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    पटरियों के अल्ट्रासाउंड से रेल हादसों पर लगेगी लगाम, अल्ट्रासोनिक मशीनें करेंगी पटरियों का नियमित निरीक्षण

    Updated: Fri, 16 Aug 2024 08:05 PM (IST)

    रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक नई अल्ट्रासाउंड मशीन से निरीक्षण के बाद क्रैक पटरियों के चलते होने वाली ट्रेन दुर्घटनाओं में करीब 85 प्रतिशत तक कमी आ जाएगी। पटरियों के निरीक्षण के लिए अल्ट्रासाउंड मशीन लगाई जा रही है। अभी साबरमती जोन में शुरुआत हो चुकी है। बाद में सभी रेलवे जोनों में इसे लगाना है। 70 हजार किलोमीटर रेल रूट के नियमित निरीक्षण के लिए अल्ट्रासोनिक मशीन लगाई जाएगी।

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    एक अल्ट्रासोनिक मशीन की लागत लगभग छह लाख है।

    अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। ड्राइवर की गलतियों से होने वाले रेल हादसों पर नियंत्रण की कोशिशों के बीच रेलवे का ध्यान अब खराब पटरियों के स्वास्थ्य पर भी होगा। पूरे देश के लगभग 70 हजार किलोमीटर रेल रूट के नियमित निरीक्षण के लिए नई अल्ट्रासोनिक मशीन लगाई जाएगी, जो ट्रैक का अल्ट्रासाउंड करके उसकी स्थिति बताएगी। इससे पटरियों में खराबी के चलते होने वाले हादसों पर काफी हद तक नियंत्रण लग सकेगा।

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    रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव का मानना है कि नई अल्ट्रासाउंड मशीन से निरीक्षण के बाद क्रैक पटरियों के चलते होने वाली ट्रेन दुर्घटनाओं में करीब 85 प्रतिशत तक कमी आ जाएगी। पटरियों के निरीक्षण के लिए नई अल्ट्रासाउंड मशीन लगाई जा रही है। अभी साबरमती जोन में शुरुआत हो चुकी है। बाद में सभी रेलवे जोनों में इसे लगाना है।

    किन वजहों से होते हैं रेल हादसे?

    रेलवे के अनुसार ट्रेन हादसों के तीन बड़े कारण होते हैं। पायलट की गलतियों के अलावा ट्रैक में खराबी और कभी-कभी पटरियों पर किसी जानवर या कठोर वस्तु के आ जाने से ट्रेन दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है। कवच सिस्टम लगने से ड्राइवर की गलतियों से होने वाले हादसे लगभग पूरी तरह थम जाएंगे। रेल पटरियों की छोटी-सी खामियों का पता अल्ट्रासोनिक मशीन से लगाकर उसे दूर भी किया जा सकेगा।

    पटरियों की जांच पहले भी ऐसी ही मशीन से की जाती थी, किंतु तब काफी समय लगता था और छोटे-छोटे क्रेक का पता नहीं चलता था। पुरानी मशीन से पटरियों के अंदर बड़े वैक्यूम का पता आसानी से लगा लिया जाता है, लेकिन अत्यंत छोटा वैक्यूम बनने या मामूली खराबी आने पर कई बार पता नहीं चल पाता है।

    यहां तक कि सिंगल मशीन लेकर पटरियों की जांच करते वक्त अगर थोड़ा सा भी हाथ हिल गया तो मर्ज का पता नहीं चल पाता था। रेल हादसों की यह भी एक बड़ी वजह होती है, लेकिन मल्टीपल बीम वाली नई मशीन में उन्नत नान-डिस्ट्रक्टिव टेस्टिंग तकनीक है। इसे फेज अर्रेय कहा जाता है। पटरियों की संरचनात्मक सुरक्षा सुनिश्चित करने का यह अत्यंत उपयोगी और अत्याधुनिक तरीका है।

    फेज अर्रेय से एक्सीडेंट पर लगाम

    फेज अर्रेय के जरिए पटरियों की जांच, वेल्डिंग की गुणवत्ता, जंग की स्थिति एवं अन्य दोषों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। इसमें एक विशेष प्रकार का अल्ट्रासोनिक ट्रांसड्यूसर अर्रेय होता है, जो ध्वनि तरंगें छोड़ती है। इन तरंगों का अध्ययन विभिन्न कोणों और गहराइयों कै पैमाने पर किया जाता है। पटरियों पर मशीन के ले जाते ही ध्वनि तरंगों की तुरंत प्रतिक्रिया होने लगती है और ट्रैक के आंतरिक ढांचे की वास्तविक तस्वीरें उभरने लगती हैं।

    ध्वनि की गति और समय का आकलन करके पता लगाया जाता है कि पटरी में कहां पर बाधा है। इनका उपयोग रेल पटरियों में मामूली दरारें, खाली स्थान एवं अन्य कमियों का पता लगाने के लिए किया जाता है। नई मशीन पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। इसे स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) ने विकसित किया है।

    एक मशीन की लागत लगभग छह लाख है। इसके जरिए पटरियों की अत्यंत छोटी खामियों का पता चलने से रेलवे की सुरक्षा में वृद्धि होगी, क्योंकि पुरानी मशीन की तुलना में नई मशीन तेज निरीक्षण करती है। एक साथ कई कोणों की जांच होने से समय की बचत होती है।

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