अर्थव्यवस्था में नए अवसर बने हैं, तो नई चुनौतियां भी उभरी हैं; एक्सपर्ट से जानिए इस माहौल में कैसे निवेश करें?
इस समय शेयर बाजार में निवेश करने से पहले निवेशकों को बहुत ही सतर्क रहने की आवश्यकता है। भारतीय बाजार की ओर एक बार फिर से विदेशी निवेशकों (investment v ...और पढ़ें

संदीप वालुंज ने निवेश करने की बताई स्ट्रैटेजी
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय ब्याज दरों में कटौती से माहौल हाल ही में आशाजनक बनता दिख रहा था। लेकिन अब भू-राजनीतिक तनावों के चलते भारतीय निवेशकों को और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। शेयर बाजार में अवसर है लेकिन आपको सिलेक्टवि होने की जरूरत है। भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कटौती की। सीआरआर में भी कटौती की और 8% की घरेलू GDP वृद्धि का महत्वाकांक्षी लक्ष्य घोषित करके देश की आर्थिक वृद्धि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। शेयर बाजार ने इसका सकारात्मक स्वागत किया। ब्याज दरें गिरीं, नकदी प्रवाह बढ़ा और कैपिटल बाजार ने इसे “विकास के लिए हरी झंडी” के रूप में देखा। ऐसे माहौल में आपकी निवेश रणनीति क्या होनी चाहिए? बता रहे हैं मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के ग्रुप सीएमओ संदीप वालुंज...
ऐसे बिगड़ा निवेशकों का मूड
दुनिया भर में भी कई देशों की मौद्रिक नीतियां नरम हो रही थीं। रूस ने ब्याज दरों में कटौती की थी। यूरोप पहले ही ढीली नीति अपना चुका था। अमेरिका के फेडरल रिजर्व पर भी ब्याज दरों में कटौती के लिए आर्थिक और राजनीतिक दबाव बढ़ रहा था।
इन्हीं घटनाओं के बीच इजरायल ने ईरान पर हमला कर दिया और ईरान ने भी पलटवार किया। इससे वैश्विक बाजार में हलचल पैदा हुई। कच्चे तेल के दाम बढ़े, करेंसी अस्थिर हुई और निवेश का मूड बिगड़ा।
नए जोखिम निवेश समीकरण में शामिल
अब भारतीय निवेशकों के लिए घरेलू सकारात्मक संकेतों के साथ-साथ वैश्विक अस्थिरता पर भी उतना ही ध्यान देना ज़रूरी है। पश्चिम एशिया में संघर्ष ने तीन प्रमुख चिंताएं उत्पन्न की हैं:
कच्चे तेल के दाम: ब्रेंट क्रूड 74 डॉलर प्रति बैरल के पार चला गया है। अगर संघर्ष लंबा चला तो ईंधन कीमतें स्थिर नहीं रह पाएंगी। इसका असर देश के आयात व्यय और महंगाई के आंकड़ों पर पड़ सकता है।
मुद्रा अस्थिरता: वैश्विक तनाव के कारण डॉलर की 'सुरक्षित पनाह' के रूप में मांग बढ़ी है, जिससे रुपये पर दबाव आएगा। विदेशी निवेश घट सकता है और विदेशी आय पर निर्भर कंपनियों की लागत बढ़ सकती है।
वैश्विक ध्रुवीकरण: इज़रायल-ईरान संघर्ष पूर्व-पश्चिम टकराव को और तीव्र बना रहा है। यदि अधिक देश इसमें शामिल होते हैं, तो वैश्विक स्तर पर ‘जोखिम से बचाव’ की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
शेयर बाजार में अवसर, लेकिन अब नए दृष्टिकोण से देखना होगा
भारतीय शेयर बाजार में दीर्घकालिक अवसर अभी भी बने हुए हैं। लेकिन अब समझदारी से चयन और स्पष्ट रणनीति जरूरी है।
- लंबी अवधि की दृष्टि रखें: भारत की संरचनात्मक वृद्धि का दृष्टिकोण मजबूत है। फ्लेक्सी-कैप या लार्ज-कैप इक्विटी योजनाओं में मासिक निवेश (SIP) एक अच्छा विकल्प हो सकता है। बाज़ार की टाइमिंग की कोशिश छोड़कर मूल्य निर्माण पर ध्यान दें।
- क्षेत्रीय पुनर्गठन की संभावना: बैंकिंग, ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट क्षेत्रों को दर कटौती का लाभ मिल सकता है। लेकिन तेल पर अधिक निर्भर क्षेत्र जैसे विमानन, पेंट उद्योग और लॉजिस्टिक्स पर दबाव आ सकता है। आयात-निर्भर कंपनियों को भी मुश्किलें हो सकती हैं। इसके विपरीत, आईटी और फार्मा जैसी निर्यातक कंपनियों को रुपये की गिरावट से लाभ मिल सकता है।
- अत्यधिक प्रतिक्रिया से बचें: लघु अवधि के ट्रेडर्स के लिए बाजार अधिक अस्थिर रहेगा। ‘स्टॉप लॉस’ का प्रयोग करें, कर्ज पर आधारित निवेश से बचें और अफवाहों पर आधारित निर्णय न लें। ऐसे समय में बाजार की दिशा तेजी से बदल सकती है।
बॉन्ड और सोना सुरक्षित निवेश विकल्प फिर से केंद्र में
बॉन्ड्स: तेल की कीमतों और रुपये की कमजोरी से महंगाई का खतरा बढ़ता है। इस कारण आरबीआई कुछ समय के लिए दर कटौती रोक सकती है। फिर भी पहले से निवेशित लॉन्ग टर्म बॉन्ड फंड्स और सरकारी प्रतिभूतियों को अब तक हुई कटौती का लाभ मिलता रहेगा।
सोना: पिछले कुछ हफ्तों से बढ़ता सोना अब युद्धजन्य तनाव के कारण और अधिक आकर्षण का केंद्र बन सकता है। निवेशकों को 10-15% पोर्टफोलियो ‘गोल्ड फंड’ या ‘गोल्ड ETF’ में रखने पर विचार करना चाहिए।
सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण
रिज़र्व बैंक ने अपनी नीति का उपयोग किया है। अब अगला कदम केंद्र सरकार को उठाना है। और यह जिम्मेदारी केवल वित्तीय व्यय तक सीमित नहीं होनी चाहिए।
- ऊर्जा नीति: संभावित तेल संकट से निपटने के लिए भारत को अपनी रणनीतिक भंडारण क्षमता बढ़ानी चाहिए, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कीमतों को ‘हेज’ करने की व्यवस्था करनी चाहिए और घरेलू वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का तीव्र विकास करना चाहिए।
- MSME को समर्थन: बढ़ती इनपुट लागत छोटे उद्योगों को प्रभावित करती है। उन्हें कार्यशील पूंजी और नीति स्थिरता की सख्त ज़रूरत है। जिससे रोज़गार सृजन को भी बल मिलेगा।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार: अस्थिर वैश्विक वातावरण में स्पष्ट और सुसंगत नीतियां भारत को विदेशी निवेश के लिए आकर्षक बना सकती हैं।
निष्कर्ष: संतुलन ही है समझदारी भरा निवेश
रिज़र्व बैंक का विकासोन्मुख संदेश अब भी प्रासंगिक है और भारत की आर्थिक नींव मजबूत है। लेकिन वैश्विक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद और युद्धजन्य अनिश्चितता साथ-साथ मौजूद हैं।
निवेशकों को न तो डरना चाहिए और न ही अंधविश्वास में बहकर निर्णय लेना चाहिए। निवेश की निरंतरता बनाए रखें, विविधता लाएं और ज़रूरत पड़ने पर पोर्टफोलियो को फिर से संतुलित करें। यह न तो अति जोखिम उठाने का समय है और न ही पूरी तरह बाहर निकलने का। लेकिन भारत की लंबी विकास यात्रा से मुंह मोड़ने का भी नहीं।
आगामी समय भारतीय विकास और वैश्विक जोखिमों के बीच एक संतुलन साधने की यात्रा होगी। एक अनुभवी निवेशक हमेशा एक आंख अवसर पर और दूसरी सतर्कता पर रखता है। इसे कभी न भूलें।
(डिस्क्लेमर: यह लेख मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के ग्रुप सीएमओ संदीप वालुंज ने लिखा है। यहां शेयरों को लेकर दी गई जानकारी निवेश की राय नहीं है। चूंकि, स्टॉक मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है इसलिए निवेश करने से पहले किसी सर्टिफाइड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर से परामर्श जरूर करें।)

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