पतंजलि की पर्यावरण हितैषी पहलें कैसे पर्यावरण पर बोझ को कम कर रही हैं
पतंजलि कई वर्षों से लगातार पर्यावरण बचाने के लिए आवाज उठा रहा और इस दिशा में ज़रूरी कदम बढ़ा रहा है। आयुर्वेद और होलिस्टिक वेलनेस दृष्टिकोण के लिए पहचाने जाने वाले पतंजलि ने अपने व्यवसाय मॉडल में स्थिरता को शामिल किया है। अगर हमारा वातावरण स्वच्छ और शांत होगा तो हमारा मन भी स्वस्थ और पॉजिटिव रहेगा।

नई दिल्ली। आज हम देख रहे हैं कि प्रकृति हमारी गलत आदतों और गलत फैसलों पर कैसे प्रतिक्रिया दे रही है और यह हमारे भविष्य को कैसे प्रभावित कर सकती है। यही सही समय है कि हम पर्यावरण को बचाने के लिए ठोस कदम उठाएँ। जैसे-जैसे लोगों में स्थायी जीवनशैली और पर्यावरण–हितैषी कार्यों के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, वैसे-वैसे ब्रांड और व्यवसायों से भी जिम्मेदारी लेने की उम्मीद की जा रही है। ऐसे में पतंजलि एक ऐसा नाम है, जो कई वर्षों से लगातार पर्यावरण बचाने के लिए आवाज उठा रहा और इस दिशा में ज़रूरी कदम बढ़ा रहा है।
आयुर्वेद और होलिस्टिक वेलनेस दृष्टिकोण के लिए पहचाने जाने वाले पतंजलि ने अपने व्यवसाय मॉडल में स्थिरता (sustainability) को शामिल किया है। इससे साफ पता चलता है कि कंपनी विकास और पर्यावरण-सुरक्षा दोनों को साथ लेकर चलने के लिए प्रतिबद्ध है। आइए समझते हैं कि पतंजलि की पर्यावरण–हितैषी पहलें किस तरह पर्यावरण को बचाने का काम कर रही हैं।
परंपरा से जुड़ी हरित सोच
शुरुआत से ही पतंजलि का मानना रहा है कि हमारी सेहत सीधे तौर पर पर्यावरण की सेहत से जुड़ी है। अगर हमारा वातावरण स्वच्छ और शांत होगा तो हमारा मन भी स्वस्थ और पॉजिटिव रहेगा। इसी सोच के साथ पतंजलि ज़्यादा से ज़्यादा प्रकृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने की कोशिश करता है। वे अपने प्रोडक्ट्स के निर्माण, पैकेजिंग और वितरण में पर्यावरण–हितैषी तरीके अपनाते हैं, जिससे न सिर्फ कार्बन फुटप्रिंट कम होता है बल्कि उपभोक्ताओं को भी स्थायी विकल्प अपनाने की प्रेरणा मिलती है।
जैविक खेती को बढ़ावा
जैविक खेती पर्यावरण बचाने का एक अहम लेकिन अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाने वाला कदम है। पतंजलि इस दिशा में मजबूत पहल करता है। उनके अधिकांश कच्चे माल जैविक तरीके से उगाये जाते हैं। इतना ही नहीं, संगठन किसानों को जैविक खेती करने के लिए संसाधन और ट्रेनिंग भी मुहैया कराता है।
अगर आपके मन में भी यही सवाल उठा कि यह कदम पर्यावरण की कैसे मदद करता है तो आपको बता दें कि पारंपरिक खेती में केमिकल खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है, जो मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करता है और प्रदूषण बढ़ाता है। वहीं आर्गेनिक फार्मिंग मिट्टी को सुरक्षित रखती है, जल प्रदूषण घटाती है और जैव विविधता को भी संरक्षित करती है।
टिकाऊ निर्माण पद्धतियाँ
अपशिष्ट प्रबंधन(waste management) और ऊर्जा की बचत पर्यावरण सुरक्षा के लिए बहुत ज़रूरी हैं। पतंजलि के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स इस तरह बनाए गए हैं कि वहाँ ऊर्जा की खपत कम हो और जहाँ संभव हो, नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) का उपयोग किया जाए। इसके अलावा, अपशिष्ट प्रबंधन और पानी की पुनर्चक्रण(recycling of water) व्यवस्था भी लागू की गई है।
पर्यावरण-हितैषी पैकेजिंग
एक बार इस्तेमाल होने वाली पैकेजिंग, खासकर प्लास्टिक की, पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा है। पतंजलि ने बायोडिग्रेडेबल और रीसायकल होने वाली पैकेजिंग को अपनाया है। इससे न सिर्फ कचरा कम होता है बल्कि उपभोक्ताओं को भी जिम्मेदार कदम उठाने कि प्रेरणा मिलती है।
हालांकि आकर्षक पैकेजिंग वाले उपभोक्ता बाजार में यह एक कठिन कदम है, लेकिन पतंजलि पर्यावरण की खातिर इस बदलाव को अपनाने के लिए दृढ़ है।
हर्बल और प्राकृतिक विकल्प
आज दुनिया केवल पैकेजिंग ही नहीं बल्कि प्रोडक्ट्स के सामग्री में भी स्थिरता चाहती है। पतंजलि रासायनिक उत्पादों की बजाय हर्बल और पौधों से बने प्राकृतिक विकल्प को बढ़ावा देता है। इससे यूज़र्स को सुरक्षित और अच्छे परिणाम मिलते हैं और पर्यावरण पर भी कम से कम बुरा असर पड़ता है।
इस पहल का असर उपभोक्ताओं की पसंद में भी दिख रहा है। लोग अब रासायनिक उत्पादों की बजाय प्राकृतिक और पर्यावरण-हितैषी उत्पाद चुन रहे हैं। यह अपने आप में एक बड़ी सफलता है।
निष्कर्ष
पतंजलि की पर्यावरण-हितैषी पहलें दिखाती हैं कि कोई भी परंपरा से जुड़ा ब्रांड आधुनिक चुनौतियों का सामना जिम्मेदारी के साथ कर सकता है। आवश्यक कदम उठाकर पतंजलि पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई और उसकी रक्षा में योगदान दे रहा है। यह भले ही छोटा कदम लगे, लेकिन भारत के पर्यावरणीय बोझ को कम करने में यह बहुत बड़ा योगदान है। जब जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय असंतुलन हमारे भविष्य को खतरे में डाल रहे हैं, ऐसे समय में पतंजलि की पहलें साबित करती हैं कि व्यवसाय बिना विकास को रोके भी पर्यावरण का ख्याल रख सकते हैं।
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