NSE को मिली बिजली का वायदा शुरू करने की मंजूरी, जानिए इसमें कैसे होगा कारोबार?
अब देश ने बिजली की ट्रेडिंग भी शेयर बाजार में हो सकेगी। देश के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज NSE को बाजार नियामक सेबी ने बिजली का वायदा कारोबार (NSE Electricity Futures) शुरू करने की अनुमति दे दी है। MCX को पहले से इसकी मंजूरी मिली हुई है। आइए जानते हैं इस फैसले का क्या फायदा होगा और बिजली के वायदा का कारोबार कैसे होगा?

रॉयटर्स. मुंबई। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) को मासिक बिजली फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट (NSE electricity futures) लॉन्च करने की मंजूरी दे दी है। पिछले हफ्ते सेबी ने MCX को भी बिजली के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की मंजूरी दी थी।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे संकट में फंसी बिजली कंपनियों के वित्तीय हालात सुधरने में मदद मिलेगी। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के जरिए खरीदार भविष्य में एक तय कीमत पर बिजली खरीद सकेंगे। फिलहाल, दुनिया में CME ग्रुप, यूरोनेक्स्ट, इंटरकॉन्टिनेंटल एक्सचेंज और यूरोपियन एनर्जी एक्सचेंज जैसे प्लेटफॉर्म पर बिजली डेरिवेटिव्स की ट्रेडिंग होती है।
अभी भारत में बिजली कंपनियां लंबी अवधि के पावर पर्चेज एग्रीमेंट (PPA) पर निर्भर हैं जो 25 साल तक के होते हैं। इसके अलावा, पीक डिमांड के लिए वे शॉर्ट-टर्म में बिजली खरीदती (Power trading in India) हैं। बिजली वितरण कंपनियों पर करीब 9.5 अरब डॉलर का बकाया है, जिसकी वजह महंगी लंबी अवधि की खरीद, सब्सिडी वाली आपूर्ति और खराब इंफ्रास्ट्रक्चर की वजह से होने वाली बिजली की हानि है।
NSE के एमडी और सीईओ अशीषकुमार चौहान ने कहा कि यह मंजूरी NSE के बिजली डेरिवेटिव्स इकोसिस्टम को विस्तार देने की दिशा में पहला कदम है। हम कॉन्ट्रैक्ट्स फॉर डिफरेंस (CFD) और तिमाही और वार्षिक जैसे लॉन्ग-ड्यूरेशन डेरिवेटिव्स भी लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं। हालांकि, यह नियामक की मंजूरी पर निर्भर करेगा।
हेक्सा क्लाइमेट सॉल्यूशंस के चेयरमैन संजीव अग्रवाल ने कहा, "डिस्कॉम्स को फॉरवर्ड कर्व का इस्तेमाल करके डायनामिक तरीके से खरीदारी की योजना बनाने में मदद मिलेगी। इससे लागत कम करने, जरूरत से ज्यादा कॉन्ट्रैक्ट करने से बचने और डिमांड का बेहतर अनुमान लगाने में मदद मिलेगी।"
फॉरवर्ड प्राइस कर्व से भविष्य में बिजली की कीमतों का अनुमान लगाने में मदद मिलती है। अभी डिस्कॉम्स दिन के समय सोलर सरप्लस को कम कीमत पर बेचती हैं, लेकिन अब डेरिवेटिव्स का इस्तेमाल करके वे पहले से तय ज्यादा दामों पर बेच सकेंगी। वे नॉन-सोलर घंटों में भी कॉन्ट्रैक्ट्स का इस्तेमाल करके कम कीमत पर बिजली खरीद सकेंगी, जब स्पॉट प्राइस आमतौर पर बढ़ जाते हैं।


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