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दवाओं की आपूर्ति के लिए एयरलिफ्ट भी किया जाएगा कच्चा माल, कुछ का स्टाक फरवरी में हो जाएगा खत्म

देश में दवाइयों की किल्लत को रोकने के उपायों पर फैसला लेने के लिए बुधवार को नीति आयोग में भी बैठक होगी।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Wed, 19 Feb 2020 09:03 AM (IST)Updated: Wed, 19 Feb 2020 09:07 AM (IST)
दवाओं की आपूर्ति के लिए एयरलिफ्ट भी किया जाएगा कच्चा माल, कुछ का स्टाक फरवरी में हो जाएगा खत्म

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। यूं तो कोरोना का असर मैन्यूफैक्चरिंग के हर सेक्टर पर दिखने लगा है और सरकार सक्रिय भी हो गई है। लेकिन बड़ी चिंता फार्मा सेक्टर को लेकर है। सरकार और फिक्की के अनुसार अभी दवाओं के कच्चे माल का दो तीन महीने का स्टाक है, लेकिन कुछ जरूरी दवाओं के दाम बढ़ने की खबरें आने लगी हैं। ऐसे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आश्वस्त किया है कि चीन में फैले कोरोना के कारण भारत में किसी भी हाल में दवाइयों की किल्लत नहीं होने दी जाएगी। जरूरत पड़ी तो सरकार दवा निर्माण के लिए कच्चे माल को एयरलिफ्ट करा लेगी।

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सरकार दवा उत्पादन से जुड़े कच्चे माल पर लगने वाले आयात शुल्क में भी कमी कर सकती है। देश में दवाइयों की किल्लत को रोकने के उपायों पर फैसला लेने के लिए बुधवार को नीति आयोग में भी बैठक होगी। भारत दवा उत्पादन के लिए 70 फीसद कच्चे माल का निर्यात चीन से करता है। चीन से सप्लाई चेन पर पड़ने वाले असर पर उद्योग जगत के साथ बैठक के बाद सीतारमण ने बताया कि देश में फार्मा उद्योग के लिए कच्चे माल का फिलहाल कोई संकट नहीं है।

देश में मैन्यूफैक्चरिंग क्षमता है, कच्चा माल भी उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि सरकार चीन के अलावा अन्य देश से या अन्य माध्यम से कच्चे माल की आपूर्ति पर विचार कर रही है। उन्होंने बताया कि लाइफ सेविंग ड्रग्स का जायजा लिया जा रहा है और फिलहाल बाजार में किसी भी दवाई की कमी नहीं है।औद्योगिक संगठन फिक्की की तरफ से वित्त मंत्री को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय फार्मा उद्योग 70 फीसदी कच्चे माल के आयात के लिए चीन पर निर्भर करता है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि फार्मा उद्योग के पास कच्चे माल का दो से तीन माह का स्टॉक है। फार्मा उद्योग का कहना है कि फिलहाल दवा उद्योग पर कोई संकट नहीं है, लेकिन कोरोना संकट गहराने पर और सप्लाई चेन आगे कुछ और समय के लिए बाधित रहने पर दवा उद्योग का संकट गहरा सकता है।बहरहाल, इसी फिक्की रिपोर्ट के मुताबिक 20 से अधिक ऐसी दवाएं हैं जिनके कच्चे माल का स्टॉक फरवरी माह में समाप्त हो रहा है।

पारासिटामाल और इबूप्रोफेन जैसी दवाएं भी इसमें शामिल हैं। ऐसे में, इन दवाइयों की किल्लत देश में हो सकती है। कुछ दवा के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाने की बात चल रही है। सरकार पर दबाव होगा कि इसकी किल्लत न होने दे। हालांकि फार्मा कंपनियों के बीच भी इस किल्लत को लेकर अलग अलग विचार हैं। रिचर थेमीस फार्मास्यूटिकल के मैनेजिंग डाइरेक्टर रजनीश शाह आनंद के अनुसार, बाजार में कुछ लोग लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं।

तीन महीने का कच्चा माल कंपनियों के पास है। चीन में गरमी बढ़ते ही कोरोना के ध्वस्त होने की संभावना है और सभी इसका इंतजार कर रहे हैं। जबकि सम्पलेक्स फार्मा के जनरल मैनेजर (आपरेशन) दीपक यादव के मुताबिक कोरोना का असर फार्मा उद्योग पर दिखना शुरू हो गया है। कच्चे माल की आपूर्ति रुकने के कारण न सिर्फ उनके दाम बढ़ने लगे हैं, बल्कि दवाओं की सप्लाई का भरोसा भी टूटने लगा है। उनके अनुसार पूरा उद्योग आने वाले समय के लिए न तो दवा की लागत तय कर पा रहा है और सप्लाई की गारंटी ले पा रहा है।


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