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    इंडिया का बॉयकॉट, चीन से दोस्ती; फिर डिफॉल्ट के टैग से बचने के लिए मोदी के सामने कैसे झुके मोहम्मद मुइज्जू?

    Updated: Fri, 25 Jul 2025 02:08 PM (IST)

    India Maldives Mohamed Muizzu Pm Modi Visit PM मोदी दो दिवसीय मालदीव यात्रा पर हैं। मालदीव और भारत के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होने की संभावना है। मालदीव के लिए पीएम मोदी की यह यात्रा बहुत ही अहम है। क्योंकि बीते दो साल में कहानी बिल्कुल पलट गई है।

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    चीन से दोस्ती; फिर डिफॉल्ट के टैग से बचने के लिए मोदी के सामने कैसे झुके मोहम्मद मुइज्जू

    नई दिल्ली। बीते दो सालों में मोहम्मद मुइज्जू का नाम आपने जरूर शुरू होगा। यह नाम मालदीव के राष्ट्रपति का है। 2023 में भारत विरोधी कैंपेन चलाकर उन्होंने सत्ता हासिल की। चीन से दोस्ती बढ़ाई लेकिन फिर ऐसा  कुछ हुआ कि उन्हें भारत के सामने झुकना पड़ा। आज वह भारत के प्रधानमंत्री का स्वागत कर रहे है। पीएम मोदी मालदीव (India Maldives Mohamed Muizzu Pm Modi Visit) के दौरे पर हैं। 

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    पीएम मोदी मालदीव के स्वतंत्रता समारोह में अतिथि बनकर पहुंचे हैं। उन्हें मुइज्जू ने उनका शानदार स्वागत किया। लेकिन आज से दो साल पहले वह चीन के इतने करीब आ गए थे कि भारत से दुश्मनी मोल ले ली थी। लेकिन फिर अपने देश को डिफॉल्ट होने के टैग से बचाने के लिए मोहम्मद मुइज्जू को पीएम मोदी के सामने झुकना पड़ा। आइए शुरू से समझते हैं कि कैसी थी मुइज्जू के पलटने की कहानी।

    मालदीव के राष्ट्रपति बनते ही मुइज्जू ने तोड़ी परंपरा

    नवंबर 2023 में इंडिया आउट का कैंपेन चलाकर मोहम्मद मुइज्जू ने चुनाव जीता और मालदीव के राष्ट्रपति बने। मालदीव में मौजूद भारतीय सैनिकों को वह भारत भेजने को लेकर कैंपेन चला रहे थे। वह यह सब चीन के सहयोग पर कर रहे थे।

    मालदीव में जब भी कोई नेता राष्ट्रपति की शपथ लेता है तो उसका पहला आधिकारिक दौरा भारत का होता है। लेकिन मुइज्जू ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने इस परंपरा को तोड़ते हुए पहले तुर्की और फिर चीन का दौरा किया।

    इन सबके बीच मोहम्मद मुइज्जू के पार्टी के नेताओं ने भारत के पीएम और भारत के खिलाफ कई तरह के बयान दिए जिसने दोनों देशों के रिश्तों और खराब कर दिया। इन सबके बीच मालदीव की आर्थिक स्थिति और खराब होती जा रही थी।

    2 साल के भीतर ऐसा हुआ कि मालदीव के राष्ट्रपति समेत कई बड़े नेताओं ने पीएम मोदी का जोरदार स्वागत किया और उन्हें एयरपोर्ट से रिसीव करने पहुंचे।

    2024 में बदली कहानी मदद के लिए भारत के पास आए मुइज्जू

    नवंबर 2023 में मुइज्जू राष्ट्रपति बने और अक्टूबर 2024 में कहानी ऐसा बदली की उन्हें भारत का दौरा करना पड़ा। क्योंकि मालदीव आर्थिक संकट से जूझ रहा था। कोरोना तो खत्म हो गया था लेकिन अभी मालदीव आर्थिक संकट से उबर नहीं पाया था।

    ऊपर से पीएम मोदी की लक्षद्वीप की ट्रिप के बाद भारतीयों ने मालदीव जाना भी लगभग बंद कर दिया था। भारतीय पर्यटकों के सहारे ही मालदीव की अर्थव्यवस्था चल रही थी। लेकिन सब कुछ तहस नहस हो चुका था।

    भारत ने मालदीव को डिफॉल्ट होने से बचाया

    सितंबर 2024 में मालदीव के पास विदेशी मुद्रा भंडार मात्र $440 मिलियन का बचा था। उसके पास विदेश से सामान मंगाने के लिए सिर्फ 1.5 महीने के ही पैसे थे। अक्टूबर 2024 में भारत की यात्रा करने से पहले मुइज्जू ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें भारत से मदद की उम्मीद है।

    उस समय मालदीव कर्ज न चुकाने की कगार पर था। क्योंकि उसका विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 44 करोड़ डॉलर (33.4 करोड़ पाउंड) रह गया है, जो डेढ़ महीने के आयात के लिए ही था।

    अपनी यात्रा से पहले बीबीसी को दिए इंटरव्यू में मुइज्जू ने कहा था बताया, "भारत हमारी वित्तीय स्थिति से पूरी तरह वाकिफ है और हमारे सबसे बड़े विकास साझेदारों में से एक होने के नाते, हमारे बोझ को कम करने, हमारे सामने आने वाली चुनौतियों के लिए बेहतर विकल्प और समाधान ढूँढने के लिए हमेशा तैयार रहेगा।"

    इसके बाद भारत ने 750 मिलियन डॉलर की करेंसी स्वैप की सुविधा दी और 100 मिलियन डॉलर ट्रेजरी बिल रोलओवर करके मालदीव की आर्थिक मदद की थी और उसे डिफॉल्ट होने से बचाया था।

    मालदीव में भारत का अरबों रुपये का निवेश

    इतना ही भारत ने मालदीव में अरबों रुपये का निवेश भी किया हुआ है। इंडिया मालदीव में बुनियाद ढांचे के विकास में अहम भूमिका निभा रहा है। मालदीव में भारत के सहयोग से हनीमाधू हवाई अड्डा बनाया जा रहा है, जिसके अगस्त 2025 से पूरी तरह से चालू होने की उम्मीद है।

    भारत मालदीव में ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के तहत  एक पुल बना रहा है। यह पुल सितंबर 2026 तक पूरा हो जाएगा। यह पुल मालदीव की राजधानी माले को तीन पड़ोसी द्वीपों - विलिंगिली, गुलहिफाहु और थिलाफुशी से जोड़ेगी। इसकी लंबाई  6.7 किलोमीटर है।

    मालदीव का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है भारत

    भारत मालदीव के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार लगभग 50 करोड़ डॉलर का है। दोनों पक्ष एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) और एक निवेश संधि पर चर्चा कर रहे हैं, जो विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा और मत्स्य पालन पर केंद्रित है।

    भारत पहले से ही रियायती लोम और क्रेता लोन सुविधाओं के मिश्रण के माध्यम से मालदीव में कई विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित कर रहा है, जिसमें प्रमुख परियोजना ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना है, जो चार द्वीपों को जोड़ेगी।

    अगर भारत न होता तो मालदीव डिफॉल्टर हो जाता- पूर्व राष्ट्रपति

    पीएम मोदी की मालदीव यात्रा को लेकर मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने कहा, "हमारे सबसे चुनौतीपूर्ण समय में भारतीय सहायता ने एक बड़ी भूमिका निभाई है। हमारी बढ़ती वित्तीय कठिनाइयों और भारी ऋण दायित्वों के साथ, भारत के समय पर दिए गए समर्थन ने हमें डिफॉल्ट होने से बचने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में मदद की। सच कहूं तो, अगर भारत नहीं होता, तो हम डिफॉल्टर हो जाते।"

    उन्होंने कहा, "मालदीव हिंद महासागर क्षेत्र के सबसे नौगम्य जल क्षेत्रों में से एक पर स्थित है। यह उत्तर से दक्षिण तक 1,000 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम तक 600 किलोमीटर तक फैला है। प्रधानमंत्री मोदी की मालदीव यात्रा भारत के साथ अपने दीर्घकालिक संबंधों को दिए जाने वाले रणनीतिक महत्व की पुष्टि करती है।"

    भारत के पर्यटकों पर निर्भर है मालदीव

    मालदीव की अर्थव्यवस्था में पर्यटन लगभग 28% का योगदान देता है। इसमें सबसे बड़ा समूह भारतीय पर्यटकों का है। लेकिन भारत विरोधी कैंपेन चलाए जाने के बाद 2024 में भारतीयों ने "बायकॉट मालदीव" अभियान चलाया जिससे मालदीव को $150 मिलियन का भारी नुकसान हुआ।

    गलती को भांपते हुए मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जी ने भारत के पर्यटकों से उनके देश आने की अपील की।

    अब धीरे-धीरे मालदीव में पर्यटक फिर से लौट रहे हैं। भारत का विरोध करके मुइज्जू को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। इसलिए उन्होंने दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

    चीन के कर्ज के जाल में फंसा मालदीव

    मालदीव के राष्ट्रपति बनने के बाद मोहम्मद मुइज्जू चीन के मोह में फंस गए थे। चीन की ही शह पर वह भारत विरोधी अभियान चला रहे थे। इसका नतीजा यह हुआ की ड्रैगन ने उन्हें निचोड़ लिया।

    मालदीव का चीन पर कर्ज 1.37 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। चीन ने मालदीव का उच्च दरों पर कर्ज दिया है लेकिन भारत ने जो कर्ज दिया है उसकी ब्याज दर चीन के मुकाबले बहुत कम है।

    अब भारत ही मालदीव को आर्थिक रूप के साथ-साथ रणनीतिक रूप से मदद कर रहा है। चीन के ऊपर निर्भरता कम करने और उसकी चाल से बचने के लिए मालदीव, भारत के साथ आ गया है। वह चाहता है कि भारत उसे आर्थिक संकट से निकालने में मदद करे।

    भारत अपने पुराने साझेदार के साथ वैसा ही कर रहा जैसा वह पहले करता था। यही कारण है की मालदीव के लोगों का भारत पर अटूट विश्वास है।