कैसे पतंजलि का स्वदेशी आंदोलन आत्मनिर्भरता और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे रहा है
पतंजलि की देश में ही प्रोडक्ट्स का निर्माण करने की प्रतिबद्धता ने न सिर्फ आत्मनिर्भरता की भावना को फिर से जगाया है, बल्कि देश की आर्थिक बढ़त में भी अहम योगदान दिया है। जब पतंजलि FMCG क्षेत्र में आया, तो उसने प्राकृतिक और आयुर्वेदिक उत्पादों को बढ़ावा दिया।
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नई दिल्ली। पिछले कुछ सालों में भारत में अपने घरेलू उद्योगों को मजबूत करने, स्थानीय उद्यमियों को बढ़ावा देने और विदेशी सामानों पर निर्भरता कम करने की सोच फिर से तेज हुई है। इस बदलाव का कुछ श्रेय पतंजलि द्वारा चलाया गया स्वदेशी आंदोलन को जाता है, जिसने लोगों को देशी और घर में बने उत्पादों को अपनाने के लिए प्रेरित किया है। पतंजलि की देश में ही प्रोडक्ट्स का निर्माण करने की प्रतिबद्धता ने न सिर्फ आत्मनिर्भरता की भावना को फिर से जगाया है, बल्कि देश की आर्थिक बढ़त में भी अहम योगदान दिया है।
आइए समझते हैं कि पतंजलि का स्वदेशी आंदोलन कैसे लोगों में आत्मनिर्भरता बढ़ा रहा है और इससे देश की अर्थव्यवस्था को कैसे मजबूती मिल रही है।
स्वदेशी भावना को फिर से जगाना
जब पतंजलि FMCG क्षेत्र में आया, तो उसने प्राकृतिक और आयुर्वेदिक उत्पादों को बढ़ावा दिया, जो हमारी परंपरा और विरासत की याद दिलाते हैं। लेकिन कुछ समय बाद ही उस वक़्त जब विदेशी कंपनियाँ बाजार में हावी थीं, पतंजलि ने ‘मेड इन इंडिया’ पर जोर देकर स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की।
यह कहना गलत नहीं होगा कि पतंजलि ने लोगों को फिर से स्वदेशी की असली भावना से जोड़ दिया। आज करोड़ों लोग गर्व से देशी उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं। रिसर्चगेट में प्रकाशित एक अध्ययन भी दिखाता है कि पतंजलि कैसे अपने ‘स्वदेशी’ मंत्र के साथ FMCG उद्योग में ट्रेंड बदलने वाला ब्रांड बना।
स्थानीय उत्पादन और रोजगार को बढ़ावा देना
पतंजलि के स्वदेशी मिशन का सबसे बड़ा असर स्थानीय उद्योगों पर पड़ा है। देशभर में फैली पतंजलि की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ ज्यादातर कच्चा माल स्थानीय किसानों से खरीदती हैं। इससे ग्रामीण परिवारों को बिना किसी बिचौलिए के सीधा और स्थिर रोजगार मिलता है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च पब्लिकेशन एंड रिव्यूज़ में छपे एक रिसर्च में पतंजलि की ‘वोकल फॉर लोकल’ पहल के प्रभाव को दिखाया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे पतंजलि ने उद्योग को बढ़ावा दिया और स्थानीय समुदायों, जैसे महिलाएँ, युवा और कुशल कामगारों के लिए रोजगार पैदा किया।
पतंजलि ने अपने अधिकतर प्लांट्स को खेतों और जंगलों के पास स्थापित किया है जिससे परिवहन की दिक्कतें कम हुई हैं और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाएँ मजबूत हुई हैं। जैसे-जैसे लोग पतंजलि के प्रोडक्ट्स चुनते हैं, इसका लाभ किसानों, सप्लाई-चेन कर्मचारियों, छोटे दुकानदारों और स्थानीय ट्रांसपोर्टरों तक पहुँचता है।
स्वस्थ प्रतियोगिता और बाजार का विकास
पतंजलि की तेज़ प्रगति ने FMCG क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाया। कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों को अपनी रणनीतियाँ बदलनी पड़ीं। अब कई देशी और विदेशी ब्रांड भी प्राकृतिक, हर्बल और केमिकल-फ्री उत्पाद बनाने लगे हैं, ताकि वे आज के उपभोक्ताओं की बदलती पसंद को पूरा कर सकें। इससे भारतीय उपभोक्ताओं को अच्छे, प्राकृतिक और किफायती विकल्प मिलने लगे हैं।
साथ ही, पतंजलि द्वारा कम प्रॉफिट मार्जिन रखकर ज़्यादा उपभोक्ताओं तक पहुँचने की नीति ने दिखाया कि मूल्य-आधारित व्यवसाय भी आर्थिक रूप से सफल रह सकता है। इससे छोटे और मध्यम भारतीय उद्योगों को भी प्रेरणा मिली है कि वे नए उत्पाद बनाएँ, जिम्मेदारी से उत्पादन करें और आत्मविश्वास के साथ बाजार में उतरें।
निष्कर्ष
पतंजलि का स्वदेशी आंदोलन सिर्फ एक व्यवसायिक रणनीति नहीं है। देश में ही उत्पादन को बढ़ावा देकर, स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाकर और जिम्मेदार उपभोग को प्रोत्साहित करके पतंजलि भारत की आत्मनिर्भरता की यात्रा में एक मजबूत प्रेरक शक्ति बन गया है।

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