Economy के लिए जरूरी है मझधार में फंसीं NBFCs को बचाना, कोरोना काल में भी लोन देने में साबित हुई है इनकी उपयोगिता
बैंकों की तरफ से फंड उपलब्ध कराने में आनाकानी आइएलएंडएफएस व डीएचएफएल का वित्तीय संकट उसके बाद कोरोना की तबाही। पिछले कुछ वर्षो की इन समस्याओं ने देश की गैर बैं¨कग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के ढांचे को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया है।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। बैंकों की तरफ से फंड उपलब्ध कराने में आनाकानी, आइएलएंडएफएस व डीएचएफएल का वित्तीय संकट, उसके बाद कोरोना की तबाही। पिछले कुछ वर्षो की इन समस्याओं ने देश की गैर बैं¨कग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के ढांचे को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया है। हाल के वर्षों में कई समितियां गठित हुई, नियम कानूनों को सख्त किया गया, वित्तीय मझधार में फंसी एनबीएफसी के लिए अतिरिक्त फंड जुटाने की व्यवस्था भी हुई, लेकिन देश की हजारों एनबीएफसी की स्थिति अभी बहुत सुधरती नहीं दिख रही है। पिछले छह महीने में फिच, मूडीज, क्रिसिल जैसी रेटिंग एजेंसियों की रिपोर्ट बताती हैं कि बैंकों का एनपीए बढ़ने से एनबीएफसी की समस्या और बढ़ सकती है। ऐसे में इन्हें संभालना और जरूरी हो गया है। कोरोना काल में मुश्किल से रास्ते पर आई इकोनॉमी की रफ्तार बचाए रखने का बहुत बड़ा जिम्मा एनबीएफसी पर आकर टिक सकता है।
एनबीएफसी सेक्टर में नियमन बदलने वाली समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, 'देश की रियल इकोनॉमी के लिए एनबीएफसी बहुत जरूरी हैं। ये कंपनियां बैंकों के क्रेडिट के काम को विस्तार देने में सबसे अहम भूमिका निभाती हैं। साथ ही कुछ वर्गो तक लोन पहुंचाने में भी इनकी भूमिका अहम है।'
एनबीएफसी यू ग्रो कैपिटल के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन व एमडी शचीन्द्र नाथ ने कहा, 'भारत जैसे बड़े देश में एनबीएफसी हमेशा प्रासंगिक रहेंगीं। आत्मनिर्भर भारत के लिए सक्षम व मजबूत एनबीएफसी बड़ी जरूरत हैं।'
आरबीआइ की बैंकिंग ट्रेंड एंड प्रोग्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 2009 से 2019 के दौरान देश की वाणिज्यिक बैंकिंग व्यवस्था के जरिये सालाना कर्ज वितरण में 10.5 फीसद का औसतन इजाफा हुआ था, जबकि एनबीएफसी ने 18 फीसद की दर हासिल की।
2013 में देश की जीडीपी के मुकाबले 51.9 फीसद कर्ज बैंक दे रहे थे, जो 2019 में घटकर 50.7 फीसद हो गया है। इस दौरान एनबीएफसी की तरफ से वितरित कर्ज का हिस्सा 8.6 फीसद से बढ़कर 11.6 फीसद हो गया। अभी देश में जितना कर्ज वितरित होता है उसमें 18 फीसद हिस्सा एनबीएफसी का होता है। कोरोना काल में जब सरकार को छोटे व मझोले उद्योगों को अतिरिक्त कर्ज मुहैया कराने की जरूरत महसूस हुई तो इसके लिए भी एनबीएफसी का रास्ता अपनाया गया।
लाभार्थियों में शामिल है बड़ा वर्ग
एनबीएफसी के जरिये उन लोगों को आसानी से कर्ज दिया जाता है, जिन्हें सामान्य बैंकिंग व्यवस्था से कर्ज मिलने में परेशानी होती है। इनमें गांव के छोटे कारोबारियों से लेकर शहरों की बड़ी रियल एस्टेट कंपनियां और दूर-दराज के इलाकों के स्वयं सहायता समूहों से लेकर बड़े शहरों के नौकरीपेशा वर्ग तक शामिल हैं। देश में होम लोन और ऑटो लोन के विस्तार में इनकी भूमिका अहम रही है। एनबीएफसी ने ही पहली बार घरेलू उपकरणों की खरीद के लिए कर्ज दिया और पुराने स्वर्ण आभूषणों के बदले कर्ज देने की शुरुआत की।
बैंकों से ही जुटाते हैं फंड
एनबीएफसी बैंकों से ही कर्ज लेते हैं और फिर उसे दूसरे वर्गो को लोन देते हैं। यही वजह है कि एनबीएफसी को शैडो बैं¨कग भी कहा जाता है। देश में 64 एनबीएफसी ऐसी हैं जिन्हें आम जनता से जमा स्वीकार करने की भी अनुमति है। इसके अलावा 292 ऐसी एनबीएफसी हैं जो जमा तो स्वीकार नहीं करती हैं लेकिन इनका पूंजी आकार 500 करोड़ रुपये से ज्यादा है। जानकारों का कहना है कि कोरोना काल के बाद देश की इकोनॉमी को गति देने के लिए एनबीएफसी की स्थिति सुधारना जरूरी है। नियमन संबंधी अनिश्चितता की वजह से बैंक व अन्य संस्थानों का एनबीएफसी के प्रति भरोसा अभी बन नहीं पाया है।
एनबीएफसी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनके पास फंड जुटाने की अपनी गारंटीशुदा व्यवस्था नहीं है। जब भी वित्तीय संकट होता है तो बैंक व दूसरे संस्थान सबसे पहले एनबीएफसी को फंड देने से हाथ खींचते हैं। इस समस्या के समाधान से ही मजबूत एनबीएफसी सेक्टर की नींव रखी जा सकेगी।