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सॉफ्टवेयर की दुनिया का बादशाह भी निकला क्रिकेट का दीवाना

दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट की कमान अब भारतीय मूल के सत्या नडेला के हाथों में आ गई है। ये भारत और भारत वासियों के लिए भी गर्व की बात है।

By Edited By: Published: Wed, 05 Feb 2014 11:11 AM (IST)Updated: Wed, 05 Feb 2014 11:11 AM (IST)

नई दिल्ली। दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट की कमान अब भारतीय मूल के सत्या नडेला के हाथों में आ गई है। ये भारत और भारत वासियों के लिए भी गर्व की बात है। माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने चेयरमैन की कुर्सी को अलविदा कहा और कंपनी के टेक्निकल एडवाइजर बन गए। सत्या नडेला पिछले 22 सालों से माइक्रोसॉफ्ट के साथ जुड़े हुए हैं। स्वभाव से सहज, कूल और तकनीकी रूप से बेहद मजबूत नडेला क्रिकेट के प्रशंसकों में से एक हैं।

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नया पद ग्रहण करते हुए नडेला ने माइक्रोसॉफ्ट के सभी कर्मचारियों को एक ईमेल लिखा। इस मेल में उन्होंने यह भी बताया कि 'मैं कौन हूं।' उन्होंने अपने बारे में कहा, 'मैं 46 साल का हूं। 22 सालों से शादी-शुदा हूं, मेरे तीन बच्चे हैं...जो लोग मुझे जानते हैं वे कहते हैं कि मेरी पहचान मेरी जिज्ञासा और सीखने की उत्कंठा हैं। मैं जितनी किताबें पढ़ सकता हूं उससे कहीं ज्यादा किताबें खरीदता हूं। मैं जितने ऑनलाइन कोर्सेज कर सकता हूं उससे कहीं ज्यादा कोर्सो में दाखिला लेता हूं...परिवार, जिज्ञासा और ज्ञान की भूख ही मुझे परिभाषित करते हैं।'

भारत के सत्या नडेला बने माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ

क्रिकेट से लगाव

क्रिकेट खेलना उनको काफी पसंद था। वह अपनी स्कूल टीम के सदस्य भी रहे। नडेला इस बारे में कहते हैं, 'मुझे लगता है कि क्रिकेट से मैंने टीम में खेलने और नेतृत्व के बारे में सीखा और मेरे पूरे करियर में वो मेरे साथ रहा।'

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उन्हें टेस्ट क्रिकेट देखना पसंद है। वह कहते हैं, 'दुनिया में कोई भी खेल इतने लंबे समय तक नहीं खेला जाता। मुझे ये काफ़ी पसंद है। ये बिल्कुल किसी रूसी नॉवेल पढ़ने जैसा है।'

सीईओ बनने से पहले वह माइक्रोसॉफ्ट के क्लाउड एंड एंटरप्राइज़ इकाई के वाइस प्रेसीडेंट थे। जुलाई, 2013 से ही नडेला कंपनी के कम्प्यूटिंग प्लेटफॉर्म्स, डेवेलपर टूल्स और क्लाउड सर्विसेज़ से जुड़ी जिम्मेदारी निभा रहे थे। साल 1967 में जन्मे सत्या की शिक्षा भारत और अमरीका में हुई है। उन्होंने अपना करियर सन माइक्रोसिस्टम से शुरू किया था।

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वह साल 1992 में माइक्रोसॉफ्ट से जुड़े और तेजी से सफलता की सीढि़यां चढ़ने लगे। उन्हें कंपनी की बड़ी जिम्मेदारियां दी गई और बिंग सर्च इंजन की टीम उन्हीं की कमान में थी। माइक्रोसॉफ्ट की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार उन्होंने कर्नाटक के मंगलौर विश्वविद्यालय से साल 1988 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। उसके बाद उन्होंने अमरीका के विस्कॉन्सिन-मिलवॉकी विश्वविद्यालय से कम्प्यूटर साइंस में स्नातकोत्तर किया फिर वहीं के शिकागो विश्वविद्यालय से एमबीए किया।


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