटा ट्रस्ट का भविष्य खतरे में दिख रहा है।
मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, रतन टाटा के निधन के बाद दोनों बहनों ने पहली बार मीडिया से बात की और कहा कि रतन टाटा को अपने जीवन के आखिरी वर्षों में किसी चीज ने सबसे ज्यादा परेशान किया था तो वह था टाटा ट्रस्ट्स का भविष्य, और अब वही खतरे में है।
दरअसल, पिछले हफ्ते रतन टाटा के करीबी और भरोसेमंद मेहली मिस्त्री (Mehli Mystry) को टाटा ट्रस्ट्स से बाहर कर दिया गया। उनके कार्यकाल के नवीनीकरण को तीन ट्रस्टियों- नोएल टाटा (Noel Tata), वेणु श्रीनिवासन (venu srinivasan) और विजय सिंह ने मंजूरी नहीं दी। वहीं प्रमित झावेरी, डेरियस खंबाटा और जहांगीर ने मिस्त्री का समर्थन किया। वहीं रतन टाटा के भाई जिमी ने इसमें भाग ही नहीं लिया। और फिर सर्वसम्मति न होने के कारण फैसला पास नहीं हो सका।
रतन टाटा को सबसे ज्यादा थी- ट्रस्ट की चिंता
इसे लेकर शिरीन ने कहा कि, "रतन के पास बहुत सी परेशानियां थीं, पर ट्रस्ट्स का भविष्य उन्हें सबसे ज्यादा चिंता में डालता था।" वहीं, डीनना भावुक होकर कहा कि, "भाई को गुजरे सिर्फ एक साल हुआ है और उनकी याद, उनकी विरासत और टाटा वैल्यूज अब खतरे में नजर आ रहे हैं।"
यह भी पढ़ें- फावड़ा चलाना और चूना ढोना...रतन टाटा ने यहां से की थी करियर की शुरुआत; जाते-जाते TATA को बना दिया भरोसे का ब्रांड
इन तीन लोगों पर बहुत भरोसा करते थे टाटा
डीनना ने बताया कि, रतन टाटा तीन लोगों पर सबसे ज्यादा भरोसा करते थे- मेहली मिस्त्री, टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन और डेरियस खंबाटा। शिरीन का कहना है कि मेहली सिर्फ सलाहकार नहीं, बल्कि रतन के करीबी दोस्त थे, वो बिना हिचक इनके फैसलों से असहमति भी जताते थे, और रतन इस भरोसे में थे कि मेहली ट्रस्ट्स में सही गवर्नेंस बनाए रखेंगे।
टाटा ट्र्स्ट में नोएल टाटा का बढ़ता प्रभाव
मेहली मिस्त्री के हटते ही ट्रस्ट्स में नोएल टाटा की पकड़ मजबूत होती नजर आ रही है। यही नहीं, रतन टाटा के निधन के दो दिन बाद ही नोएल का नाम ट्रस्ट्स के चेयरमैन के तौर पर प्रस्तावित किया गया था। यह भी कहा जा रहा है कि टाटा संस के बोर्ड से विजय सिंह को हटाए जाने के बाद ही ट्रस्ट्स में यह विभाजन गहराया।
इंटरव्यू के दौरान दोनों बहनों ने साफ कहा कि रतन टाटा कभी इस बात के पक्ष में नहीं थे कि सिर्फ टाटा परिवार का व्यक्ति ही ट्रस्ट्स या समूह का नेतृत्व करे। डीनना ने बताया कि, "रतन मेरिट में विश्वास करते थे। उनका कहना था कमाओ, तब पाओ।" वहीं शिरीन ने कहा- "वे चंद्रशेखरन के चेयरमैन बनने से खुश थे, क्योंकि वो योग्य थे, न कि किसी खानदान से।"
यह भी पढ़ें- "अगर लोग आपको पत्थर मारें तो आप...", रतन टाटा के वो कोट्स, जो आपको जीना सिखा देंगे
शिरीन को उम्मीद- जल्द शांति लौटेगी
रतन टाटा की बहनों ने कहा वे किसी तरह की सलाह नहीं दे रहीं, बस चाहती हैं कि रतन टाटा की विरासत और मूल्य सुरक्षित रहें। इस दौरान शिरीन भावुक हो गईं। उन्होंने कहा कि अखबारों में ऐसी खबरें पढ़ना दुख देता है। पर हमें उम्मीद है, शांति लौटेगी।
बता दें कि टाटा ग्रुप का यह विवाद अब सिर्फ पद और सत्ता का नहीं, बल्कि रतन टाटा की सोच, मूल्यों और उनकी छोड़ी विरासत को सहेजने का सवाल बन चुका है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।