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    भारत के लिए कैसा था ट्रंप का पहला कार्यकाल; H-1B वीजा और ट्रेड मामले में क्या थी पॉलिसी?

    India-US relations अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के साथ उनकी नीतियों को लेकर चर्चा हो रही है। वह चुनावी अभियान में अमेरिका फर्स्ट की बात करते हैं। पहले कार्यकाल में भारत के साथ दोस्ताना रुख के बावजूद ट्रंप H-1B वीजा और ट्रेड पॉलिसी को लेकर काफी सख्त थे। आइए समझते हैं कि उनका दूसरा कार्यकाल कैसा रहने वाला है।

    By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Thu, 07 Nov 2024 03:30 PM (IST)
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    H-1B वीजा प्रोग्राम का मकसद अमेरिका में कुशल श्रमिकों की कमी को दूर करना है।

    बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। डोनाल्ड ट्रंप का 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' नारे के साथ वापस सत्ता में आए हैं। इससे स्पष्ट है कि उनकी नीतियां इसी नारे के इर्द-गिर्द रहेंगी। लेकिन, सबसे अहम सवाल यह रहेगा कि उनकी अगुआई में भारत के साथ अमेरिका के ताल्लुकात कैसे रहेंगे। साथ ही, पहले कार्यकाल में ट्रंप का भारत के प्रति रवैया कैसा था। उन्होंने H-1B वीजा और ट्रेड के मामले कैसी नीतियां अपनाई थी?

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    क्या होता है H-1B वीजा?

    H-1B वीजा प्रोग्राम का मकसद अमेरिका में कुशल श्रमिकों की कमी को दूर करना है। यह उन गैर-आप्रवासी लोगों को मिलता है, जो काम करने के इरादे से अमेरिका जाते हैं। उन्हें ग्रीन कार्ड मिलता है। H-1B वीजा 6 साल के लिए वैध होता है। एच-1बी वीजाधारक शख्स अपने बच्चों और पत्नी के साथ अमेरिका में रह सकता है। वह अमेरिका की नागरिकता के लिए भी अप्लाई कर सकता है।

    अमेरिकी कंपनियों की डिमांड चलते भारत के आईटी प्रोफेशनल को सबसे अधिक H-1B वीजा मिलता है। अमेरिकी सरकार का डेटा भी बताता है कि पिछले कुछ साल में H-1B वीजाधारकों में सबसे ज्यादा भारतीय हैं। वित्त वर्ष 2023 में कुल (3.86 लाख) H-1B स्वीकृत हुए। इसमें से 72.3 फीसदी यानी 2.79 लाख भारतीयों के पास थीं। चीनी कर्मचारी दूसरे स्थान पर थे, जिन्हें कुल H-1B वीजा का 11.7 फीसदी मिला था।

    H-1B वीजा पर सख्त रुख

    डोनाल्ड ट्रंप का बतौर राष्ट्रपति पहले कार्यकाल में H-1B पर काफी सख्त रुख रहा। ट्रंप का मानना है कि अमेरिकी नौकरियां दूसरे देशों के नागरिकों को मिल रही हैं। उन्होंने H-1B वीजा के लिए योग्यता के पैमाने को सख्त कर दिया था। वीजा मिलने में लगाने वाला समय भी बढ़ गया था। साथ ही, वीजा एप्लिकेशन रिजेक्ट होने की दर भी बढ़ी थी।

    ट्रंप प्रशासन के पहले कार्यकाल के दौरान H-1B आवेदनों की अस्वीकृति दर में वृद्धि हुई। यह 2016 में 6 फीसदी से बढ़कर 2018 में 24 फीसदी हो गई। हालांकि, फिर इसमें कुछ गिरावट आई। यह 2019 में घटकर 21 फीसदी और 2020 में 13 फीसदी हो गई। ट्रंप के सत्ता से बाहर होने के बाद जो बाइडेन प्रशासन ने ट्रंप की पाबंदियों को रिन्यू नहीं किया। इससे 2021 में घटकर 4 फीसदी और 2022 में 2 फीसदी पर आ गई।

    भारत के प्रति ट्रेड पॉलिसी

    डोनाल्ड ट्रंप का मानना है कि चीन और ब्राजील जैसे देशों के साथ भारत भी टैरिफ सिस्टम का नाजायज फायदा उठाते हैं। उन्होंने पिछले ही महीने टैरिफ मुद्दे को लेकर भारत, चीन और ब्राजील पर निशाना साधा था। ट्रंप ने पहले कार्यकाल में भारत से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा भी वापस ले लिया था। यह भारत को रियायती टैरिफ पर अमेरिका में चीजें निर्यात कर पाता था।

    ट्रंप 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के हिमायती हैं। ऐसे में वह भारतीय वस्तुओं के निर्यात पर शुल्क बढ़ा सकते हैं। इसका भारत के एक्सपोर्ट पर बुरा असर पड़ता है। इससे फार्मा, ऑटो, वाइन, टेक्सटाइल, एग्रो-केमिकल और मसाला कंपनियों को झटका लग सकता है, जो बड़े पैमाने पर अमेरिका को निर्यात करती हैं। हालांक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्रंप के साथ बेहतर रिश्ते हैं, जिसका भारत को कुछ फायदा मिल सकता है।

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