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    भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड वार्ता का नया दौर, लेकिन 25% पेनाल्टी है समझौते में बड़ी बाधा

    Updated: Tue, 16 Sep 2025 03:04 PM (IST)

    India-US trade deal भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता एक बार फिर शुरू हो गई है। लेकिन रूस से तेल खरीदने के कारण अमेरिका ने भारत पर जो 25 प्रतिशत पेनाल्टी टैरिफ (oil-tariff) लगा रखा है जब तक वह उसे नहीं हटाता तब तक किसी अंतिम नतीजे पर पहुंचना मुश्किल है।

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    भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड वार्ता का नया दौर, लेकिन 25% पेनाल्टी है समझौते में बड़ी बाधा

    India-US trade deal: भारत और अमेरिका के मुख्य वार्ताकारों के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते पर बातचीत मंगलवार सुबह एक बार फिर शुरू हो गई। दक्षिण और मध्य एशिया के लिए अमेरिकी के सहायक व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच अमेरिकी टीम का नेतृत्व कर रहे हैं। वाणिज्य मंत्रालय में विशेष सचिव राजेश अग्रवाल भारत के मुख्य वार्ताकार हैं।

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    लिंच इस एक दिवसीय वार्ता के लिए सोमवार देर रात भारत पहुंचे। अमेरिकी बाजार में भारतीय सामान पर 7 अगस्त से 25 प्रतिशत शुल्क और 27 अगस्त से 25 प्रतिशत जुर्माना लगाए जाने के बाद किसी उच्च पदस्थ अमेरिकी व्यापार अधिकारी का यह पहला दौरा है।

    रूसी तेल खरीदने के कारण लगा टैरिफ मुख्य बाधा

    थिंकटैंक GTRI का कहना है कि इस बातचीत में रूस से तेल खरीदने के कारण लगाया गया शुल्क मुख्य बाधा है। जब भारत पर 25 प्रतिशत का शुल्क लगाया गया था, तब बातचीत चल रही थी और उम्मीद थी कि इसे घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया जाएगा। इसके बजाय वॉशिंगटन ने भारत पर 25 प्रतिशत जुर्माना (25% oil-linked tariffs) लगाकर विवाद को और बढ़ा दिया।

    यही नहीं, 4 सितंबर को ट्रंप प्रशासन ने निचली अदालत द्वारा रद्द किए गए शुल्क को बहाल करने के लिए अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की। उसमें विभिन्न देशों को दंडित करने के अधिकार को बनाए रखने के औचित्य के लिए भारत की तेल खरीद का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया। भारत का नाम हटाने से ट्रंप के लिए कानूनी मामला कमजोर हो जाएगा। इसलिए जब तक भारत रूस से तेल आयात बंद नहीं करता तब तक कोई भी राहत मिलना मुश्किल लग रहा है।

    यूरोपीय यूनियन पर भी दबाव डाल चुके हैं ट्रंप

    GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, ट्रंप ने यूरोपीय यूनियन से रूसी तेल खरीदने पर चाइनीज वस्तुओं पर 50-150 प्रतिशत टैरिफ लगाने का आह्वान किया है। उन्होंने भारत को लक्ष्य बनाने के लिए भी ईयू पर दबाव डाला। लेकिन ईयू का चीन के साथ सालाना 732 अरब यूरो का व्यापार है। मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, एपीआई और सौर उपकरणों के मामले में चीन पर उनकी भारी निर्भरता है। इसलिए यूरोपीय यूनियन चीन के साथ आर्थिक संकट का जोखिम नहीं उठाएगा। चीन शायद रूसी कच्चा तेल खरीदना कभी बंद न करे।

    वॉशिंगटन से मिले-जुले संकेत

    विडंबना यह है कि अमेरिका भारत के साथ व्यापार समझौता करने के लिए बेताब दिख रहा है, जबकि उसके अधिकारी लगभग रोजाना सार्वजनिक मंचों से नई दिल्ली के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। बातचीत का नया दौर शुरू होने से पहे ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने टिप्पणी की कि ‘टैरिफ का महाराजा’ भारत बातचीत की मेज पर लौट रहा है।

    श्रीवास्तव के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में भारत का नाम लेकर व\शिंगटन ने समझौते को राजनीतिक रूप से मुश्किल बना दिया है। यह समझौता तभी संभव होगा जब भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर दे, भले ही चीन और यूरोपीय यूनियन ऐसा करते रहें। उन्होंने कहा, “लेकिन नई दिल्ली को अपनी ‘रेड लाइन’ से समझौता नहीं करना चाहिए।”

    भारत की ‘रेड लाइन’ और रणनीति

    भारत को कृषि और डेयरी क्षेत्र में दृढ़ रहना होगा। भारत के लिए यह व्यापारिक मुद्दा नहीं, बल्कि 70 करोड़ से ज्यादा किसानों की आजीविका की मसला है। भारत की रणनीति ज्यादातर औद्योगिक वस्तुओं पर टैरिफ हटाने की है। इसमें अमेरिका से 95% से ज्यादा आयात कवर हो जाएगा। लेकिन साथ ही राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को भारत सुरक्षित रखना है।

    बातचीत में भारतीय पेटेंट कानूनों को लचीला बनाने, मुफ्त डेटा प्रवाह की अनुमति देने, अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनियों को उत्पाद बेचने के लिए प्लेटफॉर्म मॉडल का इस्तेमाल करने की अनुमति देने और भारत सरकार की खरीद में अमेरिकी कंपनियों को शामिल करने जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हो सकती है। चुनौती यह होगी कि भारत स्वायत्तता या आर्थिक संप्रभुता को कम किए बिना कितनी रियायतें देता है।

    भारत का अगला कदम

    जब तक वॉशिंगटन अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ वापस नहीं लेता, तब तक बातचीत में प्रगति की संभावना कम है। इस बीच, भारत को औपचारिक रूप से अपनी आपत्तियां दर्ज करानी चाहिए। भारत अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में एमिकस क्यूरी ब्रीफ के माध्यम से अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है, ताकि टैरिफ को चुनौती देने वाले अमेरिकी बिजनेस का समर्थन किया जा सके और बातचीत का रास्ता खुला रखा जा सके।

    श्रीवास्तव का कहना है कि फिलहाल कोई त्वरित समाधान नहीं दिखता और भारत को लंबी अवधि के लिए तैयार रहना चाहिए। अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद भी कर देता है, तो भी टैरिफ हटाने की गारंटी नहीं है। जब तक वाशिंगटन अपने रुख में वास्तविक लचीलेपन का संकेत नहीं देता, बातचीत धीमी रहेगी।