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    घर खरीदारों का RERA से उठा भरोसा, अब उपभोक्ता मंत्रालय से लगाई आस

    Updated: Wed, 23 Oct 2024 08:02 PM (IST)

    रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट 2016 यानी रेरा को घर खरीदारों के हितों की रक्षा करने और प्रॉपर्टी सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देने के लिए लाया गया था। लेकिन अब 8 साल बाद मामला घूम-फिरकर वहीं आ गया है। घर खरीदारों ने रेरा की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए उपभोक्ता मंत्रालय से अपने हितों की रक्षा के लिए नए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की है।

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    घर खरीदारों ने अपने पत्र में मुख्य रूप से तीन मुद्दे उठाए हैं।

    मनीष तिवारी, नई दिल्ली। रियल एस्टेट सेक्टर की निगरानी करने के लिए निर्मित कानून रेरा (RERA) ने उनका ही भरोसा खो दिया है, जिनके लिए उसका निर्माण किया गया था। घर खरीदारों ने रेरा की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए उपभोक्ता मंत्रालय से अपने तमाम हितों की रक्षा के लिए नए सिरे से दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की है।

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    2016 में अस्तित्व में आए रेरा के पहले उपभोक्ता मंत्रालय पर ही घर खरीदारों के हितों और अधिकारों की रक्षा का दायित्व था। यानी आठ साल बाद वहीं पहुंच गए जहां से चले थे।

    रेरा से क्या शिकायत है?

    घर खरीदारों के सबसे बड़े संगठन फोर फार पीपल्स कलेक्टिव एफर्ट (एफपीसीई) ने उपभोक्ता मंत्रालय को लिखी चिट्ठी में घर खरीदारों की परेशानियां तो गिनाई ही है, यह भी कहा है कि वैसे तो ये सभी दिक्कतें रेरा के अधीन आती हैं, लेकिन दुख की बात है कि यह अपनी सक्रियता के सात वर्षों में अपेक्षित उद्देश्य पूरा नहीं कर सका है।

    फोरम ने याद दिलाया है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल में रियल इस्टेट से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है कि हम रेरा को लेकर कोई बात नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि यह सेवानिवृत अफसरों के लिए पुनर्वास केंद्र बन गया है। इन पूर्व अधिकारियों ने इस कानून के पूरे सिस्टम में हताशा-निराशा भर दी है।

    खास बात यह है कि फोरम के अध्यक्ष अभय उपाध्याय रेरा की केंद्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य भी हैं। अभय उपाध्याय ने कहा कि रियल इस्टेट सेक्टर के उपभोक्ताओं के हित किसी भी अन्य क्षेत्र के उपभोक्ता के मुकाबले कहीं अधिक हैं। इसलिए हमने उपभोक्ता मंत्रालय से मांग की है कि वे हमारे हितों की रक्षा करें। मंत्रालय से हमने मांग की है कि वह हमें धोखाधड़ी से बचाने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे।

    फोरम ने उठाए तीन मुद्दे

    अभय उपाध्याय ने कहा कि उपभोक्ता मंत्रालय के पास जो मामले जाते हैं, उनमें दस प्रतिशत रियल इस्टेट सेक्टर से जुड़े होते हैं। इनमें जो पैसा लगा है, वह बहुत बड़ी धनराशि है, क्योंकि भवन-भूखंडों की कीमत अन्य उत्पादों के मुकाबले कहीं अधिक होती है। फोरम ने अपने पत्र में मुख्य रूप से तीन मुद्दे उठाए हैं। भ्रामक विज्ञापन, एकतरफा अनुबंध और व्यापार के अनुचित तौर-तरीके।

    कहा गया है कि बुकिंग से लेकर रजिस्ट्री और भवन-भूखंड के रखरखाव तक घर खरीदारों को अपने हितों की अनदेखी का सामना करना पड़ता है। रेरा के आने के बाद यह कहा गया था कि भ्रामक विज्ञापनों का सिलसिला बंद होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिस एग्रीमेंट फार सेल पर उपभोक्ताओं को दस्तखत करने होते हैं, उसमें सुविधाओं का कोई विवरण नहीं होता। कोई उपभोक्ता कब्जा लेने के समय ही यह जान पाता है कि उससे जो वादा किया गया था, वह नहीं पूरा किया गया।

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