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    टाटा ट्रस्ट विवाद: सरकार के हस्तक्षेप के बाद बैठक में नरमी का रुख

    Updated: Fri, 10 Oct 2025 08:18 PM (IST)

    Tata Group: टाटा ट्रस्ट में विवाद के बाद सरकार के दखल से माहौल में नरमी आई है। बैठक में सभी पक्षों ने सकारात्मक रवैया अपनाया और विवाद को सुलझाने की दिशा में कदम बढ़ाए। सदस्यों ने आपसी सहमति से मामले को निपटाने और ट्रस्ट के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने पर जोर दिया। भविष्य की योजनाओं पर भी चर्चा हुई।

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    टाटा ट्रस्ट विवाद : सरकार के हस्तक्षेप के बाद बैठक में नरमी का रुख

    नई दिल्ली। सरकार के हस्तक्षेप के बाद शुक्रवार को होने वाली टाटा ट्रस्ट बोर्ड की बैठक में सदस्यों का रुख नरम रहा और ट्रस्ट के सामान्य कामकाज को लेकर चर्चा की गई। ट्रस्ट के सदस्यों के बीच नरमी से लाखों निवेशक और देश के उद्योग जगत को राहत मिलने की उम्मीद है। दूसरी तरफ, टाटा ट्रस्ट में 18.37 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले शापूरजी पालोनजी समूह ने टाटा संस को शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने की मांग को फिर से दोहराया है। कंपनी का कहना है कि टाटा समूह से जुड़ी सूचीबद्ध कंपनियों के 1.2 करोड़ शेयरधारकों के लिए यह हितकारी होगा।

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    सरकार पिछले कुछ दिनों से टाटा ट्रस्ट में जारी विवाद पर नजर रख रही थी। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि लगभग 25 लाख करोड़ के बाजार पूंजीकरण वाले टाटा समूह से दो दर्जन से अधिक कंपनियां जुड़ी हैं जहां से लाखों लोगों की जीविका चलती है। देश के जीडीपी में समूह का पांच प्रतिशत का योगदान है। वैश्विक रूप से आर्थिक उथल-पुथल के इस काल में भारत के ब्रांड के रूप में दुनिया के 100 से अधिक देशों में काम करने वाला टाटा समूह के विवाद को सरकार किसी भी सूरत में बढ़ने नहीं देना चाहती है।

    टाटा समूह का आकार इतना बड़ा है कि इसकी नकारात्मक छवि बनने का खतरा कोई भी मोल लेना नहीं चाहता है। ट्रस्ट के सदस्यों के बीच बढ़ते विवाद को देखते हुए दो दिन पहले ही सरकार के दो वरिष्ठ मंत्रियों के साथ ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा और टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन की मुलाकात हुई थी।

    दो खेमों में बंट गए ट्रस्ट के सदस्य टाटा

    ट्रस्ट में संभवत: पहली बार ऐसा विवाद हुआ है कि ट्रस्ट के सदस्य दो खेमों में बंट गए हैं। इससे पहले वर्ष 2016 में टाटा संस का विवाद सामने आया था। उस समय टाटा संस के चेयरमैन साइरस मिस्त्री और टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन टाटा के बीच विवाद हुआ था और बाद में रतन टाटा ने साइरस मिस्त्री को उनके पद से हटा दिया था। विवाद सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रतन टाटा के पक्ष में फैसला दिया था। इस बार विवाद पिछले साल अक्टूबर में रतन टाटा के निधन के बाद बने टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा और साइरस मिस्त्री के रिश्तेदार ट्रस्टी मेहली मिस्त्री के बीच सामने आया है।

    टाटा संस में टाटा ट्रस्ट की 66 प्रतिशत हिस्सेदारी

    टाटा ट्रस्ट का बोर्ड इसलिए भी भारत से लेकर दुनिया के निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि टाटा संस में टाटा ट्रस्ट की 66 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। 18.37 प्रतिशत की हिस्सेदारी शपूरजी पालोनजी के पास है। टाटा संस टाटा समूह से जुड़ी सूचीबद्ध व गैर सूचीबद्ध कंपनियों पर नियंत्रण का कार्य करती है। इन कंपनियों में टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टीसीएस, टाइटन जैसी दर्जनों कंपनियां शामिल हैं। शपूरजी पालोनजी भी 160 साल पुराना समूह है जिसमें 15 कंपनियां हैं। शपूरजी पालोनजी समूह चाहता है कि टाटा संस सूचीबद्ध किया जाए ताकि उसका बाजार मूल्य बढ़ेगा और उससे उन्हें भी लाभ मिलेगा जिससे उन्हें अपने कर्ज चुकाने में मदद मिलेगी।

    विजय सिंह को बोर्ड में रखने के प्रस्ताव को खारिज करने से दूरियां बढ़ीं

    टाटा ट्रस्ट के सदस्य दो खेमों में बंट गए हैं। एक खेमे में नोएल टाटा और ट्रस्टी वेनु श्रीनिवासन है तो दूसरे खेमे में मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी, जहांगीर एचसी और डेरियस खंबाटा बताए जा रहे हैं। दोनों ही खेमे एक-दूसरे के फैसले की अनदेखी कर रहे हैं। लोगों के समक्ष दोनों खेमों के बीच का विवाद खुलकर तब सामने आया जब गत 11 सितंबर को टाटा संस बोर्ड के नामित निदेशक पूर्व सुरक्षा सचिव विजय ¨सह को फिर से बोर्ड में रखने का प्रस्ताव नोएल टाटा के खेमे ने रखा, जिसे मेहली मिस्त्री के खेमे ने खारिज कर दिया।

    टाटा संस को 30 सितंबर तक कराना था सूचीबद्ध इस विवाद के पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि शापूरजी पालोनजी हर हाल में टाटा संस को सूचीबद्ध कराना चाहता है। शुक्रवार को कंपनी की तरफ से जारी बयान के बाद इसकी पुष्टि भी हो गई। आरबीआइ के दिशा-निर्देशों के मुताबिक टाटा संस को बाजार में सूचीबद्ध होना चाहिए, लेकिन गत 30 सितंबर तक टाटा संस को सूचीबद्ध नहीं होने की छूट दी गई थी। अब यह अवधि खत्म हो गई है।

    यह भी पढ़ें- Tata ग्रुप में मचे घमासान के बीच, टाटा ट्रस्ट और टाटा संस ने कर्ज में गले तक डूबी इस कंपनी को दी राहत की सांस

    हालांकि सूत्रों का कहना है कि टाटा संस ने फिर से इस अवधि को बढ़ाने के लिए आरबीआइ से गुजारिश की है। टाटा संस में 66 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले टाटा ट्रस्ट का तर्क है कि यह गैर लाभकारी और परोपकारी संस्था है जिस कारण वे सूचीबद्ध होकर निवेशकों को जोखिम में नहीं डाल सकते हैं। इस पर अंतिम फैसला आरबीआइ को लेना है। जो भी हो वर्ष 1868 में जमशेदजी टाटा की तरफ से स्थापित भारत के भरोसे का ब्रांड टाटा के विवाद के अंत की हर कोई प्रतीक्षा कर रहा है।