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    Economic Survey 2024: शहरीकरण की रफ्तार तेज, राज्यों और निकायों को आना होगा आगे

    Updated: Mon, 22 Jul 2024 06:51 PM (IST)

    संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2024 के अनुसार शहरीकरण की इस रफ्तार से निपटने के लिए केंद्र सरकार राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों को मिलकर शहरी ढांचा बनाना होगा। बुनियादी ढांचे के विकास के संदर्भ में सरकार ने मुख्य चुनौतियों में यह भी रेखांकित किया है कि अलग-अलत स्तरों पर जो पैसा खर्च हो रहा है उसकी एक समग्र तस्वीर उपलब्ध नहीं है।

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    केंद्र और राज्य सरकारों को सेक्टर आधारित आवंटन के लिए विस्तृत सूचना की जरूरत होती है।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। शहरीकरण की रफ्तार में तेजी का आलम यह है कि अगले पांच-छह साल में 40 प्रतिशत से अधिक आबादी शहरों में रह रही होगी, लेकिन इससे जुड़ी चुनौतियां भी गंभीर हैं। संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2024 के अनुसार शहरीकरण की इस रफ्तार से निपटने के लिए केंद्र सरकार, राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों को मिलकर शहरी ढांचा बनाना होगा। तभी शहर विकास के आर्थिक केंद्रों के रूप में उभर सकेंगे।

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    प्रभावशाली प्लानिंग की जरूरत

    यह उद्देश्य हासिल करने के लिए शहरी क्षेत्रों की प्रभावशाली प्लानिंग, परियोजनाओं को पूरा करने के लिए सशक्त तंत्र और शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना जरूरी है। केंद्र सरकार की यह भी राय है कि शहरी विकास से संबंधित परियोजनाओं पर क्रियान्वयन के दौरान शहरी स्थानीय निकायों और एजेंसियों को पैसे के सही इस्तेमाल को लेकर व्यापक विश्लेषण करना होगा। बुनियादी ढांचे के विकास के संदर्भ में सरकार ने मुख्य चुनौतियों में यह भी रेखांकित किया है कि अलग-अलत स्तरों पर जो पैसा खर्च हो रहा है, उसकी एक समग्र तस्वीर उपलब्ध नहीं है।

    रिपोर्टिंग के कई फार्मेट हैं। केंद्र और राज्य सरकारों को सेक्टर आधारित आवंटन के लिए विस्तृत सूचना की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए शहरों की आर्थिक स्थिति जानने-समझने के लिए शहरी कार्य मंत्रालय ने सिटी फाइनेंस पोर्टल बनाया है, लेकिन उसमें सारी स्थिति बताने के मामले में निकायों का रवैया ढीला-ढाला है। इस पोर्टल से सेक्टर आधारित पूंजीगत खर्च का ब्यौरा जान पाना आसान नहीं है।

    फंसी आवासीय परियोजनाएं बड़ी चुनौती

    आर्थिक सर्वेक्षण में रियल इस्टेट सेक्टर के लिए उत्साहजनक तस्वीर है, क्योंकि तेज शहरीकरण के साथ घरों की मांग भी तेज रहने के आसार हैं, लेकिन अलग-अलग कारणों से फंसकर ठप पड़ गईं आवासीय परियोजनाओं को पूरा करना एक बड़ी चुनौती बन गया है। लगभग 4.1 लाख ऐसे घरों का निर्माण वर्षों से रुका हुआ है, जिसमें चार लाख करोड़ रुपय से अधिक की पूंजी फंसी हुई है। इनमें से लगभग सवा दो लाख घर तो केवल एनसीआर में हैं।

    नई नीतियों और रणनीति की जरूरत

    केंद्र सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए अमिताभ कांत की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने सभी पक्षों-सरकार, विकास प्राधिकरण, बैंकों, डेवलपरों और घर खरीदने वालों से समस्या का समाधान करने के लिए कुछ नुकसान सहने की अपेक्षा की थी। सर्वे में इस पर जोर दिया गया है कि घरों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए नई नीतियों और रणनीति की जरूरत है जिससे व्यावहारिक, कम लागत वाले और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल घरों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जा सके। सर्वे के अनुसार दो साल कोविड महामारी के प्रकोप के चलते ठप हो गए रियल एस्टेट सेक्टर ने पिछले दो सालों में वापसी कर ली है।

    पिछले सालों में हुई बढ़ोत्तरी

    सर्वे के अनुसार जिन कारणों से रियल इस्टेट सेक्टर के लिए उत्साहजनक तस्वीर बनी है, उनमें तीव्र शहरीकरण, लोगों की बढ़ती आमदनी, एकल परिवारों का बढ़ता चलन, बाजार में बढ़ता मुकाबला और डेवलपरों तथा घर खरीदारों के लिए बेहतर वित्तीय विकल्प शामिल हैं। सर्वेक्षण में एक रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि 2013 के बाद पिछले साल आवासों की बिक्री सबसे अधिक रही है। आठ बड़े शहरों में 4.1 लाख घरों की बिक्री हुई है और वार्षिक वृद्धि 33 प्रतिशत रही है।