अफ्रीका-कोलंबिया के बाजारों में कैसे बना भारतीय दोपहिया वाहनों का दबदबा; पीछे छूट रहीं चीन और अमेरिका की कंपनियां
भारतीय दोपहिया वाहन निर्माता कंपनियाँ जैसे बजाज हीरो मोटोकॉर्प और टीवीएस अब दुनियाभर में अपनी पहचान बना रही हैं। राहुल गांधी ने भी कोलंबिया में बजाज पल्सर के साथ अपनी तस्वीर साझा की। अफ्रीका में भारतीय बाइक्स की मांग तेजी से बढ़ रही है जहां वे किफायती दामों सड़क के अनुकूल डिजाइन और बेहतर माइलेज के कारण लोकप्रिय हैं।

नई दिल्ली। भारतीय दोपहिया वाहन निर्माता कंपनियां, जैसे कि बजाज, हीरो मोटोकॉर्प और टीवीएस, अब न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में अपनी गहरी छाप छोड़ रही हैं। हाल ही में राहुल गांधी ने कोलंबिया दौरे की एक तस्वीर जिसमें वह भारत की बजाज पल्सर के साथ नजर आए।
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि कोलंबिया जैसे देशों में भारतीय कंपनियां जैसे हीरो, बजाज और TVS जैसी कंपनियां शानदार प्रदर्शन कर रही हैं। आगे कहा कि नवाचार और गुणवत्ता के बल पर भी दुनिया जीती जा सकती है।
2024 में वैश्विक स्तर पर दोपहिया वाहन कारोबार की अनुमानित कीमत करीब 8 बिलियन डॉलर (लगभग ₹70,500 करोड़) रही। उम्मीद की जा रही है कि 2030 तक यह आंकड़ा 11 बिलियन डॉलर (लगभग ₹96,900 करोड़) तक पहुंच सकता है।
अफ्रीकी बाजार में भारत की पकड़
कभी अफ्रीका के टू-व्हीलर मार्केट पर अमेरिकी, यूरोपीय और चीनी ब्रांड्स का दबदबा हुआ करता था, लेकिन अब इस क्षेत्र में भारतीय कंपनियों का वर्चस्व स्थापित हो चुका है। बजाज, टीवीएस, हीरो और रॉयल एनफील्ड जैसे ब्रांड्स अब इस बाजार में प्रमुख स्थान पर हैं।
60% से अधिक हिस्सा भारतीय कंपनियों के पास
ताजा रिपोर्ट्स के अनुसार, अफ्रीका के मोटरसाइकिल बाजार का लगभग 60% से अधिक हिस्सा भारतीय ब्रांड्स के पास है। नाइजीरिया, केन्या, युगांडा, घाना और तंजानिया जैसे देशों में भारतीय टू-व्हीलर्स की बिक्री चीनी और अमेरिकी कंपनियों की तुलना में चार गुना अधिक है।
अफ्रीका में भारतीय बाइक कंपनियों की सफलता के कारण
1. किफायती दाम
भारतीय बाइक्स की कीमतें अमेरिकी ब्रांड्स की तुलना में बहुत कम होती हैं। जहां हार्ले-डेविडसन जैसी बाइक्स की कीमत लाखों में होती है, वहीं बजाज की लोकप्रिय मॉडल Boxer लगभग $1,000 में मिल जाती है।
2. सड़क परिस्थिति के अनुसार डिजाइन
भारतीय कंपनियों ने अफ्रीकी सड़कों और वहां की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए खास मॉडल्स विकसित किए हैं, जैसे Bajaj Boxer 150, TVS HLX 125 और Hero Dawn 125। ये बाइक्स खराब सड़कों और ज्यादा वजन के लिए उपयुक्त हैं।
3. मजबूत स्पेयर पार्ट्स नेटवर्क
भारतीय कंपनियों ने अफ्रीका में स्पेयर पार्ट्स और सर्विसिंग के लिए व्यापक डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क स्थापित किया है, जिससे स्थानीय स्तर पर रिपेयर और पार्ट्स की उपलब्धता आसान हो गई है।
4. बेहतर माइलेज
ईंधन की बढ़ती कीमतों के बीच भारतीय बाइक्स की फ्यूल एफिशिएंसी आम लोगों के लिए एक बहुत बड़ा प्लस प्वाइंट साबित हो रही है।
5. आसान फाइनेंसिंग विकल्प
भारतीय कंपनियों ने अफ्रीकी बैंकों और माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के साथ मिलकर फाइनेंसिंग मॉडल तैयार किए हैं, जिससे ग्राहकों को किस्तों में बाइक खरीदने की सुविधा मिलती है।
क्यों पिछड़ गए चीनी और अमेरिकी ब्रांड?
जहां चीनी कंपनियों ने सस्ते विकल्प जरूर पेश किए, वहीं उनकी बाइक्स की गुणवत्ता पर सवाल उठते रहे। जल्दी खराब होने वाले इंजन, कमजोर सस्पेंशन और घटिया बिल्ड क्वालिटी के चलते लोगों का भरोसा डगमगा गया। दूसरी ओर, अमेरिकी और यूरोपीय ब्रांड्स की बाइक्स महंगी और जटिल तकनीक वाली थीं, जो अफ्रीकी आम जनता की रोजमर्रा की जरूरतों से मेल नहीं खाती थीं।
कहां है भारतीय बाइक्स की सबसे ज्यादा मांग?
नाइजीरिया, केन्या, घाना, युगांडा और साउथ अफ्रीका जैसे देशों में भारतीय दोपहिया वाहनों की डिमांड लगातार बढ़ रही है। सिर्फ नाइजीरिया की बात करें तो वहां टू-व्हीलर मार्केट का आकार लगभग 6 बिलियन डॉलर है, जहां हर साल 20 लाख से ज्यादा मोटरसाइकिलें बेची जाती हैं।
भारत की अलग रणनीति: सिर्फ बिक्री नहीं, साझेदारी
भारतीय कंपनियों ने केवल प्रोडक्ट एक्सपोर्ट करने तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि स्थानीय असेंबली यूनिट्स और फैक्ट्रियां भी शुरू कीं।
बजाज ने नाइजीरिया, केन्या और युगांडा में अपने संयंत्र लगाए।
टीवीएस ने इथियोपिया और मिस्र में उत्पादन केंद्र स्थापित किए।
हीरो मोटोकॉर्प ने रवांडा और तंजानिया में निवेश किया।
इस कदम से बाइक की कीमतें कम हुईं और स्थानीय रोजगार के अवसर भी बने। अब तक 10,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल चुका है और उन्हें टेक्निशियन, मेकेनिक और सेल्स की ट्रेनिंग भी दी जा रही है।
अगला कदम: इलेक्ट्रिक बाइक्स
अब भारतीय कंपनियां अफ्रीका में इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर लाने की तैयारी में हैं। TVS iQube और Bajaj Chetak जैसे मॉडल अफ्रीका के शहरी परिवहन को एक नई दिशा दे सकते हैं। इससे न केवल ईंधन पर खर्च घटेगा, बल्कि प्रदूषण भी कम होगा।
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