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    Economic Survey 2024: देश के लिए फायदे का सौदा है चीन का एफडीआई

    Updated: Mon, 22 Jul 2024 07:21 PM (IST)

    सोमवार (24 जुलाई) को संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में चीन को लेकर सरकार की नीतियों में बदलाव करने का परोक्ष तौर पर सुझाव है। इसमें कहा गया है कि चीन से लगातार बढ़ते आयात और वहां से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने की जरूरत है। इससे चीन से बढ़ते आयात को कम किया जा सकता है।

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    वर्ष 2023-24 में भारत व चीन के बीच द्विपक्षीय कारोबार 118 अरब डॉलर के करीब है।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सीमा पर जारी तनाव के बावजूद क्या चीन की कंपनियों को लेकर भारत सरकार का नजरिया बदल सकता है? सोमवार (24 जुलाई) को संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में चीन को लेकर सरकार की नीतियों में बदलाव करने का परोक्ष तौर पर सुझाव है। इसमें कहा गया है कि चीन से लगातार बढ़ते आयात और वहां से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने की जरूरत है।

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    इससे ना सिर्फ चीन से बढ़ते आयात को कम किया जा सकता है बल्कि अमेरिका व दूसरे देशों में निर्यात बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। इसमें साफ तौर पर माना गया है कि चीन की आर्थिक शक्ति और वैश्विक आर्थिक मंच पर उसकी अहमियत को देखते हुए उसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस क्रम में सर्वेक्षण ने ब्राजील व तुर्की का उदाहरण दिया है कि कैसे इन देशों ने चीन निर्मित इलेक्ट्रिक वाहनों का आयात बंद कर दिया है लेकिन चीन की कंपनियों को अपने यहां निवेश करने के लिए प्रोत्साहन देने की नीति बनाई है।

    वर्ष 2020 में कोविड और उसी दौरान पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद भारत सरकार ने चीन की कंपनियों को लेकर कड़ा रवैया अख्तियार कर लिया है। चीन की कई कंपनियों को भारत से अपना कोराबार बंद करना पड़ा है या सीमित करना पड़ा है या कारोबार के तरीके को बदलना पड़ा है। सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच चल रही वार्ता आंशिक तौर पर ही सफल रही है।

    विदेश मंत्री एस जयशंकर और पीएम नरेन्द्र मोदी कई बार यह कह चुके हैं कि सीमा पर अमन-शांति स्थापित किये बगैर चीन के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को सामान्य नहीं किया जा सकता। हालांकि इस दौरान चीन से होने वाले आयात पर कोई असर नहीं पड़ा है। वर्ष 2023-24 में भारत व चीन के बीच द्विपक्षीय कारोबार 118 अरब डॉलर के करीब है जिसमें भारत से चीन को होने वाला निर्यात सिर्फ तकरीबन 17 अरब डॉलर का है। इस तरह से व्यापार घाटा 84 अरब डॉलर का हो चुका है। आर्थिक सर्वेक्षण ने इसी संदर्भ में यह बताने की कोशिश की है कि चीन से आयात बढ़ाने से बेहतर है कि वहां की कंपनियों को भारत में निवेश के लिए तैयार किया जाए।

    इसके पक्ष में सर्वेक्षण का तर्क है कि अमेरिका व यूरोपीय कंपनियां चीन प्लस वन (चीन के साथ किसी और भी देश पर आयात के लिए निर्भरता) की नीति पर चलने लगी हैं, अगर भारत में चीन की कंपनियां निवेश करती हैं तो इस बदले माहौल का भी फायदा उठाया जा सकता है।

    “हमारे पास जो विकल्प है उसमें अमेरिका को निर्यात बढ़ाने के लिए चीन से एफडीआई को बढ़ाना ज्यादा सही है, ऐसा पूर्व में पूर्वी एशियाई देशो ने भी किया है। ''इसका एक फायदा यह भी होगा कि भारत वैश्विक सप्लाई चेन का एक हिस्सा बन जाएगा। सर्वेक्षण ने कहा है कि चीन प्लस वन नीति का लाभ उठाने के लिए भारत सरकार ने जो कदम उठाए हैं उसका अभी कोई बड़ा असर नहीं दिखा है। हालांकि इलेक्ट्रोनिक्स उत्पादों में निर्यात बढ़ा है।