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    ब्रिटेन से 100 टन गोल्ड वापस लाया RBI, अभी भी विदेश में है भारत का सैकड़ों टन सोना; जानें क्या है इसकी वजह

    भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्रिटेन में जमा अपने सोने को वापस मंगवा लिया है। न्यूज एजेंसी एएनआई ने बताया कि आरबीआई ने ब्रिटेन से 100 टन गोल्ड वापस लिया है। वर्ष 1991 में भारत ने बढ़त वित्तीय संकट को टालने के लिए ब्रिटेन में सोना गिरवी रखा था लेकिन बाद में आरबीआई ने सारे कर्ज चुका दिये थे। पढ़ें पूरी खबर

    By Jagran News Edited By: Priyanka Kumari Updated: Fri, 31 May 2024 01:02 PM (IST)
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    भारत में वापस आया ब्रिटेन से 100 टन सोना

    बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेश में रखे सोने को वापस मंगवा लिया है। न्यूज एजेंसी एएनआई ने बताया कि आरबीआई ने ब्रिटेन से 100 टन गोल्ड वापस मंगवाया है। 

    प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और भारत के प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने आज एक्स पर पोस्ट कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने अपने एक्स पोस्ट में लिखा कि भारत अब अपना अधिकांश सोना अपनी तिजोरियों में रखेगा।

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    विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि

    आरबीआई ने बताया कि भारत के पास विशाल विदेशी मुद्रा भंडार है। आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले कारोबारी साल तक विदेशी मुद्रा भंडार में 822.10 टन सोना था। वहीं, फाइनेंशियल ईयर 2022-23 में विदेशी मुद्रा भंडार में 794.63 टन से ज्यादा का सोना था।

    आपको बता दें कि साल 1991 में मौजूद सरकार ने वित्तीय संकट को निपटाने के लिए गोल्ड को गिरवी रखा था। उस वक्त आरबीआई ने बैंक ऑफ इंग्‍लैंड और बैंक ऑफ जापान के पास 46.91 टन सोना गिरवी रखा था ताकि वह 400 मिलियन डॉलर इकट्ठा कर पाए।

    बैंकिंग विभाग की संपत्ति के रूप में रखे गए सोने का मूल्य 31 मार्च, 2023 तक 2,30,733.95 करोड़ रुपये से 19.06 प्रतिशत बढ़कर 31 मार्च, 2024 तक 2,74,714.27 करोड़ रुपये हो गया।

    हर साल सोने की कीमतों में तेजी देखने को मिली है। दुनिया में सोने की मांग में बढ़ोतरी हो रही है। सोने की कीमतों में इजाफा की वजह पश्चिम एशिया में लंबे समय तक चले भू-राजनीतिक संघर्ष भी है। वहीं, आरबीआई सहित कई केंद्रीय बैंकों द्वारा गोल्ड खरीदारी और भौतिक सोने की मांग में वृद्धि की वजह से भी गोल्ड की कीमतों में तेजी आई है।

    वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंक सोने का भंडार बढ़ा रहे हैं, जिसे अक्सर मुद्रा की अस्थिरता और भू-राजनीतिक जोखिमों के खिलाफ बचाव के रूप में देखा जाता है।