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    एच1बी वीजा नियम कड़े होने के डर से भारतीय आईटी कंपनियां कर रही हैं तेजी से हायरिंग

    By Surbhi JainEdited By:
    Updated: Tue, 29 Nov 2016 09:49 AM (IST)

    भारतीय आईटी फर्म्स अमेरिका में अपना अधिग्रहण और कॉलेज कैपसिस से रिक्रूटमेंट की प्रक्रिया तेज कर रहे हैं

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    नई दिल्ली। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने से पहले संकेत दिए थे कि वे एच1बी वीजे के नियम सख्त कर सकते हैं। रॉयटर्स के मुताबिक भारतीय आईटी फर्म्स अमेरिका में अपना अधिग्रहण और कॉलेज कैपस से रिक्रूटमेंट की प्रक्रिया तेज कर रहे हैं। भारतीय कंपनियां जैसे कि टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस और विप्रो के कर्मचारी इस वीजा की मदद से अमेरिका जाकर कंपनी के क्लाइंट्स के लिए काम करते हैं। अमेरिकियों की तुलना में कंपनियां भारतीय कम्प्यूर इंजिनियरों को ज्यादा तवज्जो देती हैं। गौरतलब है कि अमेरिका में भारत का 150 बिलियन डॉलर (10 लाख 28 हजार करोड़ रुपये) का आईटी सर्विस सेक्टर है।

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    वर्ष 2005 से 2014 तक इन तीनों कंपनियों में एच1बी वीजा पर काम करने वाले कुल स्टाफ का आंकड़ा 86000 से ज्यादा था। मौजूदा समय में यूएस हर वर्ष करीब इतने की वीजा जारी करता है। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने राष्ट्रपति चुनाव प्रचार में वीजा के नियमों को और सख्त करने की बात कही थी।

    इसके अलावा उनकी ओर से अटॉर्मी जनरल के पद के लिए चुने गए जेफ सेशन्स भी अमेरिकी वीजा नीति को सख्त किए जाने के पक्ष में हैं। आईटी कंपनी इन्फोसिस के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर प्रवीण राव ने कहा, 'दुनिया में संरक्षणवाद के बढ़ने से इमिग्रेशन पर बड़ा असर पड़ रहा है। लोग हाई-स्किल अस्थायी वर्कफोर्स को लेकर भ्रमित रहते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि वीजा पर आने वाले लोग अस्थायी ही होते हैं।'

    कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अमेरिका में भारत से जाने वाले इंजिनियर्स की संख्या में काफी कमी आ सकती है। अमेरिका का सिलिकॉन वैली स्थित बिजनेस भारत के सस्ते आईटी और सॉफ्टवेयर सोल्यूशंस पर निर्भर रहा है।

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