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    Print Adex में ग्लोबल कैपिटल बनकर उभर रहा है भारत : सैम बलसारा

    भारतीय प्रिंट ADEX वैश्विक प्रिंट ADEX में 6 प्रतिशत का योगदान देता है। जबकि वैश्विक ADEX में प्रिंट की हिस्सेदारी 4 फीसद है भारत में यह अविश्वसनीय 21% है और भारत को सभी देशों की तुलना में सबसे अधिक प्रिंट ADEX हिस्सेदारी होने का अनूठा गौरव प्राप्त है। कहा जाता है कि एक सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं और हर पहलू एक अलग कहानी कहता है।

    By Jagran NewsEdited By: Rammohan MishraUpdated: Wed, 27 Sep 2023 07:26 PM (IST)
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    Print Adex में भारत ग्लोबल कैपिटल बनकर उभरा रहा है।

    नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। क्या आप जानते हैं कि जहां भारतीय ADEX वैश्विक ADEX में केवल 1.2 प्रतिशत का योगदान देता है, वहीं भारतीय प्रिंट ADEX वैश्विक प्रिंट ADEX में 6 फीसद का योगदान देता है। जबकि वैश्विक ADEX में प्रिंट की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत है, भारत में यह अविश्वसनीय 21% है और भारत को सभी देशों की तुलना में सबसे अधिक प्रिंट ADEX हिस्सेदारी होने का अनूठा गौरव प्राप्त है।

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    इसकी तुलना चीन से करें जहां प्रिंट एडेक्स की हिस्सेदारी शून्य है। वहीं अमेरिका और यूके की हिस्सेदारी लगभग 3 प्रतिशत है। प्रिंट के लिए 18 फिसदी हिस्सेदारी के साथ जर्मनी एकमात्र इसमें अपवाद है। इस आंकड़े को लेकर Madison World के चेयरमैन Sam Balsara ने समीक्षा की है। अपने इस लेख में हम उसके कुछ अंश साझा कर रहे हैं। 

    एक सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं और हर पहलू अपनी एक अलग कहानी कहता है। सबसे पहले बुरी खबर की ओर रुख करते हैं। 2012 में भारत में प्रिंट ADEX 42 प्रतिशत पर था, लेकिन 2022 में पिच मैडिसन रिपोर्ट का अनुमान है कि यह केवल 21 फीसदी ही था, लेकिन यह कोई छोटा आंकड़ा नहीं है।

    पिछले 10 वर्षों में 50% बढ़ा ADEX 

    अभी यह उद्योग 20,133 करोड़ रुपये है और अंदाजा लगाइए कि 2012 में यह कितना था? 12000 करोड़ रुपये से थोड़ा कम। वहीं, अच्छी खबर यह है कि प्रिंट ADEX पिछले 10 वर्षों में 50% से अधिक बढ़ गया है, जब डिजिटल दुनिया के लगभग सभी हिस्सों में अन्य सभी मीडिया पर भारी पड़ रहा था। इसी दौरान कुल ADEX 10 गुना बढ़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप प्रिंट की हिस्सेदारी आधी रह गई है।

    मैडिसन वर्ड के डायरेक्टर सैम बलसारा बताते हैं कि अगर वो प्रिंट में विज्ञापनदाताओं द्वारा उपभोग की जाने वाली जगह की मात्रा को देखें तो यह कमोबेश वैसी ही बनी हुई है। एफएमसीजी, रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल और शिक्षा कमोबेश टॉप- 4 श्रेणियां बनी हुई हैं, जिनका प्रिंट के बिना काम नहीं चलता है।

    यदि आप भाषा के आधार पर आंकड़ों को देखते हैं तो पिछले एक दशक में बहुत कुछ नहीं बदला है। विज्ञापनदाताओं के लिए हिंदी, अंग्रेजी और मराठी तीन शीर्ष भाषाएं बनी हुई हैं। हालांकि एक महत्वपूर्ण बदलाव जो मैंने देखा वह यह है कि पहले पन्नों पर खपत की गई जगह में नाटकीय रूप से 10% से 24% की वृद्धि हुई है, जो विज्ञापनदाता की प्रिंट के उपयोग के माध्यम से एक बड़ा प्रभाव बनाने या इसका बिल्कुल भी उपयोग न करने की इच्छा को दर्शाता है।

    सैम बलसारा

    डायरेक्टर मैडिसन वर्ल्ड

    सैम बलसारा आगे बताते हैं कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि वर्गीकृत और नियुक्तियों को प्रिंट विज्ञापनों में जो स्थान मिलता था उसमें नाटकीय रूप से गिरावट आई है। यह 39 प्रतिशत से घटकर 23 हो गया है, लेकिन सार्वजनिक सूचनाओं में यह 11 प्रतिशत से बढ़कर 31 फीसद हो गया है।

    सैम बलसारा आगे बताते हैं कि अगर ऑडिटेड सर्कुलेशन आंकड़ों को देखा जाए तो दशक पहले के 4.84 करोड़ से आज 3.35 करोड़ की तीव्र गिरावट दिखने को मिलती है।  वे आगे कहते हैं कि प्रसार में शामिल प्रकाशनों की संख्या में केवल मामूली गिरावट देखने को मिली है। यह भारी गिरावट वास्तविक स्थिति का सटीक प्रतिबिंब नहीं हो सकती है, क्योंकि मेरे कई बड़े प्रकाशक मित्र एबीसी के अंदर और बाहर जाते हैं क्योंकि यह उनके लिए उपयुक्त है।

    रीडरशिप पर टिप्पणी नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि आईआरएस अभी तक कोविड के बाद सामने नहीं आया है। सुनी-सुनाई बातों से पता चलता है कि पाठकों की संख्या में, जो कोविड के शुरुआती महीनों के दौरान भारी गिरावट आई थी, अब लगभग अपने प्री-कोविड स्तर पर वापस आ गई है।

    सैम बलसारा

    मैडिसन वर्ल्ड

    जारी रहेगी तेजी

    सैम बलसारा ने आगे बताते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि भारत में प्रिंट एडेक्स अगले 5 वर्षों में अपनी कम वृद्धि दर जारी रखेगा, क्योंकि अधिक से अधिक नए विज्ञापनदाता मैदान में प्रवेश करेंगे और विशेष रूप से कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटो और सर्विसेज में अधिक नए ब्रांड लॉन्च होंगे।

    उन्होंने आगे कहा कि विज्ञापनदाताओं को सलाह दूंगा कि वे त्वरित पहुंच और प्रभाव का लाभ उठाने के लिए प्रिंट का उपयोग कब करें, इसके बारे में स्वतंत्र निर्णय लें और भारतीय संदर्भ में प्रिंट के बारे में एक स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाएं और प्रिंट न लें क्योंकि यह अच्छा काम नहीं है।