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    डॉलर की तुलना में करंसियों का टूटना मंदी के संकेत

    By Gunateet OjhaEdited By:
    Updated: Sat, 21 Mar 2015 05:44 PM (IST)

    गत फरवरी माह की रिपोर्ट में सरकार द्वारा डब्ल्यूपीआई (थोक मूल्य सूचकांक) -2.06 प्रतिशत दर्शाने से घरेलू शेयर बाजारों में मंदी की दहशत बनी हुई है। जहां मार्च क्लोजिंग तो घरेलू स्तर पर पहले ही चिंता का विषय था।

    नई दिल्ली। गत फरवरी माह की रिपोर्ट में सरकार द्वारा डब्ल्यूपीआई (थोक मूल्य सूचकांक) -2.06 प्रतिशत दर्शाने से घरेलू शेयर बाजारों में मंदी की दहशत बनी हुई है। जहां मार्च क्लोजिंग तो घरेलू स्तर पर पहले ही चिंता का विषय था।

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    इसके अलावा विश्वस्तर पर डॉलर की तुलना में करेंसियों का टूटना विश्वस्तर पर मंदी का संकेत देने लगा। वहीं क्रूड ऑइल अगर और टूटता है तो घरेलू व विदेशी निवेशकों का शेयर बाजार से मोह कम हो सकता है। इससे इकोनॉमिक पोजीशन पर फिर प्रश्न चिन्ह लगता है। गत सप्ताह भी बीएसई इंडेक्स 28503.30 से लुढ़ककर 28261.06 अंक रह गया।

    एनएसई भी 8647.75 से और गिरकर 8570.90 अंक पर आ गया। इसी तरह एशियाई व यूरोपीयन शेयर बाजार भी मंद गति में देखे गए। जहां गत फरवरी अंत यानि इकोनॉमी सर्वे रिपोर्ट एवं पेश आम बजट पर बीएसई व एनएसई इंडेक्स एक मार्केट हब (चहल-पहल) में देखे गए थे, उनकी आलोच्य सप्ताह भी रौनक घटी देखी गई। उन विशेष कारणों में डब्ल्यूपीआई फरवरी माह की सरकारी रिपोर्ट में नकारात्मक स्थिति में चली गई।

    इससे घरेलू बाजारों पर मंदी का इफैक्ट नजर आया क्योंकि कई कंपनियों को टैक्स विभाग द्वारा नोटिस दिए जाने से मार्च क्लोजिंग में उद्योग जगत फंसा हुआ था। वहीं औद्योगिक कमाई के आंकड़े कमजोर सुने जा रहे थे। इसके अलावा डॉलर की अपेक्षा देशी करेंसी के साथ-साथ यूरोपीयन व एशियाई देशों की करेंसियों में गिरावट आई थी तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रूड ऑयल भी 43 से 46 डॉलर प्रति बैरल के बीच धीमी गति में था।

    इससे विदेशी निवेशकों ने शेयरों की बिकवाली करके डॉलर में वापसी की, जिससे एशियाई व यूरोपीयन शेयर बाजारों में भी कमजोरी देखी गई। नए ऑर्डर न मिलने से मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों का उत्पादन और गिरने की संभावना लग रही है। क्रूड ऑइल में गिरावट के चलते तेल कंपनियों के शेयर भी घटे थे। कोयला नीलामी व माइनिंग बिल का संदेह गत शुक्रवार को राज्यसभा में क्लीयर हो गया। इससे माइनिंग उत्पादन में वृद्धि के संकेत मिलेंगे तथा कंपनियों को कोयला आवंटन के लिए ई-नीलामी में तेजी आएगी, जिससे पॉवर सेक्टर को ईधन अधिक मात्रा में मिलने की उम्मीद लग रही है।