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Right To Repair: क्‍या है राइट टू रिपेयर जो ग्राहकों को करेगा सशक्‍त? ठगी रोकने के साथ ही ई-कचरा भी होगा कम

आधुनिक जीवन में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर हमारी निर्भरता लगातार बढ़ रही है। स्मार्टफोन से लेकर लैपटॉप तक ये उपकरण हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं। लेकिन क्या होता है जब ये उपकरण टूट जाते हैं? क्या निर्माता से इन्हें ठीक करवाना ही एकमात्र विकल्प होता है? यहीं पर राइट टू रिपेयर फ्रेमवर्क की भूमिका सामने आती है।

By Praveen Prasad Singh Edited By: Praveen Prasad Singh Updated: Fri, 29 Mar 2024 06:58 PM (IST)
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'राइट टू रिपेयर' फ्रेमवर्क उपभोक्‍ताओं को और सशक्‍त करने का काम करेगा।

बिजनेस डेस्‍क, नई दिल्‍ली। Right to Repair Explained टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन जैसे उत्‍पादों के बिना आधुनिक जीवनशैली की कल्‍पना करना भी बेमानी- सा हो गया है। देश की तरक्‍की के साथ ही लोगों की आय बढ़ने से निजी कार रखने का चलन भी तेजी से बढ़ा है। घरेलू उत्‍पाद हों या मोबाइल फोन या फिर कार, लोग बड़े ही शौक से इन चीजों को खरीदते हैं। हालांकि, कई बार ऐसे मामले भी सामने आते हैं कि खरीदने के कुछ समय बाद ही उनमें कोई खराबी निकल जाती है। ऐसे में दुकानदार से शायद ही कभी मदद मिलती हो, क्‍योंकि अक्‍सर वो सर्विस सेंटर जाने की सलाह देने के अलावा और किसी तरह की कोई मदद नहीं करते।

अब यहीं से ग्राहकों की परेशानी का दौर शुरू होता है। कई बार तो ग्राहक सर्विस सेंटर के चक्‍कर काट-काटकर इतने परेशान हो जाते हैं कि वो पुराने सामान को छोड़ नया ही लेने में अपनी भलाई समझते हैं। स्‍पेयर पार्ट्स के दामों को लेकर भी कोई स्‍पष्‍टता नहीं होना इसमें अहम भूमिका निभाता है, क्‍योंकि अक्‍सर सर्विस सेंटर वाले रिपेयरिंग और स्‍पेयर्स के लिए अनाप-शनाप चार्ज करते हैं। इस वजह से भी लोग सोचते हैं कि जितने में रिपेयर कराएं, उससे अच्‍छा नया ही ले लें। देश में ई-कचरे के बढ़ने के पीछे यह भी एक बड़ी वजह है।

ग्राहकों की परेशानी और बढ़ते ई-कचरे के निपटान को लेकर अब सरकार ने पहल की है। हाल ही में सरकार 'राइट टू रिपेयर' फ्रेमवर्क (Right to Repair Act India) लेकर आई है. इसके तहत चार सेक्टर से जुड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को 'राइट टू रिपेयर' पोर्टल पर अपने उत्पाद व उसमें इस्तेमाल होने वाले पा‌र्ट्स की विस्तृत जानकारी के साथ उनके रिपेयर की सुविधा के बारे में बताने के लिए कहा गया है।

क्‍या है राइट टू रिपेयर फ्रेमवर्क?

आधुनिक जीवन में, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर हमारी निर्भरता लगातार बढ़ रही है। स्मार्टफोन से लेकर लैपटॉप तक, ये उपकरण हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं,। लेकिन क्या होता है जब ये उपकरण टूट जाते हैं? क्या निर्माता से इन्हें ठीक करवाना ही एकमात्र विकल्प होता है? यहीं पर राइट टू रिपेयर की भूमिका सामने आती है। सरकार द्वारा पेश किया गया राइट टू रिपयेर फ्रेमवर्क उपभोक्ताओं को उन उपकरणों की मरम्मत या रख-रखाव वाजिब खर्च में कराने का अधिकार देता है। सरकार ने चार सेक्‍टर के उत्‍पादों के लिए उनसे जुड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को राइट टू रिपेयर पोर्टल पर अपने उत्पाद व उसमें इस्तेमाल होने वाले पा‌र्ट्स की विस्तृत जानकारी के साथ उनके रिपेयर की सुविधा के बारे में बताने के लिए कहा है।

ये चार सेक्टर किए गए हैं शामिल

जिन चार क्षेत्रों को इसके दायरे में लाया गया है उनमें फार्मिंग उपकरण, मोबाइल-इलेक्ट्रॉनिक्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स एवं ऑटोमोबाइल उपकरण शामिल हैं। फार्मिंग सेक्टर में मुख्य रूप से वाटर पंप मोटर, ट्रैक्टर पा‌र्ट्स और हार्वेस्टर तो मोबाइल-इलेक्ट्रॉनिक्स में मोबाइल फोन, लैपटॉप , डेटा स्टोरेज सर्वर, प्रिंटर, हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर जैसे उत्पाद मुख्य रूप से शामिल है। कंज्यूमर ड्यूरेबल में टीवी, फ्रिज, गिजर, मिक्सर, ग्राइंडर, चिमनी जैसे विभिन्न उत्पादों को शामिल किया गया है, तो ऑटोमोबाइल्स सेक्टर में यात्री वाहन, कार, दोपहिया व इलेक्ट्रिक वाहन शामिल हैं।

ग्राहकों को ठगी का शिकार होने से बचाएगी ये पहल

केंद्र सरकार की मंशा राइट टू रिपेयर के जरिए ग्राहकों को ठगी से बचाना भी है। कई बार इस प्रकार के सामान के खराब होने के बाद ग्राहकों के पास पर्याप्‍त या सही जानकारी नहीं होती, जिससे रिपयेर करने वाला मनमानी कीमत वसूल करता है और ग्राहकों को ठगी का शिकार होना पड़ता है। इसका मुख्य कारण है रिपयेर में लगने वाले स्‍पेयर पार्ट्स की कीमत या उसे ठीक कराने के खर्च को लेकर कहीं कोई स्‍पष्‍ट जानकारी उपलब्‍ध नहीं होती। कई बार तो सर्विस सेंटर या फिर बाहर के मैकेनिक यहां तक बोल देते हैं कि आपके सामान का समय पूरा हो चुका है, इसे ठीक कराने से अच्‍छा तो आप नया ही खरीद लें, जबकि रिपेयर कर उसे आगे भी काफी वक्‍त तक उपयोग में लाया जा सकता है। इस प्रकार की दिक्कतों को दूर करने के लिए राइट टू रिपेयर फ्रेमवर्क लाया गया है।

कम हो सकेगा ई-कचरा

ई-कचरे को नियंत्रित करने के लिए सरकार की राइट टू रिपेयर पहल काफी कारगर साबित हो सकती है। राइट टू रिपेयर पोर्टल पर कंपनी के कस्टमर केयर के साथ उत्पाद में लगे पा‌र्ट्स व उनकी कीमत जैसी चीजों की भी जानकारी होगी। इस फ्रेमवर्क से उपभोक्ता को बेचे जाने वाले सामान को लेकर पारदर्शिता भी आएगी। राइट टू रिपेयर पोर्टल पर कंपनी अपने अधिकृत सर्विस सेंटर के साथ थर्ड पार्टी सर्विस सेंटर की भी जानकारी देंगी। इससे न सिर्फ उपभोक्‍ताओं के पैसे बचेंगे, बल्‍क‍ि लोग भी नया सामान खरीदने की जगह पुराने को ही ठीक कराकर इस्‍तेमाल करने के लिए प्रेरित होंगे।

राइट टू रिपेयर के फायदे (Benefits of Right to Repair)

  • राइट टू रिपेयर से मरम्मत की लागत कम हो सकती है और उपभोक्ताओं को अपने उपकरणों पर अधिक नियंत्रण मिल सकता है।
  • राइट टू रिपेयर से स्वतंत्र मरम्मत की दुकानों के लिए रोज़गार के नए अवसर पैदा कर सकता है। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है और तकनीकी कौशल का विकास हो सकता है।
  • अक्सर, टूटे हुए उपकरणों को कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। राइट टू रिपेयर मरम्मत को प्रोत्साहित करके और कचरे को कम करके पर्यावरण संरक्षण में योगदान कर सकता है।

राइट टू रिपेयर के लिए तय किए क्षेत्र और उत्‍पाद

क्षेत्र उत्‍पाद
खेती के उपकरण - ट्रैक्‍टर के स्‍पेयर पार्ट्स

- हार्वेस्टर

- वाटर पंप मोटर

मोबाइल/इलेक्‍ट्रॉनिक डिस्‍प्‍ले/ डाटा स्‍टोरेज उपकरण - मोबाइल

- टैबलेट

- वायरलेस हेडफोन और ईयर बड्स

- लैपटॉप

- यूनिवर्सल चार्जिंग पोर्ट/केबल

- बैटरी

- सर्वर व डेटा स्‍टोरेज

- हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर

- प्रिंटर

कंज्‍यूमर ड्यूरेबल - वाटर प्यूरिफायर

- वॉशिंग मशीन

- रेफ्रिजरेटर

- टेलीविजन

- इंटिग्रेटेड/यूनिवर्सल रिमोट

- डिशवॉशर

- माइक्रोवेव

- एयर कंडिशनर

- गीजर

- इलेक्ट्रिक केतली

- इंडक्‍शन चूल्‍हे

- मिक्‍सर ग्राइंडर

- इलेक्‍ट्र‍िक चिमनी

ऑटोमोबाइल उपकरण - यात्री वाहन

- दोपहिया वाहन

- इलेक्‍ट्रिक वाहन

- तिपहिया वाहन

- कारें