सर्च करे
Home

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इंडिका, नैनो से लैंड रोवर तक... रतन टाटा ने कैसे टाटा मोटर्स को बनाया ग्लोबल ब्रांड? आज 25 लाख करोड़ की है कंपनी

    Updated: Thu, 09 Oct 2025 02:47 PM (IST)

    रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा मोटर्स एक घरेलू कंपनी से ग्लोबल ब्रांड बन गई है। जगुआर लैंड रोवर जैसे विदेशी ब्रांडों का अधिग्रहण और नैनो जैसी सस्ती कारों का निर्माण कंपनी के विकास में महत्वपूर्ण रहा। आज, टाटा मोटर्स का बाजार पूंजीकरण 25 लाख करोड़ रुपए है, जो इसे एक प्रतिष्ठित वैश्विक ब्रांड बनाता है।

    Hero Image

    रतन टाटा ने अपनी दूरदर्शिता, साहस और जुनून से टाटा मोटर्स को ग्लोबल ब्रांड बना दिया।

    नई दिल्ली| टाटा इंडिका से लेकर नैनो और फिर जगुआर-लैंड रोवर तक…यह कहानी उस सपने की है, जिसे रतन टाटा ने अपनी दूरदर्शिता, साहस और जुनून से हकीकत में तब्दील कर दिया। एक समय था, जब टाटा मोटर्स सिर्फ ट्रक बनाती थी। लेकिन रतन टाटा के नेतृत्व में उसने ऐसा सफर तय किय, कि आज वही कंपनी दुनिया की लग्जरी कार ब्रांड्स की मालिक बन गई। रतन टाटा ने साबित कर दिखाया था कि अगर इरादे मजबूत हों, तो 'सबसे सस्ती कार' बनाने वाला भी 'सबसे प्रीमियम ब्रांड' खरीद सकता है। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यह कहानी सिर्फ बिजनेस ग्रोथ की नहीं, बल्कि रतन टाटा की सोच की है, जिन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखा। रतन टाटा ने कहा था- "अगर ये सपना भारत में पूरा नहीं हुआ, तो कहीं नहीं होगा।" और वाकई, उन्होंने साबित कर दिया कि सपना अगर देश के लिए देखा जाए, तो उसे सच करने की ताकत खुद देश बन जाता है। और आज टाटा मोटर्स का मार्केट कैप 24.7 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा है।

    कहानी टाटा मोटर्स की, जब वो सिर्फ TELCO थी

    साल 1991, ये वो साल था, जब रतन टाटा ने टाटा ग्रुप की कमान संभाली। तब टाटा मोटर्स ( तब TELCO) के पास दिखाने को बहुत कुछ नहीं था। हां, टाटा सिएरा और टाटा एस्टेट जैसी गाड़ियां थीं, लेकिन असली पहचान टाटा इंडिका से बनी और वही टाटा मोटर्स की असली कहानी की शुरुआत थी।

    टाटा इंडिका: पहली असली भारतीय कार

    आज पीछे मुड़कर देखें तो टाटा इंडिका अपने समय से काफी आगे थी। भारत की अर्थव्यवस्था अभी-अभी खुली थी और रतन टाटा ने ठान लिया था कि देश में एक ऐसी कार बनेगी जो पूरी तरह "भारतीय" हो। यानी भारत में ही डिजाइन हो और भारत में ही मैन्युफैक्चर हो। टाटा चाहते थे कि इस कार का साइज बाहर से छोटा (मारुति जेन जैना) लेकिन अंदर से विशाल (एंबेसडर जैसा) हो। उनके इस सपने को पूरा करने के लिए 1700 करोड़ रुपए का निवेश हुआ, जो कंपनी के लिए करो या मरो जैसा दांव था।

    यह भी पढ़ें- "अगर लोग आपको पत्थर मारें तो आप...", रतन टाटा के वो कोट्स, जो आपको जीना सिखा देंगे

    शुरुआत में जब टाटा इंडिका का ऐलान हुआ तो लोगों ने इसे लेकर मजाक भी उड़ाया। लेकिन रतन टाटा ने टीम बनाई और उन्हें जिनेवा मोटर शो तक ले गए, ताकि वो समझ सकें कि दुनिया कहां जा रही है। कार का डिजाइन भले इटली के ट्यूरिन से आया हो, लेकिन पहला ड्राफ्ट खुद टाटा ने बनाया था। वो यूरोपीय स्टाइल और भारतीय जरूरतों को मिलाना चाहते थे। उन्होंने ध्यान रखा कि इंडिका में ज्यादा लगेज स्पेस हो। क्योंकि, भारतीय सफर में खाना और सामान साथ ले जाना पसंद करते हैं।

    फिर उन्होंने कमाल कर दिया। पहली बार किसी हैचबैक में डीजल इंजन लगाया, ताकि कार किफायती बने। लॉन्च के बाद शुरुआत में कुछ दिक्कतें आईं, लेकिन इंडिका वी2 ने सब बदल दिया। यही कार टाटा मोटर्स को ग्लोबल मंच पर ले गई।

    टाटा की ड्रीम कार नैनो: सबसे सस्ती कार

    टाटा नैनो, इंडिका जैसी व्यावसायिक सफलता हासिल नहीं कर सकी। लेकिन इसका विचार और भी बड़ा था- भारत के मध्यम वर्ग को कार तक पहुंचाना। लॉन्च से पहले ही इसने हलचल मचा दी थी। मारुति 800 और ऑल्टो की सेकंड हैंड बिक्री गिरने लगी। यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नैनो में मॉड्यूलर डिजाइन की वजह से बड़ी लागत बची। रतन टाटा चाहते थे कि देश के हर कोने के मैकेनिक को कार असेंबल करने का मौका मिले। इसके लिए सैटेलाइट असेंबली किट की योजना थी।

    हालांकि नैनो की बिक्री उम्मीद से कम रही। इसे "सबसे सस्ती कार" का टैग मिल गया, जिसने इसकी छवि को नुकसान पहुंचाया। लेकिन तकनीकी तौर पर यह अद्भुत थी। मारुति 800 से छोटी लेकिन अंदर से ज्यादा जगहदार। यह हल्की, चलाने में आसान और दोपहिया चलाने वालों के लिए आदर्श थी। बस अफसोस, यह वो कार थी जिसकी जरूरत तो सबको थी, पर चाहत किसी ने नहीं दिखाई।

    जगुआर-लैंड रोवर की ऐतिहासिक खरीद

    1999 में रतन टाटा और उनकी टीम फोर्ड कंपनी से अपनी पैसेंजर कार डिविजन बेचने की बात करने डेट्रॉइट पहुंचे। वहां फोर्ड के अधिकारियों ने उनका मजाक उड़ाया और कहा- "आपको पैसेंजर कार बिजनेस में आने की हिम्मत कैसे हुई?" लेकिन वक्त बदला। सिर्फ दस साल बाद रतन टाटा ने फोर्ड से ही जगुआर और लैंड रोवर खरीद लिए। वो भी 2.3 अरब डॉलर में। यह सौदा भारत के लिए गर्व का पल था। जैसे क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने पर खुशी होती है, वैसी ही भावना पूरे देश में थी।

    इसके बाद टाटा मोटर्स न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट हुई। ऐसा करने वाली पहली भारतीय मैन्युफैक्चरिंग कंपनी। रतन टाटा ने जगुआर और लैंड रोवर के मूल डिजाइन और भावना को बरकरार रखा। उनकी अगुवाई में कंपनी ने सबसे स्थिर और लाभदायक दौर देखा। साल 2024 में ही रेंज रोवर की वैश्विक बिक्री 22% बढ़ी और डिफेंडर ने 1.14 लाख से ज्यादा यूनिट्स बेचे जो पिछले साल से दोगुने थे।

    ...तो TELCO भी बन सकती है ग्लोबल ब्रांड

    रतन टाटा ने न सिर्फ भारत की औद्योगिक तस्वीर बदली, बल्कि ऑटोमोबाइल को आर्थिक विकास का प्रतीक बनाया। उन्होंने दिखाया कि कार सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि एक भावना है। और यही समझ भारत के ऑटो सेक्टर को नई ऊंचाई पर ले गई। उनकी सोच ने साबित कर दिया। अगर नीयत साफ हो और नजर दूर तक हो, तो "TELCO" भी "Tata Motors" बन सकती है- एक ग्लोबल ब्रांड।

    हमने आज आपको रतन टाटा की कहानी इसलिए बताई, क्योंकि आज ही के दिन यानी 9 अक्टूबर 2024 को रतन टाटा का निधन हुआ था। जिसके आज एक साल पूरे हो रहे हैं।

    बिजनेस से जुड़ी हर जरूरी खबर, मार्केट अपडेट और पर्सनल फाइनेंस टिप्स के लिए फॉलो करें