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    RBI on Indian Economy: भारत के विकसित राष्‍ट्र बनने के लिए कितनी हो विकास दर? आरबीआई की रिपोर्ट में सामने आई यह बात

    Updated: Tue, 23 Apr 2024 10:00 PM (IST)

    केंद्रीय बैंक कहता है कि अधिकतम जनसांख्यिकीय लाभ के लिए पूंजी निवेश की जरूरत है और भारत में इसके संकेत मिल रहे हैं। केंद्र सरकार की तरफ से पूंजीगत खर्चे में की जा रही है वृद्धि के बाद अब निजी सेक्टर की तरफ से भी निवेश बढ़ने लगा है। इस संदर्भ में एशियाई विकास बैंक की ताजी रिपोर्ट का हवाला दिया गया है।

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    वर्ष 2021-2024 के बीच आठ फीसद से ज्यादा तेजी से बढ़ी है देश की इकोनॉमी।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। RBI on Indian Economy भारत की अर्थव्यवस्था ने पिछले तीन वर्षों के दौरान आठ फीसद से ज्यादा की आर्थिक विकास दर हासिल की है और अब यहां 8-10 फीसदी की सालाना आर्थिक विकास दर हासिल करने की नींव बन चुकी है। यह बात आरबीआई ने मंगलवार को जारी अपनी मासिक रिपोर्ट (अप्रैल, 2024) में कही है। देश के केंद्रीय बैंक ने हाल के महीनों में दूसरी बार दहाई अंक की आर्थिक विकास दर हासिल करने की तरफ बढ़ने की बात कही है।

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    तकरीबन डेढ़ दशक में सरकार के स्तर पर विरले ही 10 फीसदी या इससे ज्यादा की विकास दर हासिल करने की बात कही गई है जबकि उसके पहले वित्त मंत्रालय और तत्कालीन योजना आयोग इस बारे में कई बार रिपोर्टें जारी कर चुकी थी। अब आरबीआई ना सिर्फ विकास से संबंधित आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अगले दो से तीन दशकों तक 8-10 फीसदी की विकास दर हासिल करने की जरूरत बता रहा है बल्कि उसे यह भी भरोसा है कि इसे हासिल करने संभव है।

    आरबीआई ने कहा है कि वर्ष 2021-2024 के दौरान आठ फीसदी की जो विकास दर हासिल की गई है, अब इसका विस्तार करने की स्थिति बन गई है। भारतीय इकोनॉमी को अगले तीन दशकों तक लगातार 8 से 10 फीसदी की वार्षिक विकास दर हासिल करनी होगी और यह भारत की जनसांख्यिकीय स्थिति को देखते हुए जरूरी भी है।

    जनसांख्यिकीय लाभांश की अर्थव्यवस्था की उस स्थिति को कहते हैं जब किसी देश में जनसंख्या का प्रसार उसकी अर्थव्यवस्था को सर्वाधिक लाभ पहुंचाने की स्थिति में हो। आम तौर पर यह स्थिति तब बनती है जब कुल आबादी में उत्पादक काम करने वाले युवाओं की संख्या ज्यादा होती है। आरबीआई का कहना है कि भारत में इस स्थिति की शुरुआत वर्ष 2018 से हो चुकी है और यह स्थिति मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से वर्ष 2055 तक रहेगी।

    केंद्रीय बैंक आगे कहता है कि अधिकतम जनसांख्यिकीय लाभ के लिए पूंजी निवेश की जरूरत है और भारत में इसके संकेत मिल रहे हैं। केंद्र सरकार की तरफ से पूंजीगत खर्चे में की जा रही है वृद्धि के बाद अब निजी सेक्टर की तरफ से भी निवेश बढ़ने लगा है। इस संदर्भ में एशियाई विकास बैंक की ताजी रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। कोरोना काल में भारत में निजी निवेश घट गया था और कुल पूंजी निर्माण में नये निवेश की हिस्सेदारी घट गई थी लेकिन अब यह बढ़ने लगी है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान ब्याज दरों में वृद्धि के बावजूद बैंकों की तरफ से वितरित होने वाले कर्ज में 16 फीसद की बढ़ोतरी हुई है जो पिछले 11 वर्षों की अधिकतम वृद्धि दर है।

    जनसांख्यिकीय लाभ उठाने की दूसरी शर्त आरबीआई ने उपलब्ध श्रम को बेहतर गुणवत्ता का प्रशिक्षण देने को बताया है। बेहतर कौशल प्रशिक्षण से ही रोजगार के बेहतरीन अवसर दिया जा सकेगा। इसके अलावा आरबीआई ने महंगाई के मुद्दे को उठाया है और इसके नियंत्रण भी तेज आर्थिक विकास दर के लिए अहम करार दिया है।

    पिछले कुछ महीनों में महंगाई की दर लगातार कम हो रही है और मार्च, 2024 में यह 4.9 फीसदी रही है। वैसे खाद्य उत्पादों में महंगाई बढ़ने की आशंका रहेगी लेकिन अब इस बात की संभावना मजबूत हुई है कि खुदरा महंगाई की दर चार फीसद या इससे नीचे भी जाएगी। महंगाई के इस स्तर पर रहने से आर्थिक गतिविधियों के विस्तार में भी मदद मिलेगी और लोगों के जीवन स्तर को सुधार लाना आसान होता है।