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    समुद्र में केबल बिछाने में आत्मनिर्भर बना भारत, BSNL ने चेन्नई-पोर्ट ब्लेयर के बीच बिछाई 2300 किमी केबल

    By Pawan JayaswalEdited By:
    Updated: Sun, 09 Aug 2020 09:18 AM (IST)

    विशेषज्ञों के मुताबिक समुद्र में केबल बिछाने की सफलता से समुद्री इलाके के साथ देश की सुरक्षा में भी मदद मिलेगी। अंडमान-निकोबार इलाके में पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा। PC Pexels.co

    समुद्र में केबल बिछाने में आत्मनिर्भर बना भारत, BSNL ने चेन्नई-पोर्ट ब्लेयर के बीच बिछाई 2300 किमी केबल

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत समुद्र के भीतर आप्टिकल फाइबर केबल बिछाने के मामले में भी आत्मनिर्भर हो गया। चेन्नई से लेकर पोर्ट ब्लेयर के बीच समुद्र के भीतर 2300 किलोमीटर केबल बिछाने का काम सरकारी कंपनी बीएसएनएल ने पूरा किया है। इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 10 अगस्त को करेंगे। इसके साथ ही अंडमान निकोबार और इसके आसपास के द्वीप वाले इलाके में सभी प्रकार की टेलीकॉम सेवा सुगम और तेज हो जाएगी। मोबाइल फोन में 4जी सेवा मिलने लगेंगी। इंटरनेट की स्पीड पहले के मुकाबले काफी तेज हो जाएगी।

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    विशेषज्ञों के मुताबिक समुद्र में केबल बिछाने की सफलता से समुद्री इलाके के साथ देश की सुरक्षा में भी मदद मिलेगी। अंडमान-निकोबार इलाके में पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा। कोच्चि और लक्षद्वीप के बीच भी समुद्र के भीतर आप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का काम किया जा रहा है।

    टेलीकॉम विशेषज्ञों के मुताबिक समुद्र के भीतर ब्राडबैंड केबल डालने से इंटरनेट की स्पीड काफी तेज हो जाती है। भारतीय समुद्र में 30,000 किलोमीटर आप्टिकल फाइबर केबल डालने की गुंजाइश है। पीएचडी चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री की टेलीकॉम कमेटी के चेयरमैन संदीप अग्रवाल के मुताबिक अभी समुद्र के अंदर केबल बिछाने के काम में विदेशी कंपनियों को महारत है, लेकिन अब भारत इस दिशा में आत्मनिर्भर हो गया है।

    उन्होंने बताया कि अभी सिंगापुर या यूरोप के साथ भारत की टेलीकॉम सेवा समुद्र में बिछाए गए केबल की बदौलत ही चलती है और इस काम में विदेशी कंपनियों का ही दबदबा है। इससे पहले बीएसएनएल ने विदेशी कंपनियों की मदद से भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री केबल बिछाने का काम किया था जिसकी लंबाई काफी छोटी थी।

    चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर के बीच समुद्री केबल बिछाने के काम में लगभग 1224 करोड़ रुपए की लागत आई है। भारत सरकार के संचार विभाग के अधीन यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) से इस परियोजना के लिए राशि दी गई।