RBI का संकेत: क्या ब्याज दरें फिर घटेंगी? तीन बैठकों में कुल मिलाकर 100 आधार अंकों की हुई कटौती
RBI के हालिया बुलेटिन में दिसंबर में रेपो रेट में कटौती का संकेत दिया गया है। वैश्विक अनिश्चितता को लेकर चिंता जताई गई है, खासकर चीन-अमेरिका के व्यापार तनाव को लेकर। आरबीआई गवर्नर के कार्यभार संभालने के बाद रेपो रेट में तीन बार कटौती हुई है। रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बताया गया है, लेकिन वैश्विक जोखिमों के प्रति आगाह किया गया है। अगस्त, 2025 तक देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पिछली दो बार की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठकों में रेपो रेट को स्थिर ही रखा गया है, लेकिन दिसंबर में होने वाली आगामी बैठक में ब्याज दरों को एक बार फिर घटाने का फैसला हो सकता है। इस बात के संकेत आरबीआइ की तरफ से सोमवार को जारी अक्टूबर बुलेटिन में दिया गया है।
वैसे इस रिपोर्ट में भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर जो तस्वीर पेश की गई है, उसमें वैश्विक अनिश्चितता को लेकर काफी चिंता जताई गई है। खासतौर पर चीन और अमेरिका के बीच नए सिरे से कारोबारी तनाव बढ़ने और संरक्षणवादी नीतियां की घोषणा को लेकर चिंता जताते हुए इसका भारत पर भी असर भारत पड़ने की बात कही गई है।
यह पिछले एक हफ्ते में आरबीआइ की तरफ से जारी दूसरी रिपोर्ट है, जिसमें वैश्विक आर्थिक अनिश्चतता के दौर पर गंभीर ¨चता जताई गई है।आरबीआइ गवर्नर संजय मल्होत्रा ने जब से कामकाज संभाला है तब रेपो रेट में तीन बार कटौती की जा चुकी है।
फरवरी, अप्रैल और जून की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में कुल मिलाकर रेपो रेट में 100 आधार अंकों (एक प्रतिशत) की कटौती कर इसे 5.50 प्रतिशत पर लाया जा चुका है। जून की बैठक में तो नकद आरक्षित अनुपात (बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित हिस्सा आरबीआइ में रखने की व्यवस्था) को घटाकर तीन प्रतिशत करने का फैसला किया गया।
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आरबीआइ की रिपोर्ट बताती है कि एक प्रतिशत कटौती होने के बाद बैंक ग्राहकों के लिए कर्ज की दरों में 55 आधार अंकों (0.55 प्रतिशत) की कमी हुई है। आरबीआइ का मानना है कि महंगाई में कोई वृद्धि अब अगले वित्त वर्ष में ही दिखाई देगी। ऐसे में आरबीआइ बुलेटिन का संकेत यही है कि आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में ब्याज दरों में एक कटौती हो सकती है।
व्यापार तनावों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से खड़ी रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि वैश्विक व्यापार तनावों और अमेरिका में बढ़ते संरक्षणवाद के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से खड़ी है। घरेलू मोर्चे पर कई स्तरों पर सकारात्मक संकेत मिले हैं। इस संदर्भ में महंगाई की कम दर, बैंकों व कंपनियों के मजबूत प्रदर्शन और सरकार के पास विदेशी मुद्रा के पर्याप्त भंडार व मजबूत राजकोषीय स्थिति को गिनाया गया है।
रिपोर्ट में बैंकों की तरफ से ज्यादा कर्ज वितरित करने, एनबीएफसी के इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग लागत घटाने, रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण, निर्यात क्षेत्र को मजबूत करने और विदेशी मुद्रा प्रबंधन को सरल बनाने जैसे उपायों का जिक्र है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को और मजबूत बनाएंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे एक नए परिदृश्य की ओर बढ़ रही है, जहां संरक्षणवाद और राजकोषीय जोखिमों से अनिश्चितताएं बढ़ रही हैं। हालांकि, रिपोर्ट में आइएमएफ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए वैश्विक विकास दर के धीमी पड़ने और जोखिम बढ़ने की बात भी कही गई है।
11 महीने के आयात का भुगतान करने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार रिपोर्ट में देश के पास अगस्त, 2025 तक 697.5 अरब डालर का विदेशी मुद्रा भंडार होने का उल्लेख किया गया है, जो देश के 11 महीने के आयात का भुगतान करने के लिए पर्याप्त है। साथ ही देश पर जितना विदेशी कर्ज (742.3 अरब डालर) है उसका 93 प्रतिशत विदेशी मुद्रा भंडार के तौर पर है।
हालांकि, अगस्त, 2025 में एक ऐसा ट्रेंड देखने को मिला है जो बहुत ही कम बार होता है। इस महीने भारत में जितना विदेशी निवेश आया है उससे ज्यादा राशि का निवेश भारत से दूसरे देशों में हुआ है। भारत से सबसे ज्यादा क्रमवार तरीके से सिंगापुर, यूएई, अमेरिका, श्रीलंका, नीदरलैंड और मारीशस में निवेश किया गया है। आरबीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक इस महीने भारत में कुल विदेशी निवेश छह अरब डालर रहा जबकि यहां से विदेशों में 6.6 अरब डालर का निवेश किया गया है।
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