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सेहत पर जेब से होने वाले खर्च में आई कमी, केंद्र ने आंकड़ों की सत्यता पर सवाल उठाने वाले दावों को किया खारिज

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य खातों (एनएचए) के आंकड़ों की सत्यता पर सवाल उठाने वाली रिपोर्ट को खारिज किया है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि केंद्र सरकार की ओर से चलाई गई स्वास्थ्य योजनाओं के कारण लोगों की जेब पर खर्च कम हुआ है। पढ़ें यह रिपोर्ट...

By Jagran NewsEdited By: Krishna Bihari SinghPublished: Fri, 07 Oct 2022 11:04 PM (IST)Updated: Fri, 07 Oct 2022 11:26 PM (IST)
केंद्र सरकार की ओर से शुरू की गई स्वास्थ्य योजनाओं के कारण लोगों की जेब पर खर्च कम हुआ है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वास्थ्य खातों (एनएचए) के आंकड़ों की सत्यता पर सवाल उठाने वाली रिपोर्ट को खारिज करते हुए केंद्र सरकार ने दावा किया है कि केंद्र सरकार की ओर से शुरू की गई स्वास्थ्य योजनाओं के कारण लोगों की जेब पर खर्च कम हुआ है। एनएचएच के अनुमानों में (2018-19) सेहत पर आम लोगों और कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले फुटकर खर्च यानी आउट आफ पाकेट एक्स्पेंडिचर (ओओपीई) में अच्छी खासी कमी दिखाई गई है।

स्वास्थ्य प्रणाली में आया सुधार

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र की बेहतरी के लिए किए गए खर्च का ब्योरा जारी करता है। यह न सिर्फ देश में स्वास्थ्य प्रणाली को प्रतिबिंबित करता है, बल्कि केंद्र सरकार को भी स्वास्थ्य में प्रगति की निगरानी करने में सक्षम बनाता है।

प्रसव के मामले में सरकारी सुविधाओं की हिस्‍सेदारी बढ़ी

मंत्रालय ने कहा है कि देश में पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम किए गए हैं। इसका परिणाम है कि पिछले 15 दिनों में चिकित्सा सलाह लेने वालों में सरकारी सुविधाओं के उपयोग में लगभग पांच प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अस्पताल में भर्ती होने के मामले में यह वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग चार और शहरी क्षेत्रों में तीन प्रतिशत है। प्रसव के मामले में ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी सुविधाओं की हिस्सेदारी में 13 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में छह प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

केंद्र सरकार ने कही यह बात 

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कहा है कि एनएचए (2018-19) की आलोचना तथ्यों और उचित कारणों की अनदेखी करने का उदाहरण है। इस आंकड़े को एक विशेषज्ञ द्वारा मृगतृष्णा बताया जाना न तो उचित है और न ही तर्कसंगत है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी कहा है कि उसी विशेषज्ञ ने 2014 के आंकड़ों को स्वीकार किया है लेकिन 2017-18 के आंकड़ों को संदिग्ध बता दिया जो गलत है।  

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