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    अपने अमीर किसानों के लिए हिंदुस्तान का बाजार चाहता है अमेरिका, भारत को फायदा या नुकसान; जानें कहां फंसा पेंच

    भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते में कृषि क्षेत्र पर सहमति नहीं बन पा रही है। अमेरिका चाहता है कि भारत उसके कृषि उत्पादों को बाजार में आसान पहुंच दे जबकि भारत अपने किसानों के हितों की रक्षा करना चाहता है। अमेरिका अपने किसानों को कीमतों में कमी या राजस्व में कमी होने पर वित्तीय मदद देता है।

    By Jagran News Edited By: Gyanendra Tiwari Updated: Fri, 04 Jul 2025 08:06 PM (IST)
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    अपने अमीर किसानों के लिए हिंदुस्तान का बाजार चाहता है अमेरिका

    नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर हो रही बातचीत में कृषि क्षेत्र को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है। एक तरफ अमेरिका इस बात पर अड़ा हुआ है कि भारत उसके कृषि और डेयरी उत्पादों को अपने बाजार में आसान पहुंच दे। वहीं भारत अपने किसानों के हितों को लेकर किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है।

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    अमेरिकी किसानों की औसत आय

    अमेरिका के किसानों की औसत आय अमेरिका के किसानों की संख्या काफी कम है, लेकिन उनकी औसत पारिवारिक आय 97,984 डालर है। यह अमेरिकी परिवारों की औसत आय से 80,610 डालर से अधिक है। अमेरिका की सरकार किसानों को बड़े पैमाने पर वित्तीय मदद देती है। इसी वजह से किसानों की औसत आय काफी अधिक है।

    अमेरिका ऐसे देता है वित्तीय मदद

    अमेरिका, भारत की तरह अपने किसानों को उनकी लागत कम करने के लिए उर्वरक, बिजली या पानी पर सब्सिडी नहीं देता है। न ही सरकार सरकारी खरीद या उत्पाद का स्टाक रख कर कीमतों में किसी तरह का हस्तेक्षप करती है। इसके बजाए सरकार किसानों को सीधे भुगतान के जरिये वित्तीय मदद मुहैया कराती है।

    वित्तीय मदद के प्रमुख प्रोग्राम अमेरिका में किसानों को वित्तीय मदद मुहैया कराने के लिए दो प्रमुख प्रोग्राम प्राइस लास कवरेज (पीएलसी) और एग्रीकल्चर लास कवरेज (एएलसी) हैं। इन प्रोग्राम के जरिये कीमते कम होने या राजस्व में कमी होने पर किसानों को सुरक्षा दी जाती है। गेहूं, मक्का, ज्वार, ओट्स, चावल, दाल, मटर, कपास, सोयाबीन और तिलहन सहित 22 फसलों को इन प्रोग्राम के तहत कवर किया गया है।

    वहीं भारत में किसानों को उर्वरक, बिजली और पानी पर सब्सिडी मिलती है। केंद्र सरकार किसानों को सालाना 5 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी देती है।

    कैसे काम करता है प्रोग्राम

    पीएलसी के तहत किसानों को भुगतान तब होता है जब कवर की गई फसलों का का औसत बाजार मूल्य प्रभावी संदर्भ मूल्य या ईआरपी से नीचे गिर जाता है। ईआरपी भारत में विभिन्न फसलों के लिए घोषित किए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी की तरह ही है।

    उदाहरण के लिए अमेरिका में गेहूं के लिए ईआरपी प्रति बुसेल 5.56 डालर है। यह प्रति ¨क्वटल करीब 1,780 रुपये है, जो भारत की एमएसपी 2,425 रुपये प्रति ¨क्वटल से कम है। हालांकि एमएसपी के तहत सरकार फसलों की खरीद करती है, वहीं अमेरिका में किसानों को बाजार की एक वर्ष की औसत कीमत और ईआरपी के बीच अंतर का भुगतान किया जाता है।

    इसी तरह से एआरसी भुगतान तब होता है जब कवर की गई फसल को उगाने से वास्तविक राजस्व गारंटीड लेवल से कम हो जाता है। राजस्व का गारंटीड लेवल काउंटी की पैदावार और पांच वर्ष के औसत बाजार कीमत पर आधारित होता है।

    डेयरी उत्पादकों को भी मिलती है मदद पीएलसी और एआरसी के अलावा अमेरिका में डेयरी मार्जिन कवरेज प्रोग्राम (डीएमसी) भी है। प्रोग्राम के तहत दूध की कीमत और औसत फीड कास्ट के बीच अंतर एक तय सीमा से अधिक हो जाने पर डेयरी उत्पादकों को वित्तीय मदद दी जाती है। इससे उत्पादकों को कीमतें गिरने और लागत बढ़ने के बावजूद अधिक स्थिर आय सुनिश्चित होती है।

    इसलिए अमेरिका के लिए भारत नहीं खोल रहा अपना बाजार

    भारत के कृषि बाजार को अगर अमेरिका के कृषि उत्पादों के लिए खोला जाता है तो भारतीय किसानों को बेहद असमान प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा। यही वजह है कि विश्व व्यापार संगठन के नियम अपने हितों की रक्षा और टैरिफ के मामले में भारत जैसे विकासशील देशों को विशेष सहूलियत प्रदान करते हैं।