छोटे उद्योग खुद ही नहीं होना चाहते बड़ा, रोचक है इसकी वजह; NITI आयोग ने अपनी रिपोर्ट में किया खुलासा
NITI Aayog ने सोमवार को ‘डिजाइनिंग ए पॉलिसी फॉर मीडियम एंटरप्राइजेज’ रिपोर्ट जारी की। इसमें मझोले आकार के उपक्रमों में Employment Opportunities के बारे में बताया गया है। देश की इकोनॉमी के लिए MSME सेक्टर के महत्व को बताने के साथ रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि क्यों माइक्रो और स्मॉल कैटेगरी की कंपनियां मीडियम कैटेगरी में नहीं आना चाहती हैं।

नई दिल्ली। नीति आयोग ने सोमवार को मीडियम एंटरप्राइजेज यानी मझोले आकार के उपक्रमों पर एक रिपोर्ट जारी की। इसमें इकोनॉमी में Medium Enterprises के योगदान की चर्चा की गई है। साथ ही, यह भी बताया गया है कि कुल MSME में सिर्फ 0.3% मीडियम साइज की हैं, क्योंकि छोटी (स्मॉल) कंपनियां मीडियम बनना ही नहीं चाहती हैं।
NITI Aayog की रिपोर्ट ‘डिजाइनिंग ए पॉलिसी फॉर मीडियम एंटरप्राइजेज’ में कहा गया है कि अगर मझोले उपक्रमों में 20% ग्रोथ हो, तो इनमें 12 लाख अतिरिक्त रोजगार (Medium Enterprises Employment) का सृजन होगा जो इस समय नहीं हो पा रहा है। जानते हैं कि आयोग ने इसकी क्या वजह बताई है और इन उपक्रमों को बढ़ावा देने के लिए उसके क्या सुझाव हैं।
इकोनॉमी में एमएसएमई का महत्व
एमएसएमई सेक्टर के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि भारत की जीडीपी (GDP) में इसकी हिस्सेदारी (2021-22) करीब 29%, ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) में 31.8% और देश के कुल निर्यात में 45% से अधिक है। कुल वर्कफोर्स का लगभग 62% हिस्सा एमएसएमई में काम करता है। ये इकाइयां लगभग 6000 तरह के प्रोडक्ट बनाती हैं। इस तरह अर्थव्यवस्था में मांग और खपत को पूरा करने में इनका बड़ा योगदान है।
रिपोर्ट (NITI Aayog Report 2025) के अनुसार, कंस्ट्रक्शन कंपनियों को छोड़ दें तो देश में लगभग 6 करोड़ गैर-कृषि एमएसएमई हैं। इनमें से सिर्फ 3.35 करोड़ उद्यम (Udyam) पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं। इनके अलावा 2.55 करोड़ माइक्रो और लघु (tiny) उपक्रम उद्यम असिस्ट (Udyam Assist) प्लेटफॉर्म पर रजिस्टर्ड हैं। कुल रजिस्टर्ड एमएसएमई में 97% माइक्रो, 2.5% स्मॉल और सिर्फ 0.3% मीडियम कैटेगरी में आते हैं।
ज्यादातर मीडियम उपक्रम मैन्युफैक्चरिंग में
रजिस्टर्ड एमएसएमई में 72% सर्विस सेक्टर में हैं और बाकी 28% मैन्युफैक्चरिंग करती हैं। सेगमेंट के हिसाब से देखें तो मीडियम उपक्रमों में 58% मैन्युफैक्चरिंग और 42% सर्विसेज के क्षेत्र में हैं। स्मॉल कैटेगरी में 48% मैन्युफैक्चरिंग और 52% सर्विसेज में हैं। माइक्रो सेगमेंट में यह अनुपात 30% और 70% का है।
देश की लगभग 62% वर्कफोर्स एमएसएमई सेक्टर में है। कुल संख्या के लिहाज से देखें तो इनमें करीब 18.36 करोड़ लोग काम करते हैं, जिनमें 5 करोड़ महिलाएं हैं। वर्ष 2023-24 में माइक्रो उपक्रमों में कुल एमएसएमई रोजगार का 89% और मीडियम उपक्रमों में 3% था। लेकिन प्रति यूनिट रोजगार मीडियम उपक्रमों में 89.4, स्मॉल में 19.11 और माइक्रो में 5.70 है।
कुल MSME Export में मझोले उपक्रमों का हिस्सा 40%
देश के निर्यात में लगभग 45% हिस्सा एमएसएमई का होता है। भारत के कुल निर्यात में एमएसएमई का हिस्सा पिछले पांच वर्षों में इस प्रकार रहा है- 2019-20 में 49.77%, 2020-21 में 49.35%, 2021-22 में 45.03%, 2022-23 में 43.59% और 2023-24 में 45.56%।
हालांकि सिर्फ 1.36% रजिस्टर्ड एमएसएमई इकाइयां ही निर्यात करती हैं। इनमें से 64% इकाइयों का निर्यात 1 करोड़ रुपये से भी कम है। इकाइयों की संख्या के लिहाज से देखें तो 91% निर्यात इकाइयां माइक्रो और स्मॉल कैटेगरी की हैं, जो 60% एमएसएमई निर्यात करती हैं। मीडियम कैटेगरी की 9% इकाइयों का निर्यात में योगदान 40% का है।
मझोले उपक्रमों को क्रेडिट सपोर्ट के लिए सिर्फ एक स्कीम
एमएसएमई स्कीमों के विश्लेषण से पता चलता है कि सिर्फ आठ स्कीम मीडियम एंटरप्राइजेज के लिए हैं। उनमें भी सिर्फ एक उन्हें क्रेडिट सपोर्ट के लिए है। ज्यादातर स्कीमें माइक्रो और स्मॉल उपक्रमों की मदद के लिए बनाई गई हैं।
वित्त मंत्रालय के एक्सपेंडिचर बजट के अनुसार 2022-23 में एमएसएमई सेक्टर को कुल 5,442 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया। इसमें से 68% फंड सिर्फ दो स्कीम के लिए था। प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी योजना के लिए 50% और पीएम विश्वकर्मा के लिए 18% फंड। दोनों स्कीम मीडियम उपक्रमों के लिए नहीं हैं। एमएसएमई के लिए उपलब्ध कुल फंड में सिर्फ 17.81% मीडियम उपक्रमों के लिए है।
माइक्रो और स्मॉल उपक्रमों पर अधिक फोकस के पीछे कई कारण हो सकते हैं। कुल एमएसएमई में 99% माइक्रो ओर स्मॉल कैटेगरी के हैं। इनके पास संसाधनों की कमी होती है और बैंक जैसे औपचारिक क्षेत्र से कर्ज नहीं ले पाते हैं। माइक्रो ओर स्मॉल उपक्रम लेबर इंटेंसिव होते हैं। मैन्युफैक्चरिंग, कृषि और सर्विसेज में माइक्रो और स्मॉल कैटेगरी में बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं।
फायदे लेने के लिए कंपनियां छोटी बनी रहना चाहती हैं
रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटे उपक्रमों को अधिक मदद दिए जाने से कंपनियों को एक तरह से छोटी बने रहने का प्रोत्साहन मिलता है, ताकि उन्हें इन स्कीमों का फायदा मिलता रहे। माइक्रो और स्मॉल कैटेगरी में बनी रहकर कंपनियां अपना कामकाज बढ़ाने और ज्यादा लोगों को रोजगार देने का अवसर खो देती हैं। इकोनॉमी ऑफ स्केल से इनोवेशन और ऑपरेशनल दक्षता सुधारने का मौका मिलता है। लेकिन जब कंपनियां छोटी बने रहना चाहेंगी तो इनोवेशन और दक्षता सुधार भी नहीं हो पाएगा।
मीडियम उपक्रमों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा की क्षमता होती है। लेकिन उनके लिए कोई टारगेटेड मदद की स्कीम न होने से वे ग्लोबल मार्केट में मिलने वाले अवसरों का लाभ उठाने से चूक जाते हैं।
मीडियम साइज के उपक्रम कुल एमएसएमई में सिर्फ 0.3% हैं और उनकी संख्या 67,923 है। इनमें 58% यानी 39,395 मैन्युफैक्चरिंग करती हैं। बाकी 42% मझोले उपक्रम सर्विस सेक्टर में हैं।
वर्ष 2022-23 में मीडियम साइज के उपक्रमों ने विदेशी मुद्रा आय में 50 अरब डॉलर से अधिक का योगदान किया। एमएसएमई की कुल निर्यात आय में लगभग 40% हिस्सा इन्हीं का था। टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल, ऑटो कंपोनेंट जैसे सेक्टर में मझोले उपक्रमों की मजबूत पकड़ है।
विश्लेषण से पता चलता है कि एक औसत मझोले उपक्रम की विदेशी मुद्रा आय 39.5 करोड़ रुपये की है। स्मॉल कैटेगरी के उपक्रमों के लिए यह औसत 8.30 करोड़ और माइक्रो के लिए 1.39 करोड़ रुपये है। रिसर्च और डेवलपमेंट पर निवेश में भी 81% हिस्सा मझौले उपक्रमों का होता है।
मीडियम एंटरप्राइजेज के लिए नीति आयोग के सुझाव
आयोग ने मझोले उपक्रमों की क्षमता का पूरा लाभ उठाने के लिए टारगेटेड हस्तक्षेप की बात कही है। इन उपक्रमों की चुनौतियों के समाधान के लिए आयोग ने वर्किंग कैपिटल फाइनेंसिंग स्कीम शुरू करने के सिफारिश की है, जो उपक्रम के टर्नओवर से जुड़ी हो। इसके अलावा बाजार दर पर 5 करोड़ रुपये की क्रेडिट कार्ड फैसिलिटी तथा बैंकों की तरफ से फंड देने में तेजी लाने के सिफारिश भी की गई है।
रिपोर्ट में मौजूद टेक्नोलॉजी सेंटर को अपग्रेड करके सेक्टर विशेष के लिए कंपीटेंस सेंटर बनाने का सुझाव दिया गया है ताकि इंडस्ट्री 4.0 के सॉल्यूशन को अपनाया जा सके। एमएसएमई मंत्रालय के अधीन अलग रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल बनाने की भी सिफारिश की गई है। कंप्लायंस आसान बनाने और प्रोडक्ट की क्वालिटी सुधारने के लिए अलग-अलग सेक्टर के लिए टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन केंद्र डेवलप करने का सुझाव दिया गया है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।