किसान विकास पत्र खरीदने मामले में HDFC देगा हर्जाना, राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले का करना होगा पालन
किसान विकास पत्र खरीदने के लिए फाइनेंस करने की योजना के करार में दी गई शर्तों का पालन न करने पर एचडीएफसी को हर्जाना देना होगा। राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण आयोग ने राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के फैसले पर मुहर लगाते हुए एचडीएफसी बैंक की रिवीजन याचिका खारिज कर दी है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। किसान विकास पत्र खरीदने के लिए फाइनेंस करने की योजना के करार में दी गई शर्तों का पालन न करने पर एचडीएफसी को हर्जाना देना होगा। राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण आयोग ने राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के फैसले पर मुहर लगाते हुए एचडीएफसी बैंक की रिवीजन याचिका खारिज कर दी है। अब एचडीएफसी बैंक को राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले का पालन करना होगा, जिसमें राज्य आयोग ने करार में तय सात फीसद ब्याज वसूलने और किसान विकास पत्र खरीदने पर पोस्ट आफिस से मिले कमीशन में शिकायतकर्ता का हिस्सा न देने के लिए एचडीएफसी बैंक को सेवा में कमी का जिम्मेदार माना था।
राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग पंजाब ने बैंक को आदेश दिया था कि वह किसान विकास पत्र में निवेश करने पर पोस्ट आफिस से मिले एक लाख रुपये कमीशन में शिकायतकर्ता के हिस्से के मुताबिक, पैसा उसके खाते में ट्रांसफर करे। इसके अलावा बैंक को मानसिक और शारीरिक पीड़ा के लिए 50000 रुपये मुआवजा और 11000 रुपये मुकदमा खर्च भी देना होगा।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने राज्य आयोग के फैसले के खिलाफ एचडीएफसी बैंक की रिवीजन याचिका खारिज करते हुए गत 27 मार्च को यह फैसला दिया। राष्ट्रीय आयोग के सदस्य सी. विश्वनाथ और सुभाष चंद्र की पीठ ने फैसले में कहा कि बैंक द्वारा लाई गई योजना के मुताबिक शिकायतकर्ता को 10 लाख रुपये निवेश करने थे और बैंक को बाकी पैसा लगा शिकायतकर्ता की ओर से किसान विकास पत्र खरीदना था।
बैंक द्वारा खरीदे गए किसान विकास पत्र के लाभ को लेना था जिसके लिए उसके नाम से ओवर ड्राफ्ट खाता खोला गया था। राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि राज्य आयोग का यह मानना सही है कि वसूली गई ब्याज दर इस मामले का मुख्य मुद्दा थी और उसे तय किया गया। आयोग ने बैंक की रिवीजन याचिका को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया और राज्य आयोग के फैसले पर मुहर लगा दी।
क्या था मामला
मामले के मुताबिक, एचडीएफसी बैंक ने किसान विकास पत्र (केवीपी) मार्जिन फंडिग योजना शुरू की। योजना में व्यक्ति को मार्जिन मनी की एक निश्चित राशि जमा करनी थी और फिर बैंक उसकी नौ गुना राशि मार्जिन मनी के रूप में एडवांस कर्ज में देता था। बैंक उस पूरी राशि से व्यक्ति की ओर से किसान विकास पत्र खरीदता था और उसे मेच्योर होने आठ साल सात महीने तक अपने पास रखता था। इस अवधि के दौरान किसान विकास पत्र दोगुनी कीमत का हो जाता था, ऐसे में उस पर मिलने वाला ब्याज बैंक द्वारा वसूले जाने वाले ब्याज की दर से ज्यादा होता था।
इस योजना में बैंक द्वारा व्यक्ति के साथ किये गए करार में (कस्टमर एप्रूवल शीट में) स्पष्ट लिखा था कि बैंक सात फीसद की दर से ब्याज लेगा और कोई प्रोसेसिंग फीस नहीं लगेगी। शिकायतकर्ता ने योजना के तहत 29 सितंबर 2005 को दस लाख का चेक देकर खाता खोला और बैंक के साथ उसका करार हस्ताक्षरित हुआ तथा बैंक की ओर से 90 लाख का कर्ज उसके खाते में गया। कुल रकम सौ लाख हो गई।
18 अक्टूबर 2005 को पूरा पैसा इनकैश हो गया और बैंक ने उस पैसे से शिकायतकर्ता की ओर से किसान विकास पत्र खरीदे। करार के मुताबिक, सात फीसद की बजाय बैंक ने ज्यादा ब्याज वसूला और कई बार विरोध ज्यादा वसूली गई रकम लौटाई। फिर भी आठ फीसद की दर से ब्याज वसूलती रही। इसके अलावा केवीपी के पोस्ट आफिस की ओर से दिया गया कमीशन भी नहीं दिया।
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