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    स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए कर्ज बड़ी मुसीबत, NPA में दबे बैंक लोन देने से कर सकते हैं इन्कार

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Wed, 20 Apr 2016 11:58 PM (IST)

    केन्द्र सरकार की तरफ से स्पेक्ट्रम नीलामी के अभियान में सबसे बड़ी बाधा दूरसंचार कपनियां को दिया जाने वाला लोन है। ...और पढ़ें

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    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। दूरसंचार कंपनियों को स्पेक्ट्रम नीलाम करने की तैयारियों में जुटी केंद्र सरकार के अभियान में सबसे बड़ी अड़चन बैंकों की तरफ से लगाई जा सकती है। दरअसल, सरकारी क्षेत्र के बैंक पहले से ही फंसे कर्जे (एनपीए) की मुसीबत में उलझे हैं। साथ ही वह टेलीकॉम कंपनियों को पहले भी कर्ज देकर फंस चुके हैं। ऐसे में दूरसंचार कंपनियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बैंकों को मनाने की होगी कि वे उन्हें स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए पर्याप्त कर्ज मुहैया कराएं। अगले दो महीने के भीतर होने वाली स्पेक्ट्रम नीलामी के लिए टेलीकॉम कंपनियों को तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये के कर्ज की दरकार होगी।

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    सरकार करेगी कोशिश

    दूरसंचार विभाग (डॉट) को भी यह चिंता सता रही है। इसलिए स्पेक्ट्रम नीलामी को सफल बनाने के लिए वित्त मंत्रालय की मदद लेने पर भी विचार किया जा रहा है। वित्त मंत्रालय को यह आश्वस्त किया जाएगा कि देश में दूरसंचार कंपनियों का भविष्य बहुत ही अच्छा है, इसलिए उन्हें कर्ज मुहैया कराने में कोई जोखिम नहीं है।

    पिछले वर्ष स्पेक्ट्रम नीलामी के दौरान भी बैंकों के स्तर पर शुरुआती दुविधा दिखाई गई थी, लेकिन वित्त व संचार मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद बैंकों ने कर्ज देने में कोई कोताही नहीं बरती। हालांकि पिछले वर्ष बैंकों को एक बार में 25 हजार करोड़ रुपये का कर्ज ही देना था, लेकिन इस बार कर्ज की राशि बहुत ज्यादा होने के आसार हैं। संचार विभाग का अनुमान है कि स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए मोबाइल कंपनियां एक लाख करोड़ रुपये तक का कर्ज ले सकती हैं।

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    आने वाले वर्ष चुनौतीपूर्ण

    स्पेक्ट्रम नीलामी के लिए हाल के दिनों में दूरसंचार कंपनियों और संचार मंत्रालय के बीच बैठकों का जो दौर चला है, उसमें बैंकों से कर्ज मिलने की दिक्कतों के बारे में चिंता जताई गई है। दरअसल, कई वित्तीय सलाहकार एजेंसियों ने हाल के दिनों में यह रिपोर्ट दी है कि भारत की मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों के लिए आने वाले दो-तीन वर्ष काफी चुनौतीपूर्ण होंगे।

    खास तौर पर रिलायंस जियो के बाजार में उतरने के बाद पहले से मौजूद मोबाइल ऑपरेटरों के लिए राजस्व बढ़ाने की चुनौती बढ़ जाएगी। ऐसे में उन्हें ज्यादा कर्ज मिलना मुश्किल लग रहा है। इसके पीछे एक बड़ी वजह देश के मोबाइल बाजार में बहुत ज्यादा प्रतिस्पद्र्धा को माना जा रहा है। भारत के एक-एक दूरसंचार सर्किल में 7-8 कंपनियां मोबाइल सेवा दे रही हैं। इन सभी कंपनियों के राजस्व में काफी धीमी गति से बढ़ोतरी हो रही है। दूसरी वजह यह है कि इन कंपनियों पर पहले से ही बैंकों का लगभग 2,50,000 करोड़ रुपये का कर्ज है।

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