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    नहीं बढ़ेगी ‘सबका विश्वास’ योजना की तारीख, उत्पाद शुल्क और सर्विस टैक्स के लंबित विवादों के लिए है स्कीम

    By Pawan JayaswalEdited By:
    Updated: Fri, 20 Dec 2019 09:08 AM (IST)

    यह स्कीम करदाताओं और विभाग दोनों के लिए फायदेमंद है। करदाताओं को बरसों से लंबित मामलों से एक ही बार में छुटकारा मिल जाएगा और विभाग को रेवेन्यू की प्राप्ति हो जाएगी।

    नहीं बढ़ेगी ‘सबका विश्वास’ योजना की तारीख, उत्पाद शुल्क और सर्विस टैक्स के लंबित विवादों के लिए है स्कीम

    नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। मुकदमेबाजी और विवादों में लंबित पड़े उत्पाद शुल्क और सेवा कर से संबंधित मामलों के निपटारे के लिए आई ‘सबका विश्वास’ स्कीम की अवधि को आगे बढ़ाने के मूड में सरकार नहीं है। इस स्कीम की अवधि 31 दिसंबर को समाप्त हो रही है। वित्त मंत्रालय ने अप्रत्यक्ष कर से संबंधित सभी आयुक्तों से कहा है कि शेष बची अवधि में ज्यादा से ज्यादा करदाताओं को शामिल करने पर गंभीरता से काम करें।

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    मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक 16 दिसंबर को सभी प्रधान व मुख्य आयुक्तों और प्रधान महानिदेशकों को इस विषय में एक पत्र लिखा गया है। उन्हें कहा गया है कि वे आखिरी तारीख से पहले ज्यादा से ज्यादा संभावित करदाताओं की तलाश कर उन्हें स्कीम के दायरे में लाने की कोशिश करें। मंत्रालय का मानना है कि यह स्कीम करदाताओं और विभाग दोनों के लिए फायदेमंद है। करदाताओं को बरसों से लंबित मामलों से एक ही बार में छुटकारा मिल जाएगा और विभाग को रेवेन्यू की प्राप्ति हो जाएगी।

    सूत्रों के मुताबिक इस वर्ष पहली सितंबर को शुरू हुई इस स्कीम में अभी तक 55,693 आवेदन मिल चुके हैं। इन सभी आवेदनों में 29,557.3 करोड़ रुपये की राशि शामिल है। इस स्कीम में करदाताओं की रुचि को देखते हुए सीबीआइसी ने अधिकारियों से मुहिम की रफ्तार को और तेज करने और 31 दिसंबर तक ज्यादा से ज्यादा करदाताओं तक पहुंचने को कहा है।अधिकारियों का मानना है कि अभी तक की प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि करदाता भी अधिक समय तक मुकदमेबाजी में उलङो नहीं रहना चाहते।

    स्कीम शुरू करते वक्त 1.83 लाख मामलों में सरकार के 3.6 लाख करोड़ रुपये फंसे हुए थे।स्कीम के तहत 50 लाख रुपये और इससे कम के मामलों में 70 परसेंट तक की राहत देने का प्रावधान है। 50 लाख रुपये से अधिक की राशि पर राहत की दर 50 परसेंट रखी गई है। यह राहत उन लंबित मामलों के लिए है जिनमें करदाता 30 जून 2019 तक ड्यूटी की राशि स्वीकार कर चुके हैं।