GST@8: टैक्स कलेक्शन बढ़ने के साथ बिजनेस में भी आसानी, पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी लगाने का सुझाव
GST8 इनडायरेक्ट टैक्स की नई व्यवस्था जीएसटी 1 जुलाई 2017 को लागू की गई थी। सोमवार को इसके 8 साल पूरे हो गए। जीएसटी से बिजनेस के कामकाज में काफी आसानी हुई है। अब विशेषज्ञ जीएसटी में टैक्स स्लैब की संख्या घटाने पेट्रोलियम उत्पादों को इसके दायरे में लाने और कंप्लायंस आसान बनाने का सुझाव दे रहे हैं।

सोमवार को वस्तु एवं सेवा कर यानी GST के 8 साल (GST@8) पूरे हो गए। इसे 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया था। इनडायरेक्ट टैक्स में इस सबसे बड़े सुधार से सरकार का टैक्स कलेक्शन तो बढ़ा ही, बिजनेस को भी आसानी हुई। विशेषज्ञ अब जीएसटी का कंप्लायंस आसान बनाने और पेट्रोलियम पदार्थों को इसके दायरे में लाने का सुझाव दे रहे हैं।
जीएसटी लागू करते समय इसमें 17 तरह के टैक्स और 13 सेस को शामिल किया गया था। पिछले 5 वर्षों के दौरान सरकार का औसत जीएसटी कलेक्शन 90000 करोड़ रुपए से बढ़कर 1.84 लाख करोड़ रुपए प्रतिमाह हो गया है। अप्रैल 2025 में 2.37 लाख करोड़ रुपए का रिकॉर्ड कलेक्शन हुआ।
सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2024-25 में 22.08 लाख करोड़ रुपए का जीएसटी कलेक्शन हुआ। 2020-21 में यह रकम 11.37 लाख करोड़ रुपए थी। पिछले वर्ष से तुलना करें तो जीएसटी कलेक्शन में 9.4% की वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष औसत मासिक कलेक्शन 1.68 लाख करोड़ रुपए था जो इस वर्ष बढ़कर 1.84 लाख करोड़ रुपए हो गया। बीते 8 वर्षों में जीएसटी में रजिस्टर्ड टैक्सपेयर की संख्या 65 लाख से बढ़कर 1.51 करोड़ हुई है।
कंप्लायंस आसान बनाने, टैक्स स्लैब घटाने का सुझाव
GST के 8 वर्ष पूरे होने पर कंसल्टेंसी फर्म पीडब्लूसी इंडिया ने सोमवार को एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि जीएसटी काउंसिल को अब कंप्लायंस आसान बनाना चाहिए, टैक्स स्लैब घटाकर तीन करना चाहिए और पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के ढांचे में लाना चाहिए।
पीडब्लूसी का कहना है कि भारत में जीएसटी को ग्लोबल ट्रेड डायनामिक्स के साथ जोड़ना जरूरी हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड की परिस्थितियां बदल रही हैं, मैन्युफैक्चरिंग और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) जैसे सेक्टर में निवेश की जरूरत बढ़ रही है। इसलिए भारत को ऐसे जीएसटी फ्रेमवर्क की जरूरत है जो निवेशक के लिए आसान हो और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी भी रहे।
अभी जीएसटी व्यवस्था में टैक्स के चार स्लैब हैं- 5%, 12%, 18% और 28 प्रतिशत। पैकेज्ड खाद्य पदार्थों और आवश्यक वस्तुओं पर 5% और लग्जरी वस्तुओं पर 28% टैक्स है। सभी सर्विसेज को 18% के स्लैब में रखा गया है।
पीडब्लूसी का कहना है कि टैक्स स्लैब चार से घटाकर तीन करने से टैक्स प्रावधानों की व्याख्या से जुड़े विवाद कम होंगे और कंप्लायंस भी आसान होगा। इनपुट-आउटपुट पर जीएसटी रेट में भिन्नता को देखते हुए रेट स्लैब की व्यापक समीक्षा की जरूरत है। खासकर इलेक्ट्रिक वाहन, एविएशन और ई-कॉमर्स जैसे सेक्टर के लिए जहां इनवर्टेड टैक्स ढांचे के कारण क्रेडिट जमा होता जाता है।
पेट्रोलियम पदार्थों को GST दायरे में लाने की सलाह
पेट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस और अन्य पेट्रोलियम पदार्थ अभी जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। उन पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी और राज्यों का वैट लगता है। पीडब्लूसी का कहना है कि विमान ईंधन (ATF) से पेट्रोलियम पदार्थों पर जीएसटी लगाने की शुरुआत की जा सकती है।
पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने का फैसला जीएसटी काउंसिल को करना पड़ेगा। इस काउंसिल में केंद्र और राज्यों के वित्त मंत्री शामिल हैं। राज्य अभी तक यह कहकर इसका विरोध करते आए हैं कि इससे उनका रेवेन्यू कम हो जाएगा। दिसंबर 2024 में जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्यों ने एटीएफ को जीएसटी के दायरे में लाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया था।
पीडब्लूसी का कहना है कि ऐसा नीतिगत बदलाव जिसमें पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी में शामिल करने के साथ राज्यों के रेवेन्यू की भी सुरक्षा की जाए, उससे टैक्स का ढांचा बेहतर होगा, बिजनेस के लिए कैश फ्लो में आसानी होगी और जीएसटी के मूल लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा।
जीएसटी से परिवारों का मासिक खर्च घटाः वित्त मंत्रालय
वित्त मंत्रालय के एक अध्ययन के अनुसार जीएसटी से परिवारों के मासिक खर्च में कम से कम 4% बचत हुई है। जीएसटी ने लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री में भी बड़े बदलाव किए हैं। राज्यों की सीमाओं पर ट्रकों की लंबी कतारें नहीं लगती हैं और सामान की ढुलाई आसान हुई है। कई अध्ययनों में बताया गया है कि ट्रांसपोर्ट का समय 33% कम हुआ है। इससे कंपनियों की ईंधन की लागत घटी है।
कंसल्टेंसी फर्म डेलॉय के एक सर्वे में 85% टैक्सपेयर्स ने जीएसटी को लेकर अपने अनुभव को सकारात्मक बताया। वे इसे आसान और पारदर्शी टैक्स व्यवस्था मानते हैं, जिससे बिजनेस में आसानी हुई है।
जीएसटी से एमएसएमई को भी राहत मिली। पहले वैट तथा अन्य राज्य करों के तहत रजिस्ट्रेशन के लिए टर्नओवर की न्यूनतम सीमा बहुत कम हुआ करती थी। जीएसटी में इसे पहले 20 लाख रुपए किया गया, बाद में इसे बढ़ाकर 40 लाख रुपए किया गया। इससे अनेक छोटे व्यापारियों और मैन्युफैक्चरर को राहत मिली।
डिजिटल एसेट का वर्गीकरण
टैक्स कंसल्टेंसी फर्म फोर्विस मजार्स (Forvis Mazars in India) में इनडायरेक्ट टैक्स की एसोसिएट पार्टनर नेहा श्रीवास्तव ने कहा कि भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के परिपक्व होने के साथ जीएसटी ढांचे में समस्याएं आने लगी हैं, खास तौर पर क्रिप्टोकरेंसी, एनएफटी और टोकनाइज्ड एसेट जैसे वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDA) के मामलों में। वर्गीकरण, मूल्यांकन और अधिकार क्षेत्र में लगातार बदलाव से कंप्लायंस और कर मुद्दों में अनिश्चितता पैदा होती है।
नेहा के अनुसार, भविष्य की खातिर तैयार होने के लिए भारत को एक ऐसा जीएसटी ढांचा बनाने की आवश्यकता होगी जो वीडीए को परिभाषित करे, उनका अलग वर्गीकरण करे और जीएसटी ट्रीटमेंट को सर्वश्रेष्ठ ढांचे के अनुरूप बनाए, जैसा अन्य प्रगतिशील अर्थव्यवस्थाएं कर रही हैं। वीडीए एसेट के बजाय संबंधित सेवाओं पर कर लगाने से विवाद और राजस्व के जोखिम कम हो सकते हैं और डिजिटल अर्थव्यवस्था के सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक में इनोवेशन को बढ़ावा मिल सकता है।
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